लखनऊ: पुराने लखनऊ के चौक में खेली जाने वाली पारंपरिक होली का अंदाज निराला है. यहां लोग मन के मैल को होली के रंग में धो डालते हैं. होली की कविताएं लिखने के लिए शायरों को नायक और नायिका की जरूरत है, लेकिन चौक की इस होली में हर होली खेलने वाला हीरो है.
नवाबों के शहर लखनऊ के चौक पर चढ़ा होली का खुमार. पुराने लखनऊ में होली खेलने का अंदाज नवाबों के दौर में ही गंगा-जमुनी संस्कृति का हिस्सा बन गया. तब हिंदुओं के साथ अवध के नवाब भी होली खेलने के लिए इसी चौक पर इकट्ठा होते थे, वही परंपरा सदियों बाद भी चली आ रही है. लोग घर से निकल कर आते हैं एक-दूसरे से गले मिलते हैं और गुलाल लगा कर एक-दूसरे के सुखमय जीवन की कामना करते हैं. चौक की होली का अंदाज यह भी है यहां बड़े-बूढ़े भी छोटे-छोटे बच्चों को बुलाकर होली का रंग डालने के लिए उन्हें उत्साहित करते हैं. इस बहाने वह होली की उस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहते हैं जिसमें छोटे-बड़े, ऊंच -नीच का भेदभाव मिटाकर सबसे रंग खेलना और सभी के साथ गले मिलना जरूरी है.
लखनऊ के चौक पर चढ़ा होली का खुमार. होली खेलने वालों को हालांकि इस बार मलाल है कि लोकसभा चुनाव और आचार संहिता के बंधन ने उनका होली का रंग फीका कर रखा है. कई बड़े राजनेता और चर्चित हस्तियां इस बार चौक की होली से दूर हैं नहीं तो होली का रंग आसमान तक दिखाई देता.