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इशारों से मिलेगा इंसाफ, खुद बोल सुन नहीं सकतीं, अदालत में दूसरों की आवाज बनेंगी प्रीति

अपने जैसे हजारों बेआवाजों की आवाज बनकर इंसाफ दिलाएंगी प्रीति सोनी, एलएलबी फर्स्ट सेमेस्टर की स्पेशल स्टूडेंट पर शेफाली पांडे की रिपोर्ट.

DEAF SIGN LANGUAGE LAWYER PREETI
इशारों से मिलेगा इंसाफ (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 3 hours ago

Updated : 2 hours ago

भोपाल : इंसाफ के लिए उठती आवाजें भी जब अनसुनी रह जाती हों, तो प्रीति तो दुनिया में बेआवाज ही आई. लेकिन वो अपने जैसे हजारों बेआवाजों की आवाज बनना चाहती हैं. प्रीति सुन नहीं सकती लेकिन इशारों में दर्ज होते उसके इरादे आसमान तक सुनाई देते हैं. प्रीति सोनी का वर्तमान ये है कि वो इस समय मध्यप्रदेश के भोपाल में एलएलबी फर्स्ट सेमेस्टर की छात्रा हैं और भविष्य ये कि वकालत पूरी कर लेने के बाद संभवत: देश की तीसरी बधिर वकील होंगी. प्रीति ने अपने जैसे बधिर लोगो की आवाज बनने का फैसला क्यों किया उसके पहले आपका ये जान लेना जरुरी है कि प्रीति के मुताबिक देश में अब तक केवल दो बधिर वकील हुई हैं. तीसरी खुद प्रीति हैं, जो वकील बनने की प्रक्रिया में हैं.

बोल नहीं सकतीं फिर भी चुना एलएलबी

प्रीति ने सांकेतिक भाषा और इंटरप्रेटर के जरिए ईटीवी भारत से अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, '' एलएलबी करने की वजह ये थी कि मेरे इतने अनुभव रहे हैं, कोर्ट में, पुलिस में, मेरे जैसे बधिर लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं होती. डेफ लोगों को कोर्ट में और पुलिस स्टेशन में इतनी दिक्कतें होती हैं क्योंकि उनके पास इंटरप्रेटर नहीं होते. मैं उनकी मदद करने की कोशिश करती हूं. तो मुझे तब ही से लगता था कि मेरी इस क्षेत्र में नॉलेज कम है. मैं सीखती हूं, मैं मदद करती हूं डेफ कम्यूनिटी की. क्योंकि डेफ कम्यूनिटी के दुष्कर्म के, प्रॉपर्टी रिलेटेड केस जैसे कई मामले होते हैं, जिन्हे मैं समाधान तक ले जाना चाहती हूं.''

एलएलबी फर्स्ट सेमेस्टर की स्पेशल स्टूडेंट पर शेफाली पांडे की रिपोर्ट. (Etv Bharat)

साइन लैंग्वेज से सुलझाऊंगी मामले

प्रीति एक सपना लिए जी रही हैं, वे साइन लैग्वेज में अपना ये सपना ईटीवी भारत से बातचीत में दिखाती हैं. बताती हैं, '' इंडिया की सबसे पहली बधिर वकील सौदामिनी वो गुजर चुकी हैं. दूसरी हैं सारा सनी, जो बैंगलोर में प्रैक्टिस कर रही हैं. तीसरी मैं, तो अभी तो पढ़ाई कर रही हूं. मैं ये चाहती हूं कि मैं पूरी तरह से लॉयर का काम शुरु करूं और साइन लैग्वेज के जरिए अपनी डेफ कमयूनिटी की मदद करूं.''

घर में सवाल उठे, कॉलेज में जवाब नहीं मिले

प्रीति सोनी भोपाल के पीपुल्स कॉलेज से एलएलबी कर रही हैं. लेकिन एमए बीएड कर लेने के बाद अचानक से वकील बनने के उनके फैसले में भी काफी मुश्किलें आई. प्रीति संकेतों की भाषा में बताती हैं, '' जब मैं एलएलबी करने का प्लान कर रही थी तो पति ये नहीं चाहते थे. वे सोचते थे कि एमए कर लिया है, बीएड कर लिया है, अब वकालत क्यों करना है? पर मैं ठान चुकी थी कि अब लॉयर की भी पढ़ाई करूंगी. लेकिन दिक्कत ये थी कि उसके लिए पैसे लगते हैं. वो हमें सोचना पड़ा. मुझे लगा की फंडिग मिल जाएगी. मैंने बहुत सोचा पर मैं गिवअप नहीं करना चाहती थी. डेफ कम्यूनिटी बहुत दिक्कतों से गुजरती है. फिर जब मैं कॉलेज गई तो मैंने देखा कि सुविधा नहीं है, टीचर्स अपना बोलती रहती हैं. कोई इंटरप्रेटर नहीं है, मुझे अपना इंटरप्रिटर लाना पड़ा. साइन लैंग्वेज टीचर्स को नहीं आती, डेफ को कैसे पढ़ाना चाहिए उनके लिए पीपीटी होना चाहिए, विजुल्स होना चाहिए. कैसे एक्सेसेबल एजुकेशन होना चाहिए डेफ के लिए उन्हें डेफ कल्चर की कोई नॉलेज नहीं है. इस तरीके से बहुत सारी दिक्कतें आई मुझे.''

Sign language expert madhya pradesh preeti soni
हज़ारों मूक बधिर की अदालत आवाज बनेंगी प्रीति सोनी (Etv Bharat)

हॉस्पिटल से लेकर पुलिस स्टेशन तक डेफ को सुनने वाला कहीं नहीं

प्रीति जमीनी मुश्किलें बताती हैं कि किस तरह से न्याय का दरवाजा तो दूर हर दो कदम पर डेफ कम्यूनिटी को मुश्किल का सामना करना पड़ता है. वे कहती हैं, '' बधिर लोगों के लिए बहुत दिक्कत है. जैसे मैं भोपाल का उदाहरण देती हूं. यहां पर हॉस्पिटल एक्सेसेबल नहीं है. लॉ में राइट्स ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटी एक्ट 2016 में लिखा है कि हॉस्पिटल में इंटरप्रेटर्स होने चाहिए. सांकेतिक भाषा के इंटरप्रेटर होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है. मैं कितनी बार हॉस्पिटल जाती हूं और कहती हूं कि ये सुविधा नहीं है. संग्रहालय को हम समझना चाहते हैं, वहां भी यही दिक्कत है. कितने बधिर बच्चे अपने माता-पिता से बात नहीं कर पाते क्योकिं उन्हे साइन लैंग्वेज नहीं आती. टीचर्स बच्चों से बात नहीं किर पाते है क्योंकि उन्हे साइन लैंग्वेज नहीं आती है. उन्हें डेफ कल्चर के बारे में नहीं पता. हर जगह इंटरप्रेटर जरुरी है.''

सुने नहीं जाएंगे इसलिए कोर्ट नहीं जाते पीड़ित

प्रीति व्यवहारिक दिक्कतें बताती हैं वे बताती हैं, '' बधिर समाज के साथ न्याय बहुत मुश्किल है. दुष्कर्म के मामलों में इंटरप्रेटर ढूंढना बहुत मुश्किल है. क्योंकि पलिस उन्हें विटनेस की तरह इतेमाल करती है, क्योंकि पुलिस उन पर हावी हो जाती है, उन्हें डर लगता है. बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामले में वो स्कूल टीचर्स को ले आते हैं. टीचर्स भी साइन लैंग्वेज इंटप्रेटर नहीं होते. ना कोर्ट को ये अवेयनेस है ना पुलिस को. ये डेफ से भी पूछना चाहिए कि वे कंफर्टेबल हैं या नहीं इस इंटरप्रिटर के साथ. पुलिस अपने से तय कर लेती है किसे लेकर आना है. यही वजह है कि बधिर समाज से बहुत सारे लोग हार मान लेते हैं. वो कोर्ट जाना ही नहीं चाहते. ना पुलिस के पास जाना चाहते हैं.''

Sign language in mp court
साइन लैंग्वेज से बात करतीं प्रीति (Etv Bharat)

बधिर लड़कियां आगे आएं, हम समाधान करेंगे

प्रीति अपनी समुदाय के लिए एलएलबी पढ़ रही हैं और चाहती हैं कि और हाथ जुड़ें. वो कहती हैं, '' मेरा विजन ये है कि पहले मैं अपनी एलएलबी खत्म करके अपनी कम्यूनिटी के लिए लड़ूं. चाहे एजुकेशन हो, चाहे मेडिकल हो, दुष्कर्म के बहुत सारे मामले आते हैं. सभी डेफ लोग आएं वो भी इस लड़ाई में शामिल हों. मैं अकेले न लड़ूं वे सब भी मेरे साथ आएं. हम सब साथ मिलकर ये लड़ाई लड़ें. मैं एक बधिर महिला हूं. जैसे मैं इतना कर पा रही हू. मैं चाहती हूं और भी बधिर लड़कियां कदम बढ़ाएं आगे आएं.

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बोल नहीं सकतीं फिर भी चुना एलएलबी

प्रीति ने सांकेतिक भाषा और इंटरप्रेटर के जरिए ईटीवी भारत से अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, '' एलएलबी करने की वजह ये थी कि मेरे इतने अनुभव रहे हैं, कोर्ट में, पुलिस में, मेरे जैसे बधिर लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं होती. डेफ लोगों को कोर्ट में और पुलिस स्टेशन में इतनी दिक्कतें होती हैं क्योंकि उनके पास इंटरप्रेटर नहीं होते. मैं उनकी मदद करने की कोशिश करती हूं. तो मुझे तब ही से लगता था कि मेरी इस क्षेत्र में नॉलेज कम है. मैं सीखती हूं, मैं मदद करती हूं डेफ कम्यूनिटी की. क्योंकि डेफ कम्यूनिटी के दुष्कर्म के, प्रॉपर्टी रिलेटेड केस जैसे कई मामले होते हैं, जिन्हे मैं समाधान तक ले जाना चाहती हूं.''

एलएलबी फर्स्ट सेमेस्टर की स्पेशल स्टूडेंट पर शेफाली पांडे की रिपोर्ट. (Etv Bharat)

साइन लैंग्वेज से सुलझाऊंगी मामले

प्रीति एक सपना लिए जी रही हैं, वे साइन लैग्वेज में अपना ये सपना ईटीवी भारत से बातचीत में दिखाती हैं. बताती हैं, '' इंडिया की सबसे पहली बधिर वकील सौदामिनी वो गुजर चुकी हैं. दूसरी हैं सारा सनी, जो बैंगलोर में प्रैक्टिस कर रही हैं. तीसरी मैं, तो अभी तो पढ़ाई कर रही हूं. मैं ये चाहती हूं कि मैं पूरी तरह से लॉयर का काम शुरु करूं और साइन लैग्वेज के जरिए अपनी डेफ कमयूनिटी की मदद करूं.''

घर में सवाल उठे, कॉलेज में जवाब नहीं मिले

प्रीति सोनी भोपाल के पीपुल्स कॉलेज से एलएलबी कर रही हैं. लेकिन एमए बीएड कर लेने के बाद अचानक से वकील बनने के उनके फैसले में भी काफी मुश्किलें आई. प्रीति संकेतों की भाषा में बताती हैं, '' जब मैं एलएलबी करने का प्लान कर रही थी तो पति ये नहीं चाहते थे. वे सोचते थे कि एमए कर लिया है, बीएड कर लिया है, अब वकालत क्यों करना है? पर मैं ठान चुकी थी कि अब लॉयर की भी पढ़ाई करूंगी. लेकिन दिक्कत ये थी कि उसके लिए पैसे लगते हैं. वो हमें सोचना पड़ा. मुझे लगा की फंडिग मिल जाएगी. मैंने बहुत सोचा पर मैं गिवअप नहीं करना चाहती थी. डेफ कम्यूनिटी बहुत दिक्कतों से गुजरती है. फिर जब मैं कॉलेज गई तो मैंने देखा कि सुविधा नहीं है, टीचर्स अपना बोलती रहती हैं. कोई इंटरप्रेटर नहीं है, मुझे अपना इंटरप्रिटर लाना पड़ा. साइन लैंग्वेज टीचर्स को नहीं आती, डेफ को कैसे पढ़ाना चाहिए उनके लिए पीपीटी होना चाहिए, विजुल्स होना चाहिए. कैसे एक्सेसेबल एजुकेशन होना चाहिए डेफ के लिए उन्हें डेफ कल्चर की कोई नॉलेज नहीं है. इस तरीके से बहुत सारी दिक्कतें आई मुझे.''

Sign language expert madhya pradesh preeti soni
हज़ारों मूक बधिर की अदालत आवाज बनेंगी प्रीति सोनी (Etv Bharat)

हॉस्पिटल से लेकर पुलिस स्टेशन तक डेफ को सुनने वाला कहीं नहीं

प्रीति जमीनी मुश्किलें बताती हैं कि किस तरह से न्याय का दरवाजा तो दूर हर दो कदम पर डेफ कम्यूनिटी को मुश्किल का सामना करना पड़ता है. वे कहती हैं, '' बधिर लोगों के लिए बहुत दिक्कत है. जैसे मैं भोपाल का उदाहरण देती हूं. यहां पर हॉस्पिटल एक्सेसेबल नहीं है. लॉ में राइट्स ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटी एक्ट 2016 में लिखा है कि हॉस्पिटल में इंटरप्रेटर्स होने चाहिए. सांकेतिक भाषा के इंटरप्रेटर होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है. मैं कितनी बार हॉस्पिटल जाती हूं और कहती हूं कि ये सुविधा नहीं है. संग्रहालय को हम समझना चाहते हैं, वहां भी यही दिक्कत है. कितने बधिर बच्चे अपने माता-पिता से बात नहीं कर पाते क्योकिं उन्हे साइन लैंग्वेज नहीं आती. टीचर्स बच्चों से बात नहीं किर पाते है क्योंकि उन्हे साइन लैंग्वेज नहीं आती है. उन्हें डेफ कल्चर के बारे में नहीं पता. हर जगह इंटरप्रेटर जरुरी है.''

सुने नहीं जाएंगे इसलिए कोर्ट नहीं जाते पीड़ित

प्रीति व्यवहारिक दिक्कतें बताती हैं वे बताती हैं, '' बधिर समाज के साथ न्याय बहुत मुश्किल है. दुष्कर्म के मामलों में इंटरप्रेटर ढूंढना बहुत मुश्किल है. क्योंकि पलिस उन्हें विटनेस की तरह इतेमाल करती है, क्योंकि पुलिस उन पर हावी हो जाती है, उन्हें डर लगता है. बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामले में वो स्कूल टीचर्स को ले आते हैं. टीचर्स भी साइन लैंग्वेज इंटप्रेटर नहीं होते. ना कोर्ट को ये अवेयनेस है ना पुलिस को. ये डेफ से भी पूछना चाहिए कि वे कंफर्टेबल हैं या नहीं इस इंटरप्रिटर के साथ. पुलिस अपने से तय कर लेती है किसे लेकर आना है. यही वजह है कि बधिर समाज से बहुत सारे लोग हार मान लेते हैं. वो कोर्ट जाना ही नहीं चाहते. ना पुलिस के पास जाना चाहते हैं.''

Sign language in mp court
साइन लैंग्वेज से बात करतीं प्रीति (Etv Bharat)

बधिर लड़कियां आगे आएं, हम समाधान करेंगे

प्रीति अपनी समुदाय के लिए एलएलबी पढ़ रही हैं और चाहती हैं कि और हाथ जुड़ें. वो कहती हैं, '' मेरा विजन ये है कि पहले मैं अपनी एलएलबी खत्म करके अपनी कम्यूनिटी के लिए लड़ूं. चाहे एजुकेशन हो, चाहे मेडिकल हो, दुष्कर्म के बहुत सारे मामले आते हैं. सभी डेफ लोग आएं वो भी इस लड़ाई में शामिल हों. मैं अकेले न लड़ूं वे सब भी मेरे साथ आएं. हम सब साथ मिलकर ये लड़ाई लड़ें. मैं एक बधिर महिला हूं. जैसे मैं इतना कर पा रही हू. मैं चाहती हूं और भी बधिर लड़कियां कदम बढ़ाएं आगे आएं.

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