टोंक. जिले के पीपलू में गुर्जर ढाणी बनवाड़ा ऐसी ढाणी है, जहां हर घर के बाहर नीम का छायादार पेड़ अवश्य मिलेगा. इस ढाणी की अब पहचान ही यहां लगे छायादार नीम के दरख्तों से होने लगी है. यहां प्रत्येक घर के बाहर दो या अधिक कतारबद्ध नीम के पेड़ लगे हुए है, इस गांव में नए मकान बनाने वाले भी सबसे पहले अपने मकान सड़क किनारे नहीं बनाकर जगह छोड़ते है और नीम के कम से कम दो पेड़ लगाते है.
बनवाड़ा के हर घर के बाहर लगे नीम के दो छायादार पेड़ देखकर सहज ही लगता है कि वाकई इस गांव में जब पेड़ लगाने की शुरुआत हुई होगी, तो उन लोगों की प्रकृति और पर्यावरण के लिए सोच कितनी बड़ी रही होगी. गांव वालों ने गांव बसने से अब तक लगभग 90 सालों से इस परंपरा को जिंदा रखा है और यह गांव अन्य गांवों के लिए विश्व पर्यावरण दिवस पर मिशाल है.
बनवाड़ा के बसने और पेड़ लगाने की कहानी भी अजीब है, जिसके बारे में इस गांव के बुजुर्ग बताते है कि 90 साल पहले जयपुर के फागी तहसील के लाखोलाई और मोहब्बतपुरा से गोपी कांवर और मालू चांदना साला-बहनोई भेड़ बकरियां चराने के लिए यहां आए थे और दोनों यहीं बस गए. उस समय उन्होंने अपने अपने घर के बाहर दो-दो नीम के पेड़ लगाए थे.
उनके तीन-तीन संतान हुई और उन्होंने भी अपने नए घर बनाए तो, वहां भी घर के बाहर दो-दो नीम के पेड़ लगाए. इस तरह दो घर से कई और घर ढाणी में बन गए है. साथ ही सभी घरों के बाहर दो या अधिक नीम के पेड़ अवश्य लगे हुए है. नीम के छायादार पेड़ पल्लवित होने सहित पर्यावरण को स्वच्छ रखे हुए है.
नीम का है विशेष महत्व
गुर्जर समाज के आराध्य देव भगवान देवनारायण के नीम की पांती का महत्व है. ऐसे में वे नीम की पूजा सेवा करते है. इन्हें न काटते है और न ही जलाते है. नीम के पेड़ को देवता समान और सर्वरोगहारी मानकर नीम के पेड़ लगाने, इसको बचाने और अपनी ढाणी की पहचान बनाने में सामूहिक प्रयास करने में जुटे हुए है.
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इससे सर्वाधिक नीम के पेड़ों ने इसकी नीमों की ढाणी के रूप में अलग ही पहचान बनाई है. यहां पर्यावरण की दृष्टि से प्रतिवर्ष वर्षाकाल में प्रत्येक परिवार के लोग अपने मकानों, खेत खलिहानों और सार्वजनिक स्थलों पर सिर्फ नीम के पेड़ लगाने का कार्य करते है.