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लखनऊ: फसल बीमा योजना की राह तकते अन्नदाता

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कई खामियों की वजह से किसान इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं. खुद प्रदेश सरकार की कमिटी ने इन खामियों की पड़ताल की और योजना में सुधार की सिफारिशें की हैं. प्रदेश सरकार यह सिफारिशें केंद्र को भेज भी चुकी है.

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Published : Mar 2, 2019, 7:19 PM IST

लखनऊ: फसल बीमा योजना की राह तकते अन्नदाता

लखनऊ: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत दैवीय आपदा में किसानों की खराब हुई फसल का मूल्य दिया जाता है, लेकिन सूबे की राजधानी का किसान आज भी इस योजना की राह ताक रहा है.

पांच साल पूरा करने जा रही केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना यूपी में पूरी तरह फ्लॉप साबित हुई है. प्रदेश के 2.33 करोड़ किसान परिवारों में से लगभग 2 करोड़ बीमा योजना से बाहर ही रह गए.

देश के अन्नदाता कहे जाने वाले किसान दिन-रात खून पसीने से अपनी फसलों को सींचते हैं. वहीं दैवीय आपदा जैसे ओलावृष्टि, बाढ़, सूखा के चलते फसलों को भारी नुकसान हो जाता है. इसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने अन्नदाताओं के लिए फसल बीमा योजना की शुरुआत की, जिससे उन अन्नदाताओं को हुए नुकसान की भरपाई की जा सके.

ऐसे में क्या उन जरूरतमंद किसानों तक इस योजना का लाभ पहुंच पा रहा है. इसी के लिए हम उनके बीच गए और उनका हाल जाना कि किस तरह से अन्नदाता लगातार तहसील और अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं. 2016 में शुरू की गई फसल बीमा योजना आज तक उनकी दहलीज़ तक नहीं पहुंच पाई है. अब ऐसे में देखना होगा कि किसान मित्र कही जाने वाली सरकार जिसमें किसानों को सर्वोपरि माना गया है और आज वही किसान, वही अन्नदाता अपने खून पसीने की कमाई को पाने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है.

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लखनऊ : फसल बीमा योजना की राह तकते अन्नदाता.
नन्हका के परिवार में 6 लोग हैं. पति दिव्यांग है इसलिए वह किसी भी कार्य को करने में असमर्थ है. इसके चलते उनकी पत्नी नन्हका दूसरों के खेतों में और घरों में काम करके अपने बच्चों का लालन-पालन कर रही है. नन्हका ने बताया कि उनकी फसल पूरी तरीके से बर्बाद हो गई थी. अधिकारी आए तो जरूरत थे, लेकिन जो फसल बर्बाद हुई, उसका पैसा उन्हें अभी तक नहीं मिल पाया है.
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लखनऊ:फसल बीमा योजना की राह तकते अन्नदाता

यह हाल सिर्फ एक किसान परिवार का नहीं बल्कि इस गांव के सभी किसानों का है. राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज विकासखंड के अंतर्गत आने वाले लालता खेड़ा गांव में रहने वाले किसानों का कहना है कि अधिकारी आते तो हैं, लेकिन सिर्फ आश्वासन देकर चले जाते हैं. आज तक उन्हें फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल पाया है.

कर्जदारों की मजबूरी

बीमा करवाने वालों में ज्यादातर कर्जदार किसान होते हैं. इसकी वजह यह है कि बैंक से लोन लेते समय ही उनका बीमा अनिवार्य तौर पर कर दिया जाता है. कोई किसान स्वेच्छा से बीमा करवा भी ले तो वह क्लेम के लिए भटकता रहता है. बीमा कंपनियों ने जितना मुनाफा कमाया, उसका 10 फीसदी भी क्लेम नहीं दिया गया.

ये हैं बीमा योजना की खामियां

  • किसान को कोई बुकलेट या रसीद नहीं दी जाती, जिससे वे साबित कर सकें कि उनका बीमा हो गया.
  • बीमा के लिखित नियम और शर्तें भी नहीं मिलतीं.
  • नुकसान होने की स्थिति में किसान को खुद 48 घंटे के अंदर रिपोर्ट करना होता है.
  • किसान के व्यक्तिगत नुकसान की जगह गांव या ब्लाक को इकाई मानकर आकलन किया जाता है.
  • बीमा पॉलिसी बैंकों और बीमा कंपनियों के हितों के हिसाब से बनाई गई हैं. क्लेम के लिए बीमा कंपनी मनमानी करती है.
  • कर्जदार किसानों के लिए अनिवार्य बीमा इसलिए कर दिया गया है कि बैंक का पैसा न डूबे. इससे किसानों को कोई फायदा नहीं है.
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लखनऊ: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत दैवीय आपदा में किसानों की खराब हुई फसल का मूल्य दिया जाता है, लेकिन सूबे की राजधानी का किसान आज भी इस योजना की राह ताक रहा है.

पांच साल पूरा करने जा रही केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना यूपी में पूरी तरह फ्लॉप साबित हुई है. प्रदेश के 2.33 करोड़ किसान परिवारों में से लगभग 2 करोड़ बीमा योजना से बाहर ही रह गए.

देश के अन्नदाता कहे जाने वाले किसान दिन-रात खून पसीने से अपनी फसलों को सींचते हैं. वहीं दैवीय आपदा जैसे ओलावृष्टि, बाढ़, सूखा के चलते फसलों को भारी नुकसान हो जाता है. इसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने अन्नदाताओं के लिए फसल बीमा योजना की शुरुआत की, जिससे उन अन्नदाताओं को हुए नुकसान की भरपाई की जा सके.

ऐसे में क्या उन जरूरतमंद किसानों तक इस योजना का लाभ पहुंच पा रहा है. इसी के लिए हम उनके बीच गए और उनका हाल जाना कि किस तरह से अन्नदाता लगातार तहसील और अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं. 2016 में शुरू की गई फसल बीमा योजना आज तक उनकी दहलीज़ तक नहीं पहुंच पाई है. अब ऐसे में देखना होगा कि किसान मित्र कही जाने वाली सरकार जिसमें किसानों को सर्वोपरि माना गया है और आज वही किसान, वही अन्नदाता अपने खून पसीने की कमाई को पाने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है.

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लखनऊ : फसल बीमा योजना की राह तकते अन्नदाता.
नन्हका के परिवार में 6 लोग हैं. पति दिव्यांग है इसलिए वह किसी भी कार्य को करने में असमर्थ है. इसके चलते उनकी पत्नी नन्हका दूसरों के खेतों में और घरों में काम करके अपने बच्चों का लालन-पालन कर रही है. नन्हका ने बताया कि उनकी फसल पूरी तरीके से बर्बाद हो गई थी. अधिकारी आए तो जरूरत थे, लेकिन जो फसल बर्बाद हुई, उसका पैसा उन्हें अभी तक नहीं मिल पाया है.
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लखनऊ:फसल बीमा योजना की राह तकते अन्नदाता

यह हाल सिर्फ एक किसान परिवार का नहीं बल्कि इस गांव के सभी किसानों का है. राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज विकासखंड के अंतर्गत आने वाले लालता खेड़ा गांव में रहने वाले किसानों का कहना है कि अधिकारी आते तो हैं, लेकिन सिर्फ आश्वासन देकर चले जाते हैं. आज तक उन्हें फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल पाया है.

कर्जदारों की मजबूरी

बीमा करवाने वालों में ज्यादातर कर्जदार किसान होते हैं. इसकी वजह यह है कि बैंक से लोन लेते समय ही उनका बीमा अनिवार्य तौर पर कर दिया जाता है. कोई किसान स्वेच्छा से बीमा करवा भी ले तो वह क्लेम के लिए भटकता रहता है. बीमा कंपनियों ने जितना मुनाफा कमाया, उसका 10 फीसदी भी क्लेम नहीं दिया गया.

ये हैं बीमा योजना की खामियां

  • किसान को कोई बुकलेट या रसीद नहीं दी जाती, जिससे वे साबित कर सकें कि उनका बीमा हो गया.
  • बीमा के लिखित नियम और शर्तें भी नहीं मिलतीं.
  • नुकसान होने की स्थिति में किसान को खुद 48 घंटे के अंदर रिपोर्ट करना होता है.
  • किसान के व्यक्तिगत नुकसान की जगह गांव या ब्लाक को इकाई मानकर आकलन किया जाता है.
  • बीमा पॉलिसी बैंकों और बीमा कंपनियों के हितों के हिसाब से बनाई गई हैं. क्लेम के लिए बीमा कंपनी मनमानी करती है.
  • कर्जदार किसानों के लिए अनिवार्य बीमा इसलिए कर दिया गया है कि बैंक का पैसा न डूबे. इससे किसानों को कोई फायदा नहीं है.
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Intro:Note- Chairman sir plan story (Lucknow_Yogesh Mishra)

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत देवी आपदा में किसानों की खराब हुई फसलों का मूल्य दिया जाता है। लेकिन सूबे की राजधानी का किसान आज भी इस योजना की राह तक रहा है।


Body:देश के अन्नदाता कहे जाने वाले किसान दिन रात खून पसीने से अपनी फसलों को सींच कर बड़ा करते हैं। वही दैवीय आपदाओं जैसे ओलावृष्टि, बाढ़, सूखा आदि के चलते फसलों को भारी नुकसान हो जाता है। इसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने अन्नदाता ओं के लिए फसल बीमा योजना की शुरुआत की जिससे उन अन्नदाताओं को हुए नुकसान की भरपाई की जा सके। ऐसे में क्या उन जरूरतमंद किसानों तक इस योजना का लाभ पहुंच पा रहा है इसी के लिए हम उनके बीच गए और जाना उनका हाल किस तरह से अन्नदाता लगातार तहसील और अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं और 2016 में शुरू की गई फसल बीमा योजना आज तक उनकी दहलीज़ तक नहीं पहुंच पाई है। अब ऐसे में देखना होगा किसान मित्र कही जाने वाली सरकार जिसमें किसानों को सर्वोपरि माना गया है और आज वही किसान वही अन्नदाता अपने खून पसीने की कमाई को पाने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है।

नन्हका के परिवार में 6 लोग हैं पति की विकलांगता के चलते वह किसी भी कार्य को करने में असमर्थ है जिसके चलते महिला दूसरों के खेतों में और घरों में काम करके अपने बच्चों को पाल पोस रही है। महिला ने बताया कि उसकी फसल पूरी तरीके से बर्बाद हो गई थी अधिकारी आए तो जरूरत थे पर फसल जो बर्बाद हुई उसका पैसा अभी तक उन्हें नहीं मिल पाया है।

बाइट- नन्हका (पीड़ित किसान)

यह हाल सिर्फ एक किसान परिवार का नहीं बल्कि इस गांव के सभी किसानों का है राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज विकासखंड के अंतर्गत आने वाले लालता खेड़ा गांव में रहने वाले किसानों का कहना है कि अधिकारी आते तो हैं लेकिन सिर्फ आश्वासन देकर चले जाते हैं आज तक उन्हें फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल पाया है।

बाइट- कुमारे (पीड़ित किसान)
बाइट-शमशुद्दीन (पीड़ित किसान)
बाइट- प्रेम बाबू ( एडीओ कृषि मोहनलालगंज)
पीटीसी- योगेश मिश्रा


Conclusion:केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ राजधानी लखनऊ के किसानों को नहीं मिल पा रहा है। किसानों का कहना है कि अधिकारी आते तो है पर अब तक उन्हें दैवीय आपदाओं में बर्बाद हुई फसलों के पैसे नहीं मिल पाए हैं।
देखने वाली बात होगी किन गरीब किसानों को उनका हक कब तक मिलेगा।

योगेश मिश्रा लखनऊ
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