श्रीगंगानगर. मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में प्रतिनियुक्ति पर बाबूगिरी कर रहे शारीरिक शिक्षक ओम प्रकाश शर्मा द्वारा 35 करोड़ के फर्जीवाड़े की जांच संयुक्त निदेशक बीकानेर देव लता की देखरेख में शुरू हो गई है.
मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी एवं पदेन बी.आर.सी.एफ.समग्र शिक्षा अभियान कार्यालय में पिछले 10 सालों से प्रतिनियुक्ति पर तैनात शारीरिक शिक्षक ओमप्रकाश ने सेवानिवृत्ति दस्तावेज तैयार कर फर्जी तरीके से सेवानिवृत्ति पर मिलने वाले 300 पीएल व इनकेसमेंट (नगदीकरण) का फर्जी तरीके से भुगतान अपने रिश्तेदारों के खातों में करके 35 करोड़ का सरकार को चूना लगाया है.
पढ़ें: अजमेर में फिर झमा-झम
आरोपी शिक्षक द्वारा इतने रुपयों का फर्जीवाड़ा करने के लिए उसने बाबूओ की छुट्टियों के फर्जी बिल बनाए और अपने 13 रिश्तेदारों को शिक्षा विभाग में तैनात दिखाया. फिर हर माह इनके वेतन के बिल बनाकर ट्रेजरी में भेजता रहा और जिला कोषाधिकारी कार्यालय के अधिकारी भी इन्हें सही मानकर भुगतान करते रहे.
शिक्षा विभाग में शारीरिक शिक्षक के घपले का यह आंकड़ा 50 करोड़ तक पहुंच सकता है. फर्जीवाड़े की जांच करने सीबीईओ कार्यालय में प्रारंभिक शिक्षा विभाग निदेशालय बीकानेर के निर्देशों पर निदेशालय के उच्च अधिकारी और बीकानेर निदेशालय के वरिष्ठ लेखाधिकारी सहित कई कार्मिकों के टीम जांच में जुटी हुई है.
पढ़ें: बसपा विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने पार्टी प्रभारी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया
उधर फर्जीवाड़ा पकड़ में आने के बाद विभाग ने शिक्षक के खिलाफ पुरानी आबादी थाना में मुकदमा दर्ज करवाने के बाद, आरोपी ओमप्रकाश शर्मा परिवार सहित फरार हो गया है. वहीं इतना बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद शिक्षा विभाग ने आरोपी शिक्षक ओम प्रकाश को निलंबित कर दिया है.
पीटीआई ओम प्रकाश शर्मा की ड्यूटी राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय नंबर 7 में थी लेकिन 2009 से वह ब्लॉक शिक्षा विभाग में कैसियर के सहायक का काम कर रहा था. हैरानी यह रही कि इन 10 सालों में उसके गड़बड़ घोटाले को कोई भी अधिकारी नहीं पकड़ पाया. ऑफिस में कई अधिकारियों से अच्छी पहचान को लेकर उसने फायदा उठाया.
पढ़ें: जम्मू कश्मीर सरकार का बड़ा आदेश, सारे पर्यटकों को बाहर जाने को कहा, अमरनाथ यात्रा पर हमले की आशंका
प्रारंभिक शिक्षा विभाग बीकानेर से जांच के लिए पहुंची संयुक्त निदेशक देवलता ने बताया कि फर्जीवाड़े की जांच चल रही है. अभी तक प्राथमिक रूप से एक स्तर की जांच लगभग कर ली गई है. जिसमें फर्जीवाड़े का काफी बड़ा अमाउंट है. अब तक की जांच में जो सामने आया है उसमें फर्जीवाड़ा 35 करोड़ के आसपास लग रहा है. हालांकि उन्होंने कहा कि फर्जीवाड़ा 50 करोड़ तक पहुंच सकता है.
कैसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा-
मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी विष्णुदत्त स्वामी ने बताया कि कंसलटिंग बाबू बिलों का मिलान कर रहे थे, तभी एक ही क्रमांक के कुछ बिल दो-दो बार कटे हुए सामने आए. जिसके बाद लिपिक ने सीवीओ हंसराज को लिखित में शिकायत पत्र सौंपा. इस कड़ी में हंसराज ने एएओ, एसीबीओ प्रथम व यूडीसी की कमेटी बनाकर तुरंत प्रभाव से जांच शुरू करवाई.
उन्होंने बताया कि सामान्य जांच के रूप में 2015 तक के रिकॉर्ड को खंगाला गया है. जिसमें 172 फर्जी बिलों को तैयार किया हुआ पाया गया है और इन बिलों की राशि की गणना की गई तो यह करीब 35 करोड़ रुपये की राशि सामने आई है. इस दौरान अन्य रिकॉर्ड को भी जब्त कर लिया गया है. जिसकी विभागीय जांच जारी है. आरोपी पीटीआई इतना शातिर था कि उसने इस तरह फर्जीवाड़ा करने के लिए खुद को ही दस्तावेज तौर पर दो बार सेवानिवृत्त दिखा घोटाला किया.
आरोपी ने अपने 13 रिश्तेदारों को फर्जी तरीके से दस्तावेज तैयार कर नियुक्ति दिखाई और फिर उनको सेवानिवृत्ति भी किया. इस दौरान वेतन और सेवानिवृत्ति परिलाभों के साथ छुट्टियों के रुपयों के फर्जी बिल बनाता रहा. आरोपी बिलों पर खुद ही अधिकारियों के हूबहू हस्ताक्षर कर लेता था और फिर सभी रिश्तेदारों के नाम से बैंक अकाउंट खुलवा उसी में पूरी रकम डलवा लेता. पूरे मामले में बैंक अधिकारियों व जिला कोषाधिकारीयों की भी मिलीभगत सामने आ रही है.