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Special: गुम हो रहे तालाब और कुंए, वाटर टैंकों पर भी इंसानों ने डाला डेरा - City council careless

प्राचीन तालाब और कुंए पहले गांवों की पहचान और शान हुआ करते थे. क्षेत्र में जितने तालाब और कुंए होते थे वह उतना ही समृद्ध माना जाता था, लेकिन समय के चक्र के साथ यह भी बीते दिनों की बातें हो गईं. अब तालाबों, बावड़ी और कुंए का पानी सूखने के साथ ही यहां की भूमि पर अतिक्रमण कर लिया गया है. यहां के वाटर टैंकों पर भूमाफिया का कब्जा है. नगर परिषद की उदासीनता और प्रशासन की लापरवाही के कारण शिकायत के बाद भी अतिक्रमण किया जा रहा है.

Ponds, water tanks being occupied
तालाबों, वाटर टैंकों पर हो रहा कब्जा
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Published : Sep 30, 2020, 3:27 PM IST

Updated : Sep 30, 2020, 4:23 PM IST

श्रीगंगानगर. महाराजा गंगा सिंह के प्रयासों से 1927 में पंजाब से गंगनहर का पानी जिले के अंदर तक लाया गया था. गंगनहर का पानी जिले में आने से पहले लोगों को प्राचीन तालाब, कुंए, बावड़ी से जल लेना पड़ता था. गंगनहर आने के बाद लोग पीने के पानी के लिए इसी नहर का प्रयोग करने लगे. ऐसे में जब प्राचीन कुंए, जोहड़, तालाब वक्त के साथ अस्तित्व खोने लगे तो इनके आसपास लोगों ने कब्जा करना शुरू कर दिया. जिले में सैकड़ों की संख्या में वाटर टैंकों पर आज लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है.

जिला मुख्यालय में प्राचीन तालाबों और कुंए की बात करें तो वह भी अब केवल यादगार के रुप रह गए हैं. शहर की पुरानी आबादी वाला क्षेत्र कभी रामनगर के नाम से जाना जाता था जिसमें रियासत कालीन कुंआ हजारों लोगों की प्यास बुझाता था. नगर परिषद की उदासीनता और लापरवाही के कारण आज यह प्राचीन कुंआ अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया है. यहीं नही इस कुंए के आसपास मवेशियों और लोगों के पानी के लिए तालाब हुआ करता था जो अब पूरी तरह से समाप्त हो गया है. अब यहां लोगों ने तालाब की भूमि पर कब्जा कर बड़े-बड़े मकान बना लिए हैं. जिले में अतिक्रमण का खेल लंबा-चौड़ा है लेकिन हमारे प्राचीन स्थानों पर इससे बड़ा नुकसान हुआ है.

गुम हो रहे तालाब और कुंए

यह भी पढ़ें: Special: शासन-प्रशासन की घोर लापरवाही से मिटता जा रहा है पाल बिचला और आम तालाब का अस्तित्व

अधिकांश जिले में तालाबों पर अतिक्रमण हो चुका है. अतिक्रमण हटाने के लिए उच्च न्यायालय तक कार्रवाई की अपील की जा चुकी है लेकिन सरकारी तन्त्र में फाइलें उलझकर रह गईं. ग्रामीण क्षेत्र में तालाबों पर कब्जा होना आम बात हो गई है. कोई इसका विरोध करता है तो भूमाफिया स्थानीय अधिकारियों से सांठगांठ कर मामले को दबा देते हैं. वर्तमान में तालाब की स्थिति बेहद खराब है. तालाबों पर अवैध कब्जे की शिकायत को लेकर ग्रामीणों ने तहसील स्तर से लेकर जिला स्तर और उच्च न्यायालय तक का दरवाजा खटखटाया है लेकिन समस्या का हल नहीं निकल सका.

Old wells are dry
सूखे पड़े हैं पुराने कुंए

यह भी पढ़ें: अलवर में एक दिन छोड़कर हो रही पानी की सप्लाई, जलदाय विभाग निर्णय से लोग परेशान

श्रीगंगानगर शहर के अलावा जिले में जिन प्राचीन स्थलों पर अवैध कब्जे किए गए हैं, उसे खाली करवाने के लिए जिला कलेक्टर से लेकर उच्च न्यायालय तक में कई बार गुहार लगाई गई है, लेकिन अतिक्रमण जारी है. इसी प्रकार शहर के बीचो-बीच गुजरने वाली ए-माइनर नहर पर से अवैध कब्जा हटाने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई . उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी कब्जा नहीं हटाया गया तो मामला ग्रीन ट्रिब्यूनल दिल्ली में गया. वहां से कब्जा हटाने का आदेश मिलने के बाद सिंचाई विभाग ने खानापूरी तो की लेकिन कब्जा आज भी कायम है.

Colonies settled in pond area
तालाब के क्षेत्र में बस गईं कॉलोनियां

फिलहाल ए-माइनर नहर पर कब्जे जारी हैं. ए-माइनर नहर शहर से गुजरती है ओर करीब 20 गांव को लोग इसके पानी से न केवल प्यास बुझाते हैं बल्कि सिंचाई कार्य में में भी नहर के पानी का ही प्रयोग करते हैं. शहर में जगह-जगह नहर पर अतिक्रमण ये बताने के लिए काफी है कि सिंचाई अधिकारी इन अवैध कब्जों को लेकर जानबूझकर कर अंजान बने हुए हैं. जिला प्रशासन को नहर पर अतिक्रमण की शिकायत मिलती है तो सिंचाई विभाग कब्जे हटाने का अभियान चलाकर खानापूरी कर लेता है जिससे अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद हैं.

प्राचीन तालाब पर कब्जे के बारे में लोग बताते हैं कि इस तालाब से हजारों लोग पहले पानी पीते थे लेकिन वक्त के साथ अतिक्रमण बढ़ता गया और अब इनका अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है. अब यह कुआं केवल स्मारक स्थल बन के रह गया है और यहां पर साल में एक बार गणगौर की पूजा की जाती है. ऐसे ही गंगनहर पर लगातार हो रहे कब्जे यह दर्शाते हैं कि सिंचाई टैंको पर माफिया की नजर टेढ़ी है जिससे सिंचाई कार्य भी प्रभावित हो रहा है.

श्रीगंगानगर. महाराजा गंगा सिंह के प्रयासों से 1927 में पंजाब से गंगनहर का पानी जिले के अंदर तक लाया गया था. गंगनहर का पानी जिले में आने से पहले लोगों को प्राचीन तालाब, कुंए, बावड़ी से जल लेना पड़ता था. गंगनहर आने के बाद लोग पीने के पानी के लिए इसी नहर का प्रयोग करने लगे. ऐसे में जब प्राचीन कुंए, जोहड़, तालाब वक्त के साथ अस्तित्व खोने लगे तो इनके आसपास लोगों ने कब्जा करना शुरू कर दिया. जिले में सैकड़ों की संख्या में वाटर टैंकों पर आज लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है.

जिला मुख्यालय में प्राचीन तालाबों और कुंए की बात करें तो वह भी अब केवल यादगार के रुप रह गए हैं. शहर की पुरानी आबादी वाला क्षेत्र कभी रामनगर के नाम से जाना जाता था जिसमें रियासत कालीन कुंआ हजारों लोगों की प्यास बुझाता था. नगर परिषद की उदासीनता और लापरवाही के कारण आज यह प्राचीन कुंआ अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया है. यहीं नही इस कुंए के आसपास मवेशियों और लोगों के पानी के लिए तालाब हुआ करता था जो अब पूरी तरह से समाप्त हो गया है. अब यहां लोगों ने तालाब की भूमि पर कब्जा कर बड़े-बड़े मकान बना लिए हैं. जिले में अतिक्रमण का खेल लंबा-चौड़ा है लेकिन हमारे प्राचीन स्थानों पर इससे बड़ा नुकसान हुआ है.

गुम हो रहे तालाब और कुंए

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अधिकांश जिले में तालाबों पर अतिक्रमण हो चुका है. अतिक्रमण हटाने के लिए उच्च न्यायालय तक कार्रवाई की अपील की जा चुकी है लेकिन सरकारी तन्त्र में फाइलें उलझकर रह गईं. ग्रामीण क्षेत्र में तालाबों पर कब्जा होना आम बात हो गई है. कोई इसका विरोध करता है तो भूमाफिया स्थानीय अधिकारियों से सांठगांठ कर मामले को दबा देते हैं. वर्तमान में तालाब की स्थिति बेहद खराब है. तालाबों पर अवैध कब्जे की शिकायत को लेकर ग्रामीणों ने तहसील स्तर से लेकर जिला स्तर और उच्च न्यायालय तक का दरवाजा खटखटाया है लेकिन समस्या का हल नहीं निकल सका.

Old wells are dry
सूखे पड़े हैं पुराने कुंए

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श्रीगंगानगर शहर के अलावा जिले में जिन प्राचीन स्थलों पर अवैध कब्जे किए गए हैं, उसे खाली करवाने के लिए जिला कलेक्टर से लेकर उच्च न्यायालय तक में कई बार गुहार लगाई गई है, लेकिन अतिक्रमण जारी है. इसी प्रकार शहर के बीचो-बीच गुजरने वाली ए-माइनर नहर पर से अवैध कब्जा हटाने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई . उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी कब्जा नहीं हटाया गया तो मामला ग्रीन ट्रिब्यूनल दिल्ली में गया. वहां से कब्जा हटाने का आदेश मिलने के बाद सिंचाई विभाग ने खानापूरी तो की लेकिन कब्जा आज भी कायम है.

Colonies settled in pond area
तालाब के क्षेत्र में बस गईं कॉलोनियां

फिलहाल ए-माइनर नहर पर कब्जे जारी हैं. ए-माइनर नहर शहर से गुजरती है ओर करीब 20 गांव को लोग इसके पानी से न केवल प्यास बुझाते हैं बल्कि सिंचाई कार्य में में भी नहर के पानी का ही प्रयोग करते हैं. शहर में जगह-जगह नहर पर अतिक्रमण ये बताने के लिए काफी है कि सिंचाई अधिकारी इन अवैध कब्जों को लेकर जानबूझकर कर अंजान बने हुए हैं. जिला प्रशासन को नहर पर अतिक्रमण की शिकायत मिलती है तो सिंचाई विभाग कब्जे हटाने का अभियान चलाकर खानापूरी कर लेता है जिससे अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद हैं.

प्राचीन तालाब पर कब्जे के बारे में लोग बताते हैं कि इस तालाब से हजारों लोग पहले पानी पीते थे लेकिन वक्त के साथ अतिक्रमण बढ़ता गया और अब इनका अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है. अब यह कुआं केवल स्मारक स्थल बन के रह गया है और यहां पर साल में एक बार गणगौर की पूजा की जाती है. ऐसे ही गंगनहर पर लगातार हो रहे कब्जे यह दर्शाते हैं कि सिंचाई टैंको पर माफिया की नजर टेढ़ी है जिससे सिंचाई कार्य भी प्रभावित हो रहा है.

Last Updated : Sep 30, 2020, 4:23 PM IST
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