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नवरात्री 2019 का छठा दिनः माता के छठें रूप में होती है अर्बुदा देवी की पूजा

सीकर में अरावली पर्वत पर स्थित अर्बुदा देवी का मंदिर है. बता दें कि इस पौराणिक मंदिर में माता के होठों की पूजा होती है. कहा जाता है कि जब सती के 52 टुकड़े हुए थे तो उनमें से मां के होठ इसी स्थान पर गिरे थे.

सिरोही की खबर, Aravali Mountains
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Published : Oct 4, 2019, 6:55 PM IST

सिरोही. देशभर में रविवार से घट स्थापना के साथ नवरात्र शुरू हो चुके है. 9 दिनों तक महाशक्ति जगदंबा जग जननी की उपासना में देशवासी लीन है. इसी क्रम में हम आपको अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य सिरोही जिले के माउंट आबू में बसी एक शक्ति पीठ से परिचित करवाने जा रहे हैं. यहां पर माता के होठों की पूजा होती है. माना जाता है कि सती के जब 52 टुकड़े हुए थे, तो उनमें से मां के होंठ यानी "अधर" इसी स्थान पर गिरे थे. इसीलिए इसे अधर देवी भी कहा जाता है.

बात की जाएं यदि प्रामाणिकता की, तो इस शक्ति पीठ यानी अधर देवी का प्रमाण हमें स्कंद पुराण के प्रभास खंड में मिलता है और यह 5500 वर्ष पुराना है. कुछ वर्षों पूर्व में संबित साधना यंत्र विश्वप्रसिद्ध गुरु स्वर्गीय स्वामी ईश्वरानंद गिरी जी महाराज ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि मां का यहां पर साक्षात निवास हैं. इसीलिए मंदिर के बाहर तक तो आपको कैमरा, मोबाइल और वीडियोग्राफी फोटोग्राफी अलाउड है, लेकिन मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही यह सब रखवा लिया जाता है.

स्कंद पुराण के प्रभास खंड के अनुसार ही यह उल्लेख आता है की पास्कल नाम का एक दैत्य यहां के आस-पास रहने वाले सभी साधू, सन्यासियों और संतों का अपमान करता था. उन्हें कहीं पर भी शांति पूर्वक भक्ति नहीं करने देता था. इसी से व्यथित होकर मां जगदंबा की सभी ने आराधना की, और भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने पास्कल नाम के इस दैत्य से कई वर्षों तक युद्ध किया . युद्ध में विजय नहीं मिलने पर माता ने एक उपाय ढूंढा और एक विशाल शिला इस दैत्य के ऊपर दे मारी और उसके बाद अपने पैरों से इस शीला को पास्कल नामक दैत्य के ऊपर दबाकर मां कात्यायनी यहीं पर ही खड़ी हो गई.

माता के छठे रूप में होती है अर्बुदा देवी की पूजा

पढ़ें- डीजीपी की पहल, पुलिस मुख्यालय के स्वच्छता कर्मियों को कराया अल्पाहार

आज मां का वह स्वरूप तो यहां नहीं दिखता है, लेकिन उनके पैरों के पद चिन्हों की छाप इस शिला पर पूरी तरह साफ साफ दिखाई देती हैं. बीते हुए समय में यहां संबित साधकों ने शहर के प्रतिष्ठित व्यवसाई और संबित साधक गजानंद अग्रवाल से इस स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया.

बता दें कि शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को यहां पर भव्य मेला भरता है. नवरात्र में भी शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को यहां विशेष पूजन किया जाता है. अदर देवी के नौ रूपों में छठवें स्वरूप के रूप में माँ कात्यायनी का अवतरित रूप माना जाता हैं.

दुर्गा सप्तशती में भी माँ का छठवां स्वरूप माँ कात्यायनी का है. इसलिए छठवें दिन भी यहां पर विशेष पूजन और हवन होते हैं. साथ ही देश-प्रदेश से श्रद्धालु के संग बड़ी संख्या में मां के पूजन के लिए दरबार में धोक लगाते हैं और यह आंजणा, चौधरी, चौहान, परमार सहित अन्य वंशो की कुलदेवी भी मानी जाती है.

सिरोही. देशभर में रविवार से घट स्थापना के साथ नवरात्र शुरू हो चुके है. 9 दिनों तक महाशक्ति जगदंबा जग जननी की उपासना में देशवासी लीन है. इसी क्रम में हम आपको अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य सिरोही जिले के माउंट आबू में बसी एक शक्ति पीठ से परिचित करवाने जा रहे हैं. यहां पर माता के होठों की पूजा होती है. माना जाता है कि सती के जब 52 टुकड़े हुए थे, तो उनमें से मां के होंठ यानी "अधर" इसी स्थान पर गिरे थे. इसीलिए इसे अधर देवी भी कहा जाता है.

बात की जाएं यदि प्रामाणिकता की, तो इस शक्ति पीठ यानी अधर देवी का प्रमाण हमें स्कंद पुराण के प्रभास खंड में मिलता है और यह 5500 वर्ष पुराना है. कुछ वर्षों पूर्व में संबित साधना यंत्र विश्वप्रसिद्ध गुरु स्वर्गीय स्वामी ईश्वरानंद गिरी जी महाराज ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि मां का यहां पर साक्षात निवास हैं. इसीलिए मंदिर के बाहर तक तो आपको कैमरा, मोबाइल और वीडियोग्राफी फोटोग्राफी अलाउड है, लेकिन मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही यह सब रखवा लिया जाता है.

स्कंद पुराण के प्रभास खंड के अनुसार ही यह उल्लेख आता है की पास्कल नाम का एक दैत्य यहां के आस-पास रहने वाले सभी साधू, सन्यासियों और संतों का अपमान करता था. उन्हें कहीं पर भी शांति पूर्वक भक्ति नहीं करने देता था. इसी से व्यथित होकर मां जगदंबा की सभी ने आराधना की, और भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने पास्कल नाम के इस दैत्य से कई वर्षों तक युद्ध किया . युद्ध में विजय नहीं मिलने पर माता ने एक उपाय ढूंढा और एक विशाल शिला इस दैत्य के ऊपर दे मारी और उसके बाद अपने पैरों से इस शीला को पास्कल नामक दैत्य के ऊपर दबाकर मां कात्यायनी यहीं पर ही खड़ी हो गई.

माता के छठे रूप में होती है अर्बुदा देवी की पूजा

पढ़ें- डीजीपी की पहल, पुलिस मुख्यालय के स्वच्छता कर्मियों को कराया अल्पाहार

आज मां का वह स्वरूप तो यहां नहीं दिखता है, लेकिन उनके पैरों के पद चिन्हों की छाप इस शिला पर पूरी तरह साफ साफ दिखाई देती हैं. बीते हुए समय में यहां संबित साधकों ने शहर के प्रतिष्ठित व्यवसाई और संबित साधक गजानंद अग्रवाल से इस स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया.

बता दें कि शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को यहां पर भव्य मेला भरता है. नवरात्र में भी शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को यहां विशेष पूजन किया जाता है. अदर देवी के नौ रूपों में छठवें स्वरूप के रूप में माँ कात्यायनी का अवतरित रूप माना जाता हैं.

दुर्गा सप्तशती में भी माँ का छठवां स्वरूप माँ कात्यायनी का है. इसलिए छठवें दिन भी यहां पर विशेष पूजन और हवन होते हैं. साथ ही देश-प्रदेश से श्रद्धालु के संग बड़ी संख्या में मां के पूजन के लिए दरबार में धोक लगाते हैं और यह आंजणा, चौधरी, चौहान, परमार सहित अन्य वंशो की कुलदेवी भी मानी जाती है.

Intro:माता का छठा रूप है अर्बूदा देवी

एंकर --- देशभर में रविवार से घट स्थापना के साथ नवरात्र शुरू हो चुके है 9 दिनों तक महाशक्ति जगदंबा जग जननी की उपासना में देशवासी लीन है । इसी क्रम में हम आपको अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य सिरोही जिले के माउंट आबू में बसी एक शक्ति पीठ से परिचित करवाने जा रहे हैं जहां पर माता के होठों की पूजा होती है माना जाता है कि सती के जब 52 टुकड़े हुए थे तो उनमें से मां के होंठ यानी ""अधर,, इसी स्थान पर गिरे थे । इसीलिए इसे अधर देवी भी कहा जाता है ।
Body:बात की जाएं यदि प्रामाणिकता की, तो इस शक्ति पीठ यानी अधर देवी का प्रमाण हमें स्कंद पुराण के प्रभास खंड में मिलता है । और 5500 वर्ष पुराना है । कुछ वर्षों पूर्व में संबित साधना यंत्र विश्वप्रसिद्ध गुरु स्वर्गीय स्वामी ईश्वरानंद गिरी जी महाराज ने भी इस बात की पुष्टि की थी , की मां का यहां पर साक्षात निवास है । इसीलिए मंदिर के बाहर तक तो आपको कैमरा मोबाइल व वीडियोग्राफी फोटोग्राफी अलाउड है लेकिन मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही यह सब एक तरफ रखवा लिया जाता है ।
स्कंद पुराण के प्रभास खंड के अनुसार ही यह उल्लेख आता है की पास्कल नाम का एक दैत्य यहां के आसपास रहने वाले सभी साधू सन्यासियों व संतों का अपमान करता था। उन्हें कहीं पर भी शांति पूर्वक भक्ति नहीं करने देता था । इसी से व्यथित होकर मां जगदंबा की सभी ने आराधना की , ओर भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने पास्कल नाम के इस दैत्य से कई वर्षों तक युद्ध किया । युद्ध में विजय नहीं मिलने पर माता ने एक उपाय ढूंढा और एक विशाल शिला इस दैत्य के ऊपर दे मारी । और उसके बाद अपने पैरों से इस शीला को पास्कल नामक दैत्य के ऊपर दबाकर मां कात्यायनी यहीं पर ही खड़ी हो गई । आज मां का वह स्वरूप तो यह नहीं दिखता । लेकिन उनके पैरों के पद चिन्हों की छाप इस शिला पर पूरी तरह साफ साफ दिखाई देती है । बीते हुए समय में यहां संबित साधकों ने शहर के प्रतिष्ठित व्यवसाई व संवित साधक गजानंद अग्रवाल से इस स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया ।

Conclusion:शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को यहां पर भव्य मेला भरता है नवरात्र में भी शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को यहां विशेष पूजन किया जाता है अदर देवी देवी के नौ रूपों में छठवें " स्वरूप के रूप में माँ कात्यायनी का अवतरित रूप माना जाता हैं। दुर्गा सप्तशती में भी माँ का छठवां स्वरूप माँ कात्यायनी का है । इसलिए छठवें दिन भी यहां पर विशेष पूजन व हवन होते हैं साथ ही देश प्रदेश से श्रद्धालु के संग बड़ी संख्या में मां के पूजन के लिए दरबार में धोक लगाते हैं । और यह आंजणा, चौधरी, चौहान परमार सहित अन्य वंशो की कुलदेवी भी मानी जाती है ।
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