नई दिल्ली : 'मोदी है तो मुमकिन है' का नारा जनता के लिए है, वहीं पार्टी के भीतर 'शाह है तो राह है' जैसी लोकोक्ति चल पड़ी है. उत्तर प्रदेश के चुनाव की कमान अमित शाह ने पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले ली है.
'ईटीवी भारत' ने अमित शाह के उत्तर प्रदेश के मेगा प्लान के बारे में पहले ही बताया था. अब इस मेगा प्लान को अमलीजामा पहनाए जाने की तैयारी हो रही है. पार्टी की तरफ से जितनी भी टीमें बनाई गई हैं वह सभी गृह मंत्री अमित शाह को रिपोर्ट करेंगी और चुनाव प्रचार के हर चरण के बाद भाजपा अपने प्रचार के एजेंडे और तरीकों में भी बदलाव लाएगी. इसके लिए पार्टी की तरफ से बनाई जा रही कैंपेन कमेटी के सदस्य लगातार पार्टी के आईटी सेल के साथ चुनाव प्रचार और जमीनी तौर पर विपक्षियों के आरोप-प्रत्यारोप और मुद्दों के हिसाब से हर चरण में अलग-अलग चुनावी एजेंडे तैयार करेंगे. इसमें चुनावी रणभूमि में लगने वाले आरोपों का जवाब होगा. पार्टी पूरी तरह से नए कलेवर में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रचार-प्रसार करने के मूड में है. कैंपेन कमेटी के सदस्य लगातार चुनावी जमीन पर उठ रहे मुद्दों का सर्वे भी करते रहेंगे.
हर बार काम आ रही शाह की रणनीति
अमित शाह ने 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के प्रभारी का पद संभाला था. 2017 में विधानसभा चुनाव में बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष और फिर दोबारा 2019 में भी बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष उन्होंने लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में काफी सक्रिय रहते हुए चुनाव का जिम्मा भी संभाला था.
माना जा रहा है कि वहां की राजनीति को समझना और उसे अमलीजामा पहनाना शाह के लिए काफी आसान है. ज़ाहिर है इन तीनों चुनावों में उत्तर प्रदेश में शाह की रणनीति काम आई थी और भाजपा को बड़ी जीत मिली थी. ऐसा इसलिए भी है कि उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश में कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज खड़ी कर दी है, जिसकी पहले कई दशकों से कमी थी.इसी का फायदा उठाते हुए अमित शाह ने अगड़ी-पिछड़ी जातियों को पहली बार उत्तर प्रदेश में एक साथ लेकर चलने की रणनीति पर काम किया और यही रणनीति आज भी भाजपा के काम आ रही है.
2014 में शाह की छवि का मिला था फायदा
2014 से पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा संगठन की स्थिति चरमरा चुकी थी. अमित शाह ने डेढ़ साल तक प्रदेश में रात दिन एक कर संगठन में प्राण फूंकने का काम किया था. पन्ना प्रमुख, बूथ कार्यकर्ता, जिला पदाधिकारी ऐसे तमाम पदाधिकारियों की नियुक्ति की गई और एक मजबूत चेन बनाई गई. तब यह कहा गया कि शाह उत्तर प्रदेश में गुजरात मॉडल के आधार पर काम कर रहे हैं, लेकिन यूपी की राजनीति में जातीय समीकरण बहुत ज्यादा मायने रखते हैं. शाह की छवि एक जातिगत नेता के तौर पर नहीं थी जिसका फायदा उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिला. लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश का चुनाव वर्तमान स्थितियों की वजह से थोड़ा अलग है.
लखीमपुर समेत कई मुद्दे हावी
भारतीय जनता पार्टी के लिए यह इतना आसान नहीं है क्योंकि राज्य में इस बार थोड़ी एंटी इनकंबेंसी भी है. साथ ही विरोधी पार्टियां भी अलग-अलग तरीके से जनता पर प्रभाव डाल रही हैं, चाहे वह लखीमपुर खीरी का मामला हो या किसान आंदोलन का मुद्दा हो, बेरोजगारी हो, या कोरोना में उत्तर प्रदेश के हालात हों. ये तमाम मुद्दे भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान नहीं होंगे. यही वजह है कि एक बार फिर पार्टी के केंद्रीय नेताओं ने अमित शाह को फिर से उत्तर प्रदेश चुनाव की कमान सौंप दी है.
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सूत्रों की मानें तो दीपावली के बाद वह मिशन उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से जुट जाएंगे. राज्य संगठन की तरफ से भी यह मांग लगातार उठ रही है कि शाह के बिना राह आसान नहीं है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय महासचिव का कहना है कि अमित शाह यूपी की नब्ज को भली-भांति समझते हैं और, इस चुनाव को अपने पक्ष में करने के लिए अमित शाह से बड़ा रणनीतिकार और कोई नही हो सकता है.
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