हैदराबाद : बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक रविवार को समाप्त हो गई. इस मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी का नाम विश्व नेता के तौर पर गुणगान किया गया. कोविड वैक्सिनेशन के लिए उन्हें बधाई दी गई. प्रधानमंत्री ने भी सर्वोच्च नेता के तौर पर पार्टी को नसीहत दी, ठीक उसी तरह जिस तरह 90 के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी दिया करते थे. इस बैठक में 5 राज्यों में होने वाले चुनाव की रूपरेखा भी तैयार की गई. जम्मू कश्मीर-पश्चिम बंगाल पर भी लंबी चर्चा हुई.
इस बैठक की कई खासियत रही. इसके कई सदस्य नए थे. मेनका गांधी, वरूण गांधी और सुब्रमन्यम स्वामी जैसे दिग्गज पहले ही कार्यकारिणी से बाहर किए जा चुके हैं. तीन दिनों की बैठक में जे पी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह की छाया से निकलकर पूरी तरह पार्टी का नेतृत्व करते दिखे. बैठक स्थल पर नरेंद्र मोदी और जे पी नड्डा का भव्य कटआउट लगा रहा. पोस्टर में अमित शाह नहीं दिखे.
योगी आदित्यनाथ का कद बढ़ा, शीर्ष नेतृत्व में शामिल : सबसे चौंकाने वाला क्षण तब आया, जब पार्टी ने 18 पॉइंट वाले राजनीतिक प्रस्ताव पेश करने के लिए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चुना. योगी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने वाले इकलौते मुख्यमंत्री भी रहे. बीजेपी शासित राज्यों के सीएम और प्रदेश अध्यक्ष ऑनलाइन ही मीटिंग में जुड़े रहे. बीजेपी की परंपरा रही है कि राजनीतिक प्रस्ताव अक्सर पार्टी के सीनियर नेता पेश करते रहे हैं. 2017 और 2018 में राजनाथ सिंह ने राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया था. यह माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बीजेपी में योगी का कद बढ़ रहा है.
उत्तर प्रदेश में योगी पर दांव लगाएगी भारतीय जनता पार्टी : योगी के बहाने केंद्र ने अपना स्टैंड भी साफ कर दिया कि बीजेपी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ेगी. हालांकि इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र यूपी में हुई सभाओं में योगी की सार्वजनिक तारीफ कर चुके हैं. गृह मंत्री अमित शाह ने एक बयान में कहा था कि 2024 में सत्ता वापसी के लिए 2022 में उत्तर प्रदेश में जीत जरूरी है. इस कारण भी पार्टी योगी के पीछे अपनी ताकत झोंकने का मन बना चुकी है.
हारे कैंडिकेट को टिकट नहीं, जीते हुए कई विधायक होंगे बेटिकट : बताया जाता है कि इस बैठक में जीत के फार्मूले की तलाश की गई. बीजेपी के नेतृत्व ने आगाह किया अभी जिन राज्यों में पार्टी की सरकार है, उनमें सत्ता वापस नहीं मिली तो 2022 और इसके बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में माहौल बिगड़ सकता है. सूत्रों के अनुसार, आगामी विधानसभा चुनाव में ऐसे कैंडिडेट का टिकट कट सकता है, जो पिछला चुनाव बड़े अंतर से चुनाव हार गए थे. इसके अलावा परफॉर्म नहीं करने वाले विधायकों का पत्ता भी कट सकता है. इनके जगह पर युवा चेहरे को तवज्जो दी जा सकती है.
यूपी में असंतोष को कैसे मैनेज करेगी पार्टी : योगी आदित्यनाथ अब खुले तौर से चुनावी गाड़ी की स्टीयरिंग थाम चुके हैं. उन्हें अपने रथ को दोबारा लखऩऊ के लोक भवन तक पहुंचाने से पहले पार्टी में उपजे असंतोष से निपटना होगा. टिकट की उम्मीद छोड़ चुके नेता समाजवादी पार्टी का रुख कर सकते हैं. इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनावी गठबंधन से मजबूत घेराबंदी कर रहे हैं. अखिलेश वही दांव आजमा रहे हैं, जो अमित शाह ने 2017 में आजमाया था. अगर कांग्रेस ने लखीमपुर के सहारे बीजेपी के वोट वैंक को तोड़ने की तैयारी की है. चुनाव से पहले महंगाई और कानून व्यवस्था भी योगी आदित्यनाथ के लिए चुनौती बन सकती है.
गोवा में ममता और केजरीवाल बनेंगे चुनौती : अभी तक जारी हुए सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी गोवा में सत्ता वापसी कर सकती है. जोड़ तोड़ के बाद 5 साल तक सरकार बनाने वाली बीजेपी की साख दांव पर रहेगी. ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल गोवा में बीजेपी के परंपरागत वोटर को ही टारगेट कर रहे हैं. बीजेपी के लिए राहत की खबर यह है कि ममता बनर्जी कांग्रेस के नेताओं को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रही हैं. इससे मुकाबले मे एक प्रतिद्वंदी के कमजोर होने का मौका रहेगा.
उत्तराखंड में भी पार्टी छोड़कर जा रहे हैं नेता : उत्तराखंड में बीजेपी के नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर पार्टी चुनाव लड़ने जा रही है. हालांकि औपचारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं की गई है, मगर पार्टी के इस फैसले से विजय बहुगुणा जैसे नेता नाराज हैं, जो बड़ी अपेक्षा से कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे. पार्टी में आए यशपाल आर्य तो फिर कांग्रेस में लौट चुके हैं. देवस्थानम बोर्ड को लेकर ब्राह्मणों में नाराजगी है. वैसे भी उत्तराखंड में अभी तक कोई सरकार दोबारा सत्ता में नहीं लौटी है. इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने फ्री वाला नुस्खा आजमा दिया है और अगले चुनाव में वह छुपा रुस्तम साबित हो सकती है.
हिमाचल में तो बज चुकी है खतरे की घंटी : हिमाचल प्रदेश में हुए तीन सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस ने बुरी तरह बीजेपी को पटखनी दी. अभी बीजेपी के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के पास सिर्फ 3 महीने बचे हैं. वहां लोगों में महंगाई को लेकर नाराजगी अगर कम नहीं हुई तो बीजेपी को सत्ता में लौटने में मुश्किल होगी. पेट्रोल की कीमत में कमी कर बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश की है, मगर चुनाव तक इस रेट को स्थिर रखना आसान नहीं है. हिमाचल के सेब उत्पादक किसान भी सरकार से नाराज बताए जाते हैं.
पंजाब में बीजेपी ने सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया. अब देखना यह है कि वह किसान आंदोलन के गुस्से से कैसे उबरेगी.
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री ने बूथ कमिटी और पन्ना प्रमुख जैसी जिम्मेदारियों को पूरा करने का मंत्र दिया है. अगर दिसंबर तक बीजेपी यह लक्ष्य हासिल कर लेती है तो चुनावी राह आसान हो जाएगी.