लखनऊ: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत दैवीय आपदा में किसानों की खराब हुई फसल का मूल्य दिया जाता है, लेकिन सूबे की राजधानी का किसान आज भी इस योजना की राह ताक रहा है.
पांच साल पूरा करने जा रही केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना यूपी में पूरी तरह फ्लॉप साबित हुई है. प्रदेश के 2.33 करोड़ किसान परिवारों में से लगभग 2 करोड़ बीमा योजना से बाहर ही रह गए.
देश के अन्नदाता कहे जाने वाले किसान दिन-रात खून पसीने से अपनी फसलों को सींचते हैं. वहीं दैवीय आपदा जैसे ओलावृष्टि, बाढ़, सूखा के चलते फसलों को भारी नुकसान हो जाता है. इसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने अन्नदाताओं के लिए फसल बीमा योजना की शुरुआत की, जिससे उन अन्नदाताओं को हुए नुकसान की भरपाई की जा सके.
ऐसे में क्या उन जरूरतमंद किसानों तक इस योजना का लाभ पहुंच पा रहा है. इसी के लिए हम उनके बीच गए और उनका हाल जाना कि किस तरह से अन्नदाता लगातार तहसील और अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं. 2016 में शुरू की गई फसल बीमा योजना आज तक उनकी दहलीज़ तक नहीं पहुंच पाई है. अब ऐसे में देखना होगा कि किसान मित्र कही जाने वाली सरकार जिसमें किसानों को सर्वोपरि माना गया है और आज वही किसान, वही अन्नदाता अपने खून पसीने की कमाई को पाने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है.
लखनऊ:फसल बीमा योजना की राह तकते अन्नदाता
यह हाल सिर्फ एक किसान परिवार का नहीं बल्कि इस गांव के सभी किसानों का है. राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज विकासखंड के अंतर्गत आने वाले लालता खेड़ा गांव में रहने वाले किसानों का कहना है कि अधिकारी आते तो हैं, लेकिन सिर्फ आश्वासन देकर चले जाते हैं. आज तक उन्हें फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल पाया है.
कर्जदारों की मजबूरी
बीमा करवाने वालों में ज्यादातर कर्जदार किसान होते हैं. इसकी वजह यह है कि बैंक से लोन लेते समय ही उनका बीमा अनिवार्य तौर पर कर दिया जाता है. कोई किसान स्वेच्छा से बीमा करवा भी ले तो वह क्लेम के लिए भटकता रहता है. बीमा कंपनियों ने जितना मुनाफा कमाया, उसका 10 फीसदी भी क्लेम नहीं दिया गया.
ये हैं बीमा योजना की खामियां
- किसान को कोई बुकलेट या रसीद नहीं दी जाती, जिससे वे साबित कर सकें कि उनका बीमा हो गया.
- बीमा के लिखित नियम और शर्तें भी नहीं मिलतीं.
- नुकसान होने की स्थिति में किसान को खुद 48 घंटे के अंदर रिपोर्ट करना होता है.
- किसान के व्यक्तिगत नुकसान की जगह गांव या ब्लाक को इकाई मानकर आकलन किया जाता है.
- बीमा पॉलिसी बैंकों और बीमा कंपनियों के हितों के हिसाब से बनाई गई हैं. क्लेम के लिए बीमा कंपनी मनमानी करती है.
- कर्जदार किसानों के लिए अनिवार्य बीमा इसलिए कर दिया गया है कि बैंक का पैसा न डूबे. इससे किसानों को कोई फायदा नहीं है.