नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि नौकरी के लिए आवेदन देने वाले उम्मीदवार को इस बात पर जोर देने का कानूनी अधिकार नहीं है कि भर्ती प्रक्रिया को उसके तार्किक अंत तक ले जाया जाए. न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि एक उम्मीदवार को चयन सूची में शामिल करने से भी उसको ऐसा अधिकार नहीं मिल सकता. पीठ ने कहा, 'मुख्य सिद्धांत जो हमें ध्यान में रखना चाहिए, वह यह है कि यह सीधी भर्ती का मामला है. एक उम्मीदवार जिसने आवेदन किया है, उसे यह आग्रह करने का कानूनी अधिकार नहीं है कि शुरू की गई भर्ती प्रक्रिया को उसके तार्किक अंत तक ले जाया जाए. यहां तक कि चयन सूची में किसी उम्मीदवार का शामिल होना भी उसे इस तरह का अधिकार नहीं दे सकता.'
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह बात दीगर है कि नियोक्ता मनमाने ढंग से कार्य करने के लिए स्वतंत्र है. न्यायालय की तरफ से उस मामले पर फैसला करते हुए यह टिप्पणी आई जिसमें कर्मचारी राज्य बीमा निगम द्वारा संचालित कॉलेजों के लिए एसोसिएट प्रोफेसर के पद के अलावा अन्य पदों को भरने के लिए एक मार्च, 2018 को विज्ञापन जारी कर ऑनलाइन आवेदन आमंत्रित किए गए थे. प्रशासनिक कारणों से हालांकि 21 मार्च 2018 को एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पद के संबंध में भर्ती प्रक्रिया को स्थगित रखने का नोटिस जारी किया गया. आवेदकों में से एक ने विज्ञापन के संदर्भ में एसोसिएट प्रोफेसर के पद को भरने के लिए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) से संपर्क किया और कैट ने उसके पक्ष में एक आदेश पारित किया. आदेश को कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई जिसने रिट याचिका को खारिज कर दिया.
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शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया 45 दिन के भीतर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने का आदेश स्पष्ट रूप से असमर्थनीय है. पीठ ने कहा, 'विज्ञापन को रोक दिया गया था इसलिए यह संभावना अधिक है कि कोई भी उम्मीदवार जो आवेदन करने का इच्छुक हो सकता है उसने इस तथ्य से निराश होकर आवेदन नहीं किया होगा कि विज्ञापन को रोक दिया गया है. इसलिए, 45 दिनों के भीतर कार्यवाही समाप्त करने का निर्देश समर्थन योग्य नहीं है. पीठ ने कहा, 'हमारा विचार है कि अपीलकर्ताओं द्वारा एक निष्पक्ष और समयबद्ध निर्णय लिया जाना चाहिए, इस तथ्य से बेखबर हो कर नहीं, कि व्यक्तियों ने आवेदन किया है और वे भी अपीलकर्ता की तरह निकाय से उचित व्यवहार की आशा करेंगे. तदनुसार, हम अपील को स्वीकार करते हैं. हम फैसले को रद्द करते हैं और अपीलकर्ताओं को दो महीने की अवधि के भीतर सभी प्रासंगिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने का निर्देश देते हैं.'
(पीटीआई-भाषा)