नई दिल्ली : समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ मंगलवार से देश में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी. वाई, चंद्रचूड़ और जस्टिस एस. के. कौल, जस्टिस एस. रवींद्र भट, पी. एस. नरसिम्हा और हेमा कोहली की पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. वहीं, केंद्र सरकार अपनी प्रारंभिक आपत्ति पर जोर दे रही है कि क्या अदालत इस प्रश्न पर सुनवाई कर सकती है या पहले इस पर अनिवार्य रूप से ससंद में चर्चा करायी जाएगी.
सुनवाई की शुरुआत में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पीठ ने कहा कि प्रारंभिक आपत्ति की प्रकृति और गुण-दोष इस बात पर निर्भर करता है कि याचिकाकर्ता का क्या कहना है और अदालत उनका पक्ष जानना चाहती है. इस पर मेहता ने कहा कि आप जिस विषय से निपट रहे हैं, वह विवाह के सामाजिक-कानूनी संबंध का है, जो सक्षम विधायिका का क्षेत्र है. जब विषय समवर्ती सूची में है, तो हम एक राज्य के इसके लिए सहमत होने और दूसरे राज्य के खिलाफ होने की संभावना से इंकार नहीं कर सकते हैं. राज्यों के शामिल न होने की स्थिति में, याचिकाएं वैध नहीं होंगी. नोटिस जनवरी में जारी किया गया था और हम रखरखाव के बारे में कोई मुद्दा नहीं उठा सके. उन्होंने कहा कि हमें यह भी देखना होगा कि अगर अदालत इस पर फैसला लेती है तो इसका क्या असर होगा.
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A five-judge Constitution Bench headed by the Chief Justice of India DY Chandrachud begins hearing a batch of petitions seeking legal recognition of same-sex marriage pic.twitter.com/WWRG9lmMAQ
— ANI (@ANI) April 18, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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एसजी मेहता ने कहा कि सामाजिक-कानूनी संस्था प्रदान करने या बनाने के लिए जो बहस होनी है, क्या इसका मंच अदालत होगी या संसद में इसपर बहस होनी चाहिए. इसपर CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आपकी प्रारंभिक आपत्ति की प्रकृति उनके द्वारा खोले गए कैनवस पर निर्भर करती है. आइए देखें कि वे कौन सा कैनवास खोल रहे हैं. CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम आपकी आपत्ति को भी सुनेंगे. उन्होंने कहा कि जब आप उस पर प्रतिक्रिया दे रहे होंगे तो हम आपको इस मुद्दे पर भी सुनेंगे. इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि पर्सनल लॉ के मुद्दे आयेंगे. जिसको आपको देखना होगा.
एसजी मेहता ने कहा कि यह संवेदनशील प्रकृति का मामला है. मुझे कुछ समय दीजिए हम इस पर विचार कर सकते हैं कि सरकार का क्या रुख होगा. वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि मुझे सुने जाने का अधिकार है. मेरी शिकायत सही या गलत हो सकती है. इस पर आपका फैसला होगा. रोहतगी ने कहा कि हम ऐसे व्यक्ति हैं जो समान लिंग के हैं. हमारे पास समाज के विषमलैंगिक समूह के रूप में संविधान के तहत समान अधिकार हैं. हमारे समान अधिकारों में एकमात्र बाधा धारा 377 थी. जिसे हटा दिया गया था. अब यह अपराध नहीं रहा है. इसलिए हमारे अधिकार समान हैं.
रोहतगी ने कहा कि हम अपने घरों में गोपनीयता चाहते हैं और सार्वजनिक स्थानों पर सम्मान चाहते हैं. इसलिए हम दो लोगों के बीच वही संस्था चाहते हैं जो दूसरों के लिए उपलब्ध है. विवाह और परिवार की अवधारणा. क्योंकि हमारे समाज में शादी और परिवार का सम्मान किया जाता है.
रोहतगी ने कहा कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि एक बार हमारे अधिकार समान होने के बाद हमें यह नहीं मिलता. अमेरिका और अन्य राज्यों में यही विकास रहा है. हम एक घोषणा चाहते हैं कि हमें शादी करने का अधिकार है, उस अधिकार को राज्य द्वारा मान्यता दी जाएगी और विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जाएगा.रोहतगी ने कहा कि एक बार ऐसा हो गया तो समाज हमें स्वीकार कर लेगा. राज्य द्वारा इसे मान्यता देने के बाद ही इसे कलंक मानने से इनकार कर दिया जायेगा.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 25 नवंबर को दो समलैंगिक जोड़ों द्वारा शादी के अपने अधिकार को लागू करने और विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाह को पंजीकृत करने के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने की मांग वाली अलग-अलग याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था.
इस मामले में सोमवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) भी उच्चतम न्यायालय पहुंच गया है. एनसीपीसीआर समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के खिलाफ है. उसने कहा है कि समलैंगिक युगल अच्छे माता-पिता की भूमिका नहीं निभा सकते. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दिये अपने हलफनामे में कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम समान-लिंग वाले युगलों द्वारा बच्चे गोद लिए जाने को मान्यता नहीं देते. निकाय ने कहा है कि समान लिंग वाले माता-पिता द्वारा पाले गए बच्चों की पारंपरिक लिंग रोल मॉडल के प्रति सीमित पहुंच हो सकती है.
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याचिका में कहा गया है कि समान लिंग वाले माता-पिता की पारंपरिक लिंग रोल मॉडल के प्रति सीमित पहुंच हो सकती है और इसलिए, बच्चों की पहुंच सीमित होगी तथा उनके समग्र व्यक्तित्व विकास पर असर पड़ेगा. इसमें समलैंगिक माता-पिता द्वारा बच्चा गोद लिए जाने पर किए गए अध्ययन का उल्लेख किया गया है, जिसमें दावा किया गया है कि ऐसा बच्चा सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दोनों रूप से प्रभावित होता है. याचिका में कहा गया है कि समान लिंग वाले जोड़ों को बच्चे गोद लेने की अनुमति देना बच्चों को खतरे में डालने जैसा होता है.