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Holi 2023 : काशी में जलती चिताओं के बीच खेली होली, चिता भस्म के साथ उड़ते रहे गुलाल

वाराणसी में शनिवार काे मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच जमकर हाेली खेली गई. इस अनाेखी हाेली काे देखने के लिए काफी संख्या में लाेगाें की भीड़ जुटी.

मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच जमकर हाेली खेली गई.
मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच जमकर हाेली खेली गई.
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Published : Mar 4, 2023, 6:32 PM IST

वाराणसी

वाराणसी : काशी अद्भुत है, यहां की परंपराएं भी अनाेखी हैं. इसका निर्वहन सदियों से होता आ रहा है. कल जिले में रंगभरी एकादशी का उत्सव मनाया गया. माता पार्वती का गौना लेकर भोलेनाथ भक्तों के कंधे पर सवार होकर पालकी में निकले. भक्तों ने जमकर अबीर गुलाल उड़ाया. इसी कड़ी में आज महा श्मशान (मणिकर्णिका घाट) में जलती चिताओं के बीच जमकर हाेली खेली गई. शवाें काे लेकर पहुंचे लोगों की आंखों में अपनाें के खाेने का दर्द जरूर था लेकिन इस अनाेखी परंपरा ने कुछ देर के लिए उन्हें सब कुछ भूलने पर मजबूर कर दिया.

दरअसल, महा श्मशान नाथ मंदिर के आयोजन समिति की तरफ से काशी के मणिकर्णिका घाट पर बीते कई सालों से शमशान की होली का आयोजन किया जाता है. यह होली चिता भस्म के साथ खेली जाती है. अबीर गुलाल के साथ यहां पर जुटने वाली भीड़ होली के खुमार में डूबी रहती है. आज भी बड़ी संख्या में मौजूद लाेगाें ने हाेली का जश्न मनाया.

जलती चिताओं के बीच उड़ रहे गुलाल और चिता भस्म ने सभी का ध्यान खींचा. इस परंपरा का निर्वहन कब से हो रहा है, इसके पीछे की क्या कहानी है, इस बारे में महाश्मशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक और आयाेजक जंत्रलेश्वर यादव का कहना है कि जब भोलेनाथ माता पार्वती की विदाई कराकर कैलाश जाते हैं ताे उसके अगले दिन भोलेनाथ अपने गढ़ भूत पिशाच और भक्तों के साथ होली खेलने के लिए महाश्मशान पर पहुंचते हैं. यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है.

आयाेजक ने बताया कि भोलेनाथ रंगों से नहीं, बल्कि चिता भस्म से होली खेलते हैं. यही वजह है इस हाेली में चिता भस्म के साथ अबीर-गुलाल का भी प्रयोग किया जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि होली का आनंद लेने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ जुटती है. विदेशी सैलानियाें ने बताया कि ऐसा अद्भुत नजारा उन्हाेंने कहीं नहीं देखा. आयाेजक ने बताया कि मणिकर्णिका घाट पर होली शुरू करने से पहले महाश्मशाननाथ मंदिर में पूजा अर्चना की गई थी. 100 डमरू के दल की ध्वनि के साथ बाबा श्मशान नाथ को आमंत्रण दिया गया. शिव की विधिवत पूजा की गई. कपाल में उन्हें मदिरा भी अर्पित की गई.

यह भी पढ़ें : काशी में माता गौरा का गौना लेकर निकले बाबा विश्वनाथ, भक्तों ने खूब खेली होली

वाराणसी

वाराणसी : काशी अद्भुत है, यहां की परंपराएं भी अनाेखी हैं. इसका निर्वहन सदियों से होता आ रहा है. कल जिले में रंगभरी एकादशी का उत्सव मनाया गया. माता पार्वती का गौना लेकर भोलेनाथ भक्तों के कंधे पर सवार होकर पालकी में निकले. भक्तों ने जमकर अबीर गुलाल उड़ाया. इसी कड़ी में आज महा श्मशान (मणिकर्णिका घाट) में जलती चिताओं के बीच जमकर हाेली खेली गई. शवाें काे लेकर पहुंचे लोगों की आंखों में अपनाें के खाेने का दर्द जरूर था लेकिन इस अनाेखी परंपरा ने कुछ देर के लिए उन्हें सब कुछ भूलने पर मजबूर कर दिया.

दरअसल, महा श्मशान नाथ मंदिर के आयोजन समिति की तरफ से काशी के मणिकर्णिका घाट पर बीते कई सालों से शमशान की होली का आयोजन किया जाता है. यह होली चिता भस्म के साथ खेली जाती है. अबीर गुलाल के साथ यहां पर जुटने वाली भीड़ होली के खुमार में डूबी रहती है. आज भी बड़ी संख्या में मौजूद लाेगाें ने हाेली का जश्न मनाया.

जलती चिताओं के बीच उड़ रहे गुलाल और चिता भस्म ने सभी का ध्यान खींचा. इस परंपरा का निर्वहन कब से हो रहा है, इसके पीछे की क्या कहानी है, इस बारे में महाश्मशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक और आयाेजक जंत्रलेश्वर यादव का कहना है कि जब भोलेनाथ माता पार्वती की विदाई कराकर कैलाश जाते हैं ताे उसके अगले दिन भोलेनाथ अपने गढ़ भूत पिशाच और भक्तों के साथ होली खेलने के लिए महाश्मशान पर पहुंचते हैं. यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है.

आयाेजक ने बताया कि भोलेनाथ रंगों से नहीं, बल्कि चिता भस्म से होली खेलते हैं. यही वजह है इस हाेली में चिता भस्म के साथ अबीर-गुलाल का भी प्रयोग किया जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि होली का आनंद लेने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ जुटती है. विदेशी सैलानियाें ने बताया कि ऐसा अद्भुत नजारा उन्हाेंने कहीं नहीं देखा. आयाेजक ने बताया कि मणिकर्णिका घाट पर होली शुरू करने से पहले महाश्मशाननाथ मंदिर में पूजा अर्चना की गई थी. 100 डमरू के दल की ध्वनि के साथ बाबा श्मशान नाथ को आमंत्रण दिया गया. शिव की विधिवत पूजा की गई. कपाल में उन्हें मदिरा भी अर्पित की गई.

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