नई दिल्ली: कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को 34 साल पुराने रोड रेज मामले में सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. शीर्ष अदालत ने सिद्धू को एक साल कारावास की सजा सुनाई है. जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने यह फैसला सुनाया है. अदालत ने अपने 15 मई, 2018 के एक हजार रुपये के जुर्माने की सजा को बदल दिया है. कोर्ट के फैसले के बाद सिद्धू ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि वह कोर्ट के आदेश का पालन करेंगे.
-
Will submit to the majesty of law ….
— Navjot Singh Sidhu (@sherryontopp) May 19, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
">Will submit to the majesty of law ….
— Navjot Singh Sidhu (@sherryontopp) May 19, 2022Will submit to the majesty of law ….
— Navjot Singh Sidhu (@sherryontopp) May 19, 2022
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आईपीसी की धारा 304 ए के तहत गैर इरादतन हत्या के लिए सिद्धू को दोषी ठहराने की गुरनाम सिंह के परिवार की याचिका को खारिज कर दिया. हालांकि कोर्ट ने सिद्धू को धारा 323 के तहत अधिकतम सजा दी. इसके तहत नवजोत सिंह सिद्धू को एक साल के कारावास की सजा दी गई है. फैसले के बाद पंजाब पुलिस ने कांग्रेस नेता को गिरफ्तार करने की तैयारी कर ली है. पुलिस उन्हें सजा काटने के लिए पटियाला जेल भेज जा सकती है.
रोडरेज का केस 34 साल पुराना है. नवजोत सिंह सिद्धू के साथ हुई यह घटना 1988 की है. पंजाब के पटियाला में 27 दिसंबर 1988 को नवजोत सिद्धू ने बीच सड़क पर अपनी गाड़ी पार्क कर रखी थी. उसी समय गुरनाम सिंह दो अन्य लोगों के साथ बैंक से पैसा निकालने के लिए जा रहे थे. बीच सड़क पर गाड़ी देखकर सिद्धू से उसे हटाने को कहा था. बहस के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने पीड़ित के साथ मारपीट की थी और मौके से फरार हो गए. मारपीट के कारण गुरनाम घायल हो गए थे. लोग उन्हें अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था.
इस मामले की सुनवाई कई साल चली. सितंबर 1999 में निचली अदालत ने नवजोत सिह सिद्धू को आरोपों से बरी कर दिया. पीड़ित पक्ष ने हाईकोर्ट में अपील की. हाई कोर्ट ने दिसंबर 2006 में सिद्धू समेत दो लोगों को गैर इरादतन हत्या मामले में दोषी करार दिया. हाई कोर्ट ने 23 साल पहले दोनों दोषियों को 3-3 साल कैद की सजा सुनाई थी. नवजोत सिंह सिद्धू और रूपिंदर सिंह संधू ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को मारपीट मामले में दोषी करार देते हुए हजार रुपये का जुर्माना लगाया था. पीड़ित पक्ष ने एक बार फिर पुनर्विचार याचिका दायर की.
सुप्रीम कोर्ट ने बीते 25 मार्च को नवजोत सिंह सिद्धू की सजा बढ़ाने की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि सिद्धू की सजा बढ़ाई जाए या नहीं. पीड़ित परिवार की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा गया था. इससे पहले पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू की मुश्किलें बढ़ गईं थीं.
सिद्धू का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ए. एम. सिंघवी ने न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ से समक्ष कहा कि सजा अदालत का विवेक है और मौत की सजा के मामलों को छोड़कर कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है, जो दुर्लभ से दुर्लभ और वर्तमान मामले में दिया गया है. उन्होंने आगे कहा कि 2018 के फैसले पर फिर से विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है. सिंघवी ने कहा, "सजा की पर्याप्तता पर अपील पर विचार नहीं किया जाना चाहिए. सरकार सजा के खिलाफ अपील में नहीं है और पीड़ित पर्याप्तता को चुनौती नहीं दे सकता." उन्होंने आगे कहा कि उनके मुवक्किल की ओर से सहयोग की कमी का कोई आरोप नहीं लगाया गया है.
पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति संजय किशन कौल भी शामिल थे, ने कहा कि उसके सामने केवल यह मुद्दा है कि क्या अदालत द्वारा सजा पर सीमित नोटिस जारी किए जाने के बावजूद जिस प्रावधान के तहत सजा दी गई है, उस पर गौर करने की जरूरत है. पीठ ने मामले में विस्तृत दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया. मृतक के परिजन गुरनाम सिंह ने 2018 के फैसले पर फिर से विचार करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी.
पीड़ित परिवार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने प्रस्तुत किया कि कार्डियक अरेस्ट के कारण हुई मौत सही नहीं है और पीड़ित को एक झटका मिला है. सिंघवी ने जोरदार ढंग से तर्क दिया कि यह बेहद संदिग्ध है कि मुक्का मारने से लगी चोट से मौत हो सकती है. लूथरा ने तर्क दिया कि 2018 का फैसला रिछपाल सिंह मीणा बनाम घासी (2014) के मामले में पिछले फैसले पर विचार करने में विफल रहा.