सवाई माधोपुर. उत्तर भारत के बड़े उद्यानों में से रणथंभौर नेशनल पार्क एक है. यहां के बाघों के लिए रणथंभौर प्रसिद्ध है. टाइगर की एक झलक देखने के लिए देश विदेश से सैलानी यहां खिंचे चले आते है. लेकिन, अब रणथंभौर में ना सिर्फ टाइगर बल्कि दुर्लभ प्रजाति कहे जाने वाला भालू भी पर्यटकों के लिए खासा आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है. जहां कभी भालुओं की प्रजाति धीरे-धीरे लुप्त होने के कगार पर थी. वहीं खुशी की बात ये है कि भालुओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है.
अब टाइगर के साथ-साथ भालुओं के लिए भी मशहूर रणथंभौर
यूं तो रणथंभौर नेशनल पार्क सिर्फ टाइगर के कारण देश दुनिया में विख्यात है. लेकिन अब रणथंभौर नेशनल पार्क दुर्लभ भालुओं के लिए भी धीरे-धीरे विख्यात होने लगा है. अपने शरीर के चारों ओर काले घने लम्बे बालों वाला भालू पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है. इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात ये है कि भालू जंगल को संरक्षित बनाने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते है. किसी समय ये प्रजाति लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी. लेकिन अब धीरे धीरे भालुओं की संख्या मे इजाफा देखने को मिल रहा है.
रणथंभौर में बाघ के साथ भालुओं की संख्या में बड़ा इजाफा टाइगर की संख्या 70, तो भालुओं की संख्या 80 से 90 रणथंभौर नेशनल पार्क में टाइगर की संख्या जहां 70 के लगभग बताई जा रही है. वहीं भालुओं की संख्या लगभग 80 से 90 होने का अनुमान हैं. भालू की आयु लगभग बीस साल बताई जाती है. वहीं ताकत के बारे में बात की जाए तो कहा जा सकता है कि एक बारगी तो टाइगर ही भालू पर हमला करने से कतराता है. भालू के पंजे भी टाइगर की तरह ही नुकीले होते है. जिससे टाइगर भालू पर हमला करने से कन्नी काटता है.
भालुओं की संख्या प्रकृति...पर्यावरण और पर्यटकों के लिए शुभ संकेत
हालांकि एक बात भालू के बारे में और महत्वपूर्ण है और वो ये कि अक्सर भालू की मौत एक रहस्य बनकर रह जाती है. भालू का अंत कब हो जाता है इस रहस्य से बहुत कम मर्तबा पर्दा उठ पाता है. क्योंकि भालू को निशाचर की श्रेणी में माना जाता है. ये रात के समय ही विचरण करता है. दिन में ये यदा कदा दिख पाता है और चट्टानों में बनी गुफाओं मे अक्सर इसका बसेरा होता है. इसलिए कई बार इन गुफाओं में हुई भालू की मौत एक पहेली बनकर रह जाती है. लेकिन रणथम्भौर नेशनल पार्क मे बढ़ती हुई भालुओं की संख्या प्रकृति, पर्यावरण और पर्यटकों के लिए शुभ संकेत हैं.