नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्रालय (Union Home Ministry) ने अभी तक नागरिकता संशोधन अधिनियम (citizenship amendment act) को अधिसूचित नहीं किया है. जब इस मुद्दे पर संपर्क किया गया तो एमएचए के अधिकारियों ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
हालांकि ईटीवी भारत ने लोकसभा में संसदीय स्थायी समिति के अधीनस्थ विधान के अध्यक्ष बालाशोरी वल्लभनेनी (balashori vallabhneni) से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि आम तौर पर एमएचए ने नियम बनाने के लिए समय सीमा बढ़ाने के लिए संचार भेजता है. वे मेरे कार्यालय के साथ संवाद कर सकते हैं.
राज्यसभा में संसदीय स्थायी समिति के अधीनस्थ विधान के अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि एमएचए से कोई संचार किया गया है या नहीं. संसदीय कार्य पर नियमावली के अनुसार यदि मंत्रालय/विभाग कानून पारित होने के बाद छह महीने की निर्धारित अवधि के भीतर नियम बनाने में सक्षम नहीं हैं तो उन्हें अधीनस्थ विधान संबंधी समिति से इस तरह के विस्तार के कारणों को बताते हुए समय के विस्तार की मांग करनी चाहिए.
एक बार में यह तीन महीने की अवधि से अधिक नहीं हो सकती. सीएए जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले धार्मिक उत्पीड़न के बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का इरादा रखता है, संसद द्वारा 11 दिसंबर 2019 को पारित किया गया और अधिनियम को 12 दिसंबर को अधिसूचित किया गया था.
जनवरी 2020 में गृह मंत्रालय ने अधिसूचित किया कि अधिनियम 10 जनवरी 2020 से लागू होगा. इस बीच गृह मंत्रालय ने कुछ संस्थानों और गैर सरकारी संगठनों जैसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) पंजीकरण को बहाल कर दिया है.
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गृह मंत्रालय से एफसीआरए की मंजूरी प्राप्त करने के लिए सभी संगठनों के लिए पूर्ण दस्तावेज और वार्षिक रिटर्न जमा करना अनिवार्य है. बीते 31 दिसंबर को मंत्रालय को आवश्यक दस्तावेज जमा करने में विफल रहने के बाद एमएचए ने कई संगठनों का पंजीकरण रद्द कर दिया था.