खण्डेला (सीकर). रींगस कस्बे में स्थित भैरू बाबा का मन्दिर देशभर में प्रसिद्ध है. इस मंदिर का इतिहास करीब 550 साल पुराना है. कालाष्टमी के दिन भैरव बाबा की आकाशवाणी हुई थी, जिस कारण मन्दिर का अनूठा इतिहास है.
हिन्दु संस्कृति के अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी के 5वें मुख के द्वारा शिवजी की आलोचना की गई थी, जिसके बाद शिव जी ने पांचवे रूद्रवतार में भैरव बाबा के रूप में अवतार लेकर अपने नाखून से ब्रह्मा जी का पांचवा मुख धड़ से अलग कर दिया था. तभी से भैरू बाबा पर ब्रह्म हत्या का अभिशाप लग गया था. इससे मुक्ति प्राप्त करने के लिए भैरू जी ने तीनों लोकों की यात्रा की. ऐसा माना जाता है कि भैरू जी के तीनों लोकों की यात्रा पृथ्वी लोक पर रींगस से शुरू हुई थी.
भैरू बाबा मन्दिर पुजारी के ने ईटीवी से बातचीत करते हुए बताया की उनका परिवार गुर्जर जाति का होने के कारण उनके पूर्वज गाय चराते थे. उस समय पुजारी के पूर्वज मंडोर में निवास करते थे. पूर्वज गाय चराने के समय पत्थर की गोल मूर्ति को भैरू बाबा के रूप में झोली में रखते थे. गायों को चराते समय वे तालाबों के किनारे ही रुका करते थे. जहां भी वे रुकते थे वहां भैरू बाबा की मूर्ति निकालकर पूजा अर्चना करने के बाद वापस रवाना होते समय मूर्ति उठाकर झोली में रख लेते थे.
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आकाशवाणी के बाद रींग्स में ही रही मूर्ति
पुजारी के पूर्वज मंडोर से चलते हुए रींगस पहुंचे. जहां पर तालाब किनारे रात में विश्राम के लिए रुके. वहां पर झोली से पत्थर की मूर्ति निकालकर पूजा की और खाना खाकर सो गए. सुबह जब जाने के समय लिए मूर्ति को वापस उठाने लगे तो, मूर्ति वहां से नहीं हिली और अचानक आकाशवाणी हुई. भविष्यवाणी में आवाज आई कि 'जहां से मैंने ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित करने के लिए पृथ्वी लोग की पदयात्रा शुरू की थी, आज वही स्थान आ गया हूं और मैं यही निवास करना चाहता हूं.' इसके बाद पुजारी के पूर्वज गुर्जर प्रतिहार वहीं रुक गए और भैरव बाबा की पूजा अर्चना करने लग गए.
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प्रतिहार गोत्र के गुर्जर समाज के पुजारियों द्वारा मंदिर का तीसरी बार जीर्णोद्धार किया गया है, जो साल 2013 से शुरू हुआ था. जीर्णोद्धार से पहले मंदिर के चारों तरफ शमशान थे और मंदिर खुला था. मूर्ति धीरे-धीरे विशाल रूप में बनती गई. वर्तमान में मंदिर की चार दिवारी होने के बाद मूर्ति यथा स्थिति रूप में है. साथ ही भैरव मंदिर से बाहर एक सती माता की छतरी बनी हुई है. इस पर 1669 इस्वी सन अंकित है, जिससे 200 साल पहले मंदिर होने के साक्ष्य से मिले हैं.
माना जाता है कि मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भैरो बाबा शिव जी के पांचवी रूद्र अवतार के रूप में अवतरित हुए थे. इस लिए काल अष्टमी के दिन भैरू बाबा की आराधना करने से जल्दी प्रसन्न होकर मनोकामना पूर्ण करते हैं. भैरव बाबा के लक्खी मेले चैत्र नवरात्रि, वैशाख शुक्ल पक्ष में, भाद्रपद शुक्ल पक्ष में, आश्विन नवरात्रि में, माघ शुक्ल पक्ष में भरते हैं. वहीं भैरव बाबा को पुआ-पापड़ी, बाटी-बाकले, लौंग पतासे आदि प्रिय है.