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स्पेशलः मार्केट में रेडिमेड रजाई और कंबल की बहार, रजाई-गद्दा बनाने वाले कारिगरों पर मंदी की मार

सर्दियां गुलाबी होने लगी हैं. राजस्थान के शेखावाटी इलाके की कड़ाके की ठंड सुर्खियों में रहती है. ऐसे में रजाई कंबल का कारोबार भी परवान पर है. लेकिन परंपरागत रूई की रजाई बनाने वाले कारिगर मायूस हैं. वहज है लोगों का रेडीमेड के प्रति बढ़ता लगाव. ऐसे में रूई पींदने से लेकर खोलियां रंगने वाले रंगरेजों के काम पर असर पड़ा है.

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सीकर की रजाई पर रेडीमेड की मार
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Published : Nov 12, 2020, 12:42 PM IST

सीकर. सर्दी के मौसम की शुरुआत होते ही बाजारों में गर्म कपड़े की बिक्री शुरू हो गई है. कपड़ों के साथ साथ इस सीजन में रजाई कंबल का कारोबार भी जोरों पर है. दिवाली से पहले ही हल्की ठंड शुरू होने के साथ ही इनकी बिक्री शुरू हो गई है. सर्दियां बढ़ने के साथ ही सीकर के बाजारों में रजाई और कंबल की बिक्री में भी तेजी आ जाती है.

सीकर की रजाई पर रेडीमेड की मार

सर्दियों मे रूईगरों के चेहरे मायूस

सीकर में परंपरागत तौर पर सर्दियों की शुरूआत के साथ लोग रूई पीनगरों को रजाई गद्दे तैयार करने का ऑर्डर दे दिया करते थे. शहर में 50 घरों और दुकानों में परंपरागत तौर पर रूई पींदने और रजाई गद्दे तैयार करने का काम होता है. इस काम में रूई पींदने वालों से लेकर रजाई गद्दों को खोलियां रंगने वालों, रजाई में धागा डालने वालों को भी रोजगार मिलता था. लेकिन अब ये लोग मायूस हैं. सर्दियों के तीखेपन में तो कोई कमी नहीं आई है लेकिन परंपरागत काम के प्रति लोगों की बेरुखी बढ़ने से इन लोगों का मन दुखी है. आजकल लोग हर सामान के लिए रेडीमेड दुकानों की तरफ जा रहे हैं. इसलिए रूई का काम करने वालों का धंधा सर्दियों में ठंडा होता जा रहा है.

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परंपरागत रूईगरों में मायूसी

पढ़ें- एक ही दिन धनतेरस और छोटी दिवाली का संयोग, जानें क्या खरीदना होता है शुभ

रेडीमेड रजाई कारोबार ने तोड़ी कमर

एक जमाना था जब रजाई और कंबल का पूरा काम स्थानीय स्तर पर ही होता था. वर्तमान में रेडिमेड कारोबार ने रूईगरों की की कमर तोड़ दी है. सर्दी के मौसम की बात करें तो पहले शहर में जगह जगह रुई पिनाई का काम करने वाले रहते थे और रूई पिनाई करके रजाईयां तैयार करते थे. पिछले कुछ साल में रेडीमेड रजाई और कंबल ने इस कारोबार पर कब्जा जमा लिया है. अब बाजारों में रेडीमेड रजाई की भरमार है. इसमें जयपुरी रजाई, साउथ इंडियन रजाई के साथ-साथ कोरियन और नेपाली कंबल का कारोबार भी जोरों पर है. यही रेडीमेड गर्म कपड़े लोगों की पहली पसंद बनते जा रहे हैं. इनकी डिजायनदार और वजन में हल्के होने के कारण लोग इन्हें खरीद रहे हैं. यही वजह है कि रुई पिनाई का काम करने वालों पर संकट खड़ा हो गया है.

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रेडीमेड रजाईयों का कारोबार जोरों पर

पढ़ें- कोरोना काल में लाखों महिलाओं के लिए वरदान साबित हुई राजस्थान ग्रामीण आजीविका मिशन योजना

रूई के काम से जुड़े कई परिवार प्रभावित

रूईगरों के पास अब बहुत कम संख्या में रजाई भराने के लिए लोग आ रहे हैं. सर्दी के सीजन में भी इनके पास बहुत कम काम रह गया है. पहले रजाई के साथ साथ गद्दे भरने का काम भी जोरों पर चलता था लेकिन अब यह काम तो बिल्कुल कम ही हो चुका है. ज्यादातर लोग डबल बेड के रेडिमेड गद्दे ही खरीदने लगे हैं.

सीकर में परंपरागत रूई की रजाई तैयार करने वालों की संख्या धीरे धीरे कम होती जा रही है. रूई पिनाई के साथ साथ कई लोगों को रोजगार मिलता था, कई महिलाएं रजाई में धागा डालने का काम करती थीं, रजाई के कवर बनाने वाले कारीगरों को भी रोजगार मिलता था. लेकिन रेडीमेड का बाजार लगातार बढ़ने के कारण परंपरागत काम करने वालो को यह धंधा छोड़ना पड़ रहा है.

सीकर. सर्दी के मौसम की शुरुआत होते ही बाजारों में गर्म कपड़े की बिक्री शुरू हो गई है. कपड़ों के साथ साथ इस सीजन में रजाई कंबल का कारोबार भी जोरों पर है. दिवाली से पहले ही हल्की ठंड शुरू होने के साथ ही इनकी बिक्री शुरू हो गई है. सर्दियां बढ़ने के साथ ही सीकर के बाजारों में रजाई और कंबल की बिक्री में भी तेजी आ जाती है.

सीकर की रजाई पर रेडीमेड की मार

सर्दियों मे रूईगरों के चेहरे मायूस

सीकर में परंपरागत तौर पर सर्दियों की शुरूआत के साथ लोग रूई पीनगरों को रजाई गद्दे तैयार करने का ऑर्डर दे दिया करते थे. शहर में 50 घरों और दुकानों में परंपरागत तौर पर रूई पींदने और रजाई गद्दे तैयार करने का काम होता है. इस काम में रूई पींदने वालों से लेकर रजाई गद्दों को खोलियां रंगने वालों, रजाई में धागा डालने वालों को भी रोजगार मिलता था. लेकिन अब ये लोग मायूस हैं. सर्दियों के तीखेपन में तो कोई कमी नहीं आई है लेकिन परंपरागत काम के प्रति लोगों की बेरुखी बढ़ने से इन लोगों का मन दुखी है. आजकल लोग हर सामान के लिए रेडीमेड दुकानों की तरफ जा रहे हैं. इसलिए रूई का काम करने वालों का धंधा सर्दियों में ठंडा होता जा रहा है.

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परंपरागत रूईगरों में मायूसी

पढ़ें- एक ही दिन धनतेरस और छोटी दिवाली का संयोग, जानें क्या खरीदना होता है शुभ

रेडीमेड रजाई कारोबार ने तोड़ी कमर

एक जमाना था जब रजाई और कंबल का पूरा काम स्थानीय स्तर पर ही होता था. वर्तमान में रेडिमेड कारोबार ने रूईगरों की की कमर तोड़ दी है. सर्दी के मौसम की बात करें तो पहले शहर में जगह जगह रुई पिनाई का काम करने वाले रहते थे और रूई पिनाई करके रजाईयां तैयार करते थे. पिछले कुछ साल में रेडीमेड रजाई और कंबल ने इस कारोबार पर कब्जा जमा लिया है. अब बाजारों में रेडीमेड रजाई की भरमार है. इसमें जयपुरी रजाई, साउथ इंडियन रजाई के साथ-साथ कोरियन और नेपाली कंबल का कारोबार भी जोरों पर है. यही रेडीमेड गर्म कपड़े लोगों की पहली पसंद बनते जा रहे हैं. इनकी डिजायनदार और वजन में हल्के होने के कारण लोग इन्हें खरीद रहे हैं. यही वजह है कि रुई पिनाई का काम करने वालों पर संकट खड़ा हो गया है.

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रेडीमेड रजाईयों का कारोबार जोरों पर

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रूई के काम से जुड़े कई परिवार प्रभावित

रूईगरों के पास अब बहुत कम संख्या में रजाई भराने के लिए लोग आ रहे हैं. सर्दी के सीजन में भी इनके पास बहुत कम काम रह गया है. पहले रजाई के साथ साथ गद्दे भरने का काम भी जोरों पर चलता था लेकिन अब यह काम तो बिल्कुल कम ही हो चुका है. ज्यादातर लोग डबल बेड के रेडिमेड गद्दे ही खरीदने लगे हैं.

सीकर में परंपरागत रूई की रजाई तैयार करने वालों की संख्या धीरे धीरे कम होती जा रही है. रूई पिनाई के साथ साथ कई लोगों को रोजगार मिलता था, कई महिलाएं रजाई में धागा डालने का काम करती थीं, रजाई के कवर बनाने वाले कारीगरों को भी रोजगार मिलता था. लेकिन रेडीमेड का बाजार लगातार बढ़ने के कारण परंपरागत काम करने वालो को यह धंधा छोड़ना पड़ रहा है.

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