श्रीमाधोपुर (सीकर). महरौली केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का पैतृक गांव है. यहां से विधायक कांग्रेस के हैं, लेकिन हाई प्रोफाइल गांव होने के बावजूद भी इस गांव की स्थिति ये है कि बीते 20 दिनों में कोरोना ने इस गांव के 23 लोगों की जान ले ली है, लेकिन प्रशासन है कि जगता नहीं है. ईटीवी भारत की टीम जब इस गांव में पहुंची तो गांव के कई घरों में मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था. जिन घरों के सदस्यों को इस कोरोना महामारी से प्राण गंवाने पड़े हैं, उन्हें समझ नहीं आ रहा कि उनके हंसते खेलते घरों को किसकी नजर लग गई है.
प्रशासन की लीपापोती : जिंदा थे तो जांच नहीं की, मरने के बाद दिखावे के लिए परिवार की जांच...
महरौली को वैसे तो बड़े गांव में गिना जाता है, जिसकी आबादी 15 हजार की है. कहने को गांव में अस्पताल भी है और उसमें डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ भी, लेकिन गांव की हालत ये है कि यहां कोरोना की जांच नहीं हो रही है. कोई बीमार हो जाए तो साधारण दवा दी जा रही है और जब इन दवाओं से फायदा नहीं मिलता है तो ग्रामीण अपने परिजनों को लेकर सीकर जाते हैं, जो पहले से ही बीमार लोगों का दबाव झेल रहा है.
नतीजा शुरुआत में जांच के अभाव में बीमारी का बढ़ जाना और फिर मौत, लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि प्रशासन यहां भी लीपापोती में लगा रहता है. किसी की मौत हो जाने के बाद लीपापोती के लिए उस पूरे परिवार की जांच करने पहुंच जाता है. ऐसे में सवाल ये है कि जब गांव में लगातार मौतें हो रही हैं तो फिर यहां जांच क्यों नहीं की जा रही है. इससे भी खास बात यह है कि मौत के बाद ही ग्रामीणों को पता चल रहा है कि उनके यहां जिस परिजन की मौत हुई वो कोरोना से हुई है.
नहीं है कोई क्वॉरेंटाइन सेंटर, ग्रामीण कोविड मरीज को घर में ही रखने पर मजबूर...
भले ही प्रशासन बड़े-बड़े दावे करे कि जो कोविड पेशेंट है या कोई बाहर से आ रहा है, तो उनके लिए क्वॉरेंटाइन की व्यवस्था की गई है, लेकिन बड़े शहरों में तो ये व्यवस्था भले ही हो, लेकिन गांवों में इस बार कोई क्वॉरेंटाइन की व्यवस्था नहीं की गई है. महरौली गांव और आसपास के गांव के लोगों के लिए भी कोई क्वॉरेंटाइन की व्यवस्था नहीं है. नतीजा ये है कि गांव के लोगों को अपने परिवार के सदस्यों को घर में रखना पड़ता है और जिसके चलते यहां कोरोना तेजी से पैर फैला रहा है. न केवल कोविड पॉजिटिव की संख्या बढ़ रही है, बल्कि मौत के आंकड़े भी लगातार बढ़ रहे हैं.
केस-1 : मंगल चंद...
महरौली गांव के मंगल चंद का निधन हो चुका है. उनके घर पर परिवार के लोग एक दूसरे को ढांढस बंधा रहे हैं. मंगल चंद के बेटे से बात की गई तो उन्होंने कहा कि गांव में जांच नहीं हो पा रही थी और इलाज सही से नहीं मिला, जिसके चलते उनके पिता का निधन हो गया. मंगल चंद के बेटे ने कहा कि उनके पिता के निधन के बाद उनके परिवार की जांच करने के लिए प्रशासन की टीम आई, लेकिन उसका अब क्या फायदा. उन्होंने यह भी कहा कि गांव में न तो कोई क्वॉरेंटाइन सेंटर है न ही जांच हो रही है. वहीं गांव के लोगों ने कहा कि बीते कुछ दिनों में ही गांव के लोगों की अचानक मौत हो रही है. बीमारी का पता नहीं चल रहा है. रिपोर्ट में नेगेटिव आते हैं और अचानक मौत हो जाती है. जांच केवल उसी परिवार की हो रही है जिस परिवार में किसी का निधन हुआ है.
पढ़ें : राजस्थान के पाली में रानीखेत बीमारी से हुई सैकड़ों मोरों की मौत, विशेषज्ञों ने की पुष्टि
गांव के ही निवासी सुभाष ने बताया कि गांव में 20 दिन में 23 मौत हो गई है. मौत के बाद जांच होती है और आसपास के घरों में जब पूछताछ होती है तो डर के मारे ग्रामीण नहीं बताते कि वह बीमार हैं. इतनी मौत के बाद भी प्रशासन आज भी सोया हुआ है. दो दिन पहले गांव में जांच की गई तो 64 लोगों में से 18 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. गांव में इतनी मौतें हो रही हैं, लेकिन उसके बावजूद अब तक सैनिटाइज नहीं किया गया है, न हि कोई क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाया गया. क्वॉरेंटाइन सेंटर तो श्रीमाधोपुर में ही नहीं है.
केस-2 : भंवरी देवी के निधन के 15 दिन में बेटे विनोद पारीक की भी मौत, मौत के बाद पता चला कोरोना था...
इसी महरौली गांव में आमने-समने परिवार में कोरोना से ग्रामीणों का निधन हुआ है. परिवार में पहले मां भंवरी देवी का निधन हुआ और उसके 15 दिन बाद उनके बेटे विनोद पारीक का भी निधन हो गया. परिजनों का कहना है कि हमें पता नहीं मौत कैसे हुई. हमसे केवल ऑक्सीजन की कमी के लिए कहा गया. उन्हें ऑक्सीजन के लिए अस्पताल में लेकर गए, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. उन्होंने कहा कि माताजी एकदम ठीक थीं. उनको दवा दिलाई, अचानक सांस की समस्या हुई और उनकी मौत हो गई.
इसी तरीके से उनके बेटे विनोद पारीक को पहले रींगस दिखाया गया. उसके बाद सीकर लेकर गए तो वहां ऑक्सीजन चढ़ाई गई, लेकिन उनकी कुछ ही देर में मौत हो गई. मौत का कारण ऑक्सीजन लेवल कम बताया गया. बाद में पता लगा कि उनको कोरोना था. 19 को विनोद पारीक की मौत हुई और प्रशासन 21 को लीपापोती करने पूरे परिवार की जांच करने आ गया. परिजनों का कहना है कि अब मौत के बाद जांच का क्या फायदा. इसी परिवार के अन्य सदस्य ने कहा कि हम ग्रामीण लोग हैं. हमें पता नहीं कोविड-19 है या साधारण बीमारी. न तो पहले डॉक्टर आए, न ही हमें यह बताया गया, लेकिन मौत होने के बाद जांच करने आ जाते हैं. पहले तो जांच करते हैं न कुछ बताते हैं, तो मौत के बाद जांच का क्या फायदा.