ETV Bharat / state

पुलवामा का 'दर्द': राजसमंद के शहीद नारायण लाल गुर्जर के परिवार को स्मारक बनने का इंतजार - पुलवामा का एक साल

14 फरवरी 2019 की तारीख आज भी भारत के इतिहास के लिए काला दिन है. इसी दिन पाकिस्तान ने एक बार फिर कायराना हरकत करते हुए जम्मू कश्मीर के पुलवामा से गुजर रहे सीआरपीएफ के काफिले पर फिदायीन हमला कर दिया था. इस हमले में भारतीय सेना के 40 जांबाज जवान वीरगति को प्राप्त हुए. जिसमें राजस्थान के 5 जवान शामिल थे. पुलवामा अटैक को एक साल होने जा रहा है. ऐसे मे ईटीवी भारत राजसमंद से शहीद हुए नारायण लाल गुर्जर के घर पहुंचा और परिवार से बात की, देखिए राजसमंद से स्पेशल रिपोर्ट...

martyr narayan lal gurjar, rajsamand martyr
पुलवामा हमले में शहीद नारायण लाल गुर्जर
author img

By

Published : Feb 11, 2020, 5:02 PM IST

राजसमंद. शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा.. इस कविता की यह पंक्तियां देश के लिए मर मिटने वाले उन शूरवीरों की दास्तां को बयां करती है. जिन्होंने अपने मुल्क को खुशहाल देखने के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया. 14 फरवरी 2019 की ये तारीख भारत के इतिहास के लिए काला दिन होगा. इसी दिन पाकिस्तान ने एक बार फिर कायराना हरकत करते हुए जम्मू कश्मीर के पुलवामा से गुजर रहे भारतीय सुरक्षाकर्मियों को ले जाने वाले सीआरपीएफ के वाहनों के काफिले पर फिदायीन हमला कर दिया था. इस हमले में भारतीय सेना के 40 जांबाज जवान वीरगति को प्राप्त हुए. इस शहादत के 1 साल बाद ईटीवी भारत भी इस हमले में शहीद हुए राजसमंद के नारायण लाल गुर्जर के परिजनों के पास पहुंचा. जहां ईटीवी भारत की टीम ने जवान की शहादत के बाद सरकार और जनप्रतिनिधि द्वारा की गई घोषणाओं की जानकारी ली.

शहीद के नाम से स्कूल का नामकरण भी नहीं

शहीद नारायण लाल गुर्जर के घर पहुंचा ईटीवी भारत
पुलवामा हमले में शहीद हुए राजसमंद जिल के बिनोल गांव के रहने वाले नारायण लाल गुर्जर के घर ईटीवी भारत पहुंचा. जहां देखा कि शहीद नारायण लाल गुर्जर की वीरांगना मोहनी देवी खेत से पशुओं के लिए चारा लेकर आ रही थी. वहीं उनकी पुत्री हेमलता पढ़ती हुई नजर आई. पुलवामा अटैक को 1 साल पूरा होने को है. ऐसे में उनके परिवारजनों ने बताया कि सरकार की ओर से की गई कई घोषणाएं तो पूरी हो गई. लेकिन कुछ अभी बाकी है. जैसा कि शहीद की पत्नी मोहित देवी ने बताया कि उनके पति शहीद होने के बाद जितनी भी आर्थिक सहायता राशि की घोषणा हुई थी. वह उनको मिली. इनके अलावा उनके पुत्र व पुत्री के पढ़ाई भी जारी है. लेकिन बिनोल गांव में उनके पति के नाम से किसी प्रकार का कोई स्मारक नहीं बना. जिससे कि इस गांव को शहीद नारायण लाल गुर्जर के नाम से पहचाना जा सके.

पढ़ें- पुलवामा का 'दर्द': कोटा के शहीद हेमराज मीणा का परिवार उस भयावह मंजर को याद कर सिहर उठता है...

शहीद नारायण लाल गुर्जर एक बेटा और एक बेटी
शहीद नारायण लाल गुर्जर के एक पुत्री हेमलता और पुत्र मुकेश है. हेमलता उदयपुर पढ़ती है. जबकि मुकेश सीकर में पढ़ता है. दोनों की पढ़ाई जारी है. वहीं शहीद नारायण लाल गुर्जर को केंद्र सरकार द्वारा सभी सहायता राशि मिल चुकी है. राज्य सरकार की ओर से 50 लाख रुपए और अन्य सहायता राशि, वहीं तेलंगाना सरकार की ओर से 25 लाख रुपए की सहायता राशि दी गई. इनके अलावा अन्य संगठनों और समाज के लोगों ने सहायता राशि दी है.

pulwama attack, martyr narayan lal gurjar , rajsamand news
शहीद स्मारक बनने का इंतजार

शहीद के नाम पर गांव में कुछ नहीं किया गया
बिनोल गांव के सपूत ने अपने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. उस गांव में शहीद के नाम से 1 साल बाद भी एक ईंट भी नहीं लगी. यह वाकई चौंकाने वाली बात है. जिस विद्यालय में नारायण लाल गुर्जर ने अपनी पढ़ाई पूरी की और फौज में भर्ती हुए. फौज में रहते इसी विद्यालय में खेल मैदान में छुट्टियों के दौरान गांव के युवाओं को देश भक्ति बातें सुनाए करते थे. लेकिन सरकारी महकमे की उदासीनता के चलते 1 साल बीत जाने के बाद भी इस विद्यालय का नाम शहीद के नाम पर नहीं किया जा सका. शहीद के परिजनों ने भले ही आर्थिक सहायता मिल चुकी हो. लेकिन उनके देशभक्ति के जज्बे के प्रेरणा का संदेश देने के लिए उनके नाम पर गांव में कुछ भी नहीं करना यह वाकई सभी के लिए सोचने का विषय है.

pulwama attack, martyr narayan lal gurjar , rajsamand news
शहीद नारायण लाल गुर्जर का घर

पढ़ें- पुलवामा का 'दर्द' : धौलपुर के शहीद भागीरथ के परिजनों के जख्म आज भी हरे....

पुलवामा अटैक से पहले 15 दिनों की छुट्टी पर आए थे शहीद
पुलवामा हमले से पहले ही अपने घर में करीब 15 दिन की छुट्टी बिताकर लौटे थे. और जल्दी ही वापस घर आने का वादा करके गए थे. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. शहीद नारायण लाल गुर्जर घर वापस तो लौटे, लेकिन उनका पार्थिक शरीर तिरंगे से लिपटा हुआ और हजारों लोगों का जनसैलाब उनके पार्थिक शरीर को घर लेकर पहुंचा था.

राजसमंद. शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा.. इस कविता की यह पंक्तियां देश के लिए मर मिटने वाले उन शूरवीरों की दास्तां को बयां करती है. जिन्होंने अपने मुल्क को खुशहाल देखने के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया. 14 फरवरी 2019 की ये तारीख भारत के इतिहास के लिए काला दिन होगा. इसी दिन पाकिस्तान ने एक बार फिर कायराना हरकत करते हुए जम्मू कश्मीर के पुलवामा से गुजर रहे भारतीय सुरक्षाकर्मियों को ले जाने वाले सीआरपीएफ के वाहनों के काफिले पर फिदायीन हमला कर दिया था. इस हमले में भारतीय सेना के 40 जांबाज जवान वीरगति को प्राप्त हुए. इस शहादत के 1 साल बाद ईटीवी भारत भी इस हमले में शहीद हुए राजसमंद के नारायण लाल गुर्जर के परिजनों के पास पहुंचा. जहां ईटीवी भारत की टीम ने जवान की शहादत के बाद सरकार और जनप्रतिनिधि द्वारा की गई घोषणाओं की जानकारी ली.

शहीद के नाम से स्कूल का नामकरण भी नहीं

शहीद नारायण लाल गुर्जर के घर पहुंचा ईटीवी भारत
पुलवामा हमले में शहीद हुए राजसमंद जिल के बिनोल गांव के रहने वाले नारायण लाल गुर्जर के घर ईटीवी भारत पहुंचा. जहां देखा कि शहीद नारायण लाल गुर्जर की वीरांगना मोहनी देवी खेत से पशुओं के लिए चारा लेकर आ रही थी. वहीं उनकी पुत्री हेमलता पढ़ती हुई नजर आई. पुलवामा अटैक को 1 साल पूरा होने को है. ऐसे में उनके परिवारजनों ने बताया कि सरकार की ओर से की गई कई घोषणाएं तो पूरी हो गई. लेकिन कुछ अभी बाकी है. जैसा कि शहीद की पत्नी मोहित देवी ने बताया कि उनके पति शहीद होने के बाद जितनी भी आर्थिक सहायता राशि की घोषणा हुई थी. वह उनको मिली. इनके अलावा उनके पुत्र व पुत्री के पढ़ाई भी जारी है. लेकिन बिनोल गांव में उनके पति के नाम से किसी प्रकार का कोई स्मारक नहीं बना. जिससे कि इस गांव को शहीद नारायण लाल गुर्जर के नाम से पहचाना जा सके.

पढ़ें- पुलवामा का 'दर्द': कोटा के शहीद हेमराज मीणा का परिवार उस भयावह मंजर को याद कर सिहर उठता है...

शहीद नारायण लाल गुर्जर एक बेटा और एक बेटी
शहीद नारायण लाल गुर्जर के एक पुत्री हेमलता और पुत्र मुकेश है. हेमलता उदयपुर पढ़ती है. जबकि मुकेश सीकर में पढ़ता है. दोनों की पढ़ाई जारी है. वहीं शहीद नारायण लाल गुर्जर को केंद्र सरकार द्वारा सभी सहायता राशि मिल चुकी है. राज्य सरकार की ओर से 50 लाख रुपए और अन्य सहायता राशि, वहीं तेलंगाना सरकार की ओर से 25 लाख रुपए की सहायता राशि दी गई. इनके अलावा अन्य संगठनों और समाज के लोगों ने सहायता राशि दी है.

pulwama attack, martyr narayan lal gurjar , rajsamand news
शहीद स्मारक बनने का इंतजार

शहीद के नाम पर गांव में कुछ नहीं किया गया
बिनोल गांव के सपूत ने अपने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. उस गांव में शहीद के नाम से 1 साल बाद भी एक ईंट भी नहीं लगी. यह वाकई चौंकाने वाली बात है. जिस विद्यालय में नारायण लाल गुर्जर ने अपनी पढ़ाई पूरी की और फौज में भर्ती हुए. फौज में रहते इसी विद्यालय में खेल मैदान में छुट्टियों के दौरान गांव के युवाओं को देश भक्ति बातें सुनाए करते थे. लेकिन सरकारी महकमे की उदासीनता के चलते 1 साल बीत जाने के बाद भी इस विद्यालय का नाम शहीद के नाम पर नहीं किया जा सका. शहीद के परिजनों ने भले ही आर्थिक सहायता मिल चुकी हो. लेकिन उनके देशभक्ति के जज्बे के प्रेरणा का संदेश देने के लिए उनके नाम पर गांव में कुछ भी नहीं करना यह वाकई सभी के लिए सोचने का विषय है.

pulwama attack, martyr narayan lal gurjar , rajsamand news
शहीद नारायण लाल गुर्जर का घर

पढ़ें- पुलवामा का 'दर्द' : धौलपुर के शहीद भागीरथ के परिजनों के जख्म आज भी हरे....

पुलवामा अटैक से पहले 15 दिनों की छुट्टी पर आए थे शहीद
पुलवामा हमले से पहले ही अपने घर में करीब 15 दिन की छुट्टी बिताकर लौटे थे. और जल्दी ही वापस घर आने का वादा करके गए थे. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. शहीद नारायण लाल गुर्जर घर वापस तो लौटे, लेकिन उनका पार्थिक शरीर तिरंगे से लिपटा हुआ और हजारों लोगों का जनसैलाब उनके पार्थिक शरीर को घर लेकर पहुंचा था.

Intro:राजसमंद- शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशा होगा.. इस कविता की यह पंक्तियां देश के लिए मर मिटने वाले उन सुरवीरों की दास्तां को बयां करती है. जिन्होंने अपने मुल्क को खुशहाल देखने के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया.तारीख 14 फरवरी 2019 इसी दिन पाकिस्तान ने एक बार फिर कायराना हरकत करते हुए जम्मू कश्मीर के पुलवामा से गुजर रहे.भारतीय सुरक्षाकर्मियों को ले जाने वाले सीआरपीएफ के वाहनों के काफिले पर फिदायीन हमला कर दिया. इस हमले में भारतीय सेना के जांबाज 45 जवान वीरगति को प्राप्त हुए. इस शहादत के 1 साल बाद ईटीवी भारत भी इस हमले में शहीद हुए नारायण लाल गुर्जर के परिजनों के पास पहुंचा. और शहादत के बाद सरकार और जनप्रतिनिधि द्वारा की गई. घोषणाओं की जानकारी ली तो कई घोषणाएं कागजों से बाहर ही नहीं निकल पाई. और फाइलें एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस में रेंगती हुई नजर आए.
ईटीवी भारत की टीम पुलवामा हमले में शहीद हुए राजसमंद जिल के बिनोल गांव के रहने वाले नारायण लाल गुर्जर के घर पहुंची. ईटीवी भारत ने देखा कि शहीद नारायण लाल गुर्जर की पत्नी मोहनी देवी खेत से पशुओं के लिए चारा लेकर आ रही थी. और उनकी पुत्री हेमलता पढ़ती हुई नजर आई.जब हमने शहीद नारायण लाल गुर्जर के काका रामलाल गुर्जर से शहीद नारायण लाल गुर्जर के बारे में पूछा तो उन्होंने भावुक मन से बताया कि वे पढ़ाई में तेजस्वी और समाज के प्रत्येक काम में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाने वाला व्यक्ति था. उन्होंने बताया कि नारायण लाल गुर्जर के जन्म के कुछ सालों बाद उनकी पिता का देहांत हो गया. थोड़े ही दिनों बाद उनके माता का साया भी उनके सिर से उजड़ गया. तीन भाई बहनों में नारायण लाल गुर्जर सबसे छोटे था. माता पिता के निधन के बाद मानो जैसे परिवार में काल टूट पड़ा हो. उन्होंने बताया कि शुरुआत से ही नारायण लाल गुर्जर पढ़ाई के प्रति समर्पित था. यही कारण है. कि गांव के प्रत्येक व्यक्ति की जबान पर नारायण लाल गुर्जर और गांव के लोग प्यार से काका कहकर उन्हें पुकारते थे. वे अपनी पढ़ाई के दौरान स्कूल के सभी कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर भाग लिया करते थे. वे अपनी पढ़ाई के दौरान अपना खर्चा उठाने के लिए रात के समय मार्बल कटिंग का काम किया करते थे.उन्होंने 2003 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल सीआरपीएफ में शामिल हुए.


Body:नारायण लाल गुर्जर जब छुट्टियों में जब घर आते थे.तो वह गांव के युवाओं को देशभक्ति से ओतप्रोत बातें बताते थे. वे गांव के युवाओं के साथ सुबह जल्दी उठकर दौड़ और अन्य योगाभ्यास किया करते थे. और युवाओं को सेना में जाने के लिए प्रेरित किया करते थे. वे गांव में 26 जनवरी और 15 अगस्त को आया करते थे. और अपने द्वारा लिखी हुई. देशभक्ति से ओत-प्रोत कविताओं का पाटन क्या करते थे. पुलवामा हमले से पहले ही अपने घर में करीब 15 दिन की छुट्टी बिताकर लौटे थे. और जल्दी ही वापस घर आने का वादा करके गए थे.लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. शहीद नारायण लाल गुर्जर घर वापस तो लौटे लेकिन उनका पार्थिक शरीर तिरंगे से लिपटा हुआ और हजारों लोगों का जनसैलाब उनके पार्थिक शरीर को घर लेकर पहुंचा. इस कायराना हमले को आज 1 साल पूरा होने आया ईटीवी भारत ने भी उनके परिवारजनों से जाना कि सरकार द्वारा की गई कई घोषणाएं तो पूरी हो गई.लेकिन कुछ अभी बाकी है. जैसे उनके पत्नी मोहित देवी ने बताया कि उनके पति शहीद होने के बाद जितनी भी आर्थिक सहायता राशि की घोषणा हुई थी. वह उनको मिली.इनके अलावा उनके पुत्र व पुत्री के पढ़ाई भी जारी है. लेकिन बिनोल गांव में उनके पति के नाम से किसी प्रकार का कोई स्मारक नहीं बना. जिससे कि इस गांव को शहीद नारायण लाल गुर्जर के नाम से पहचाना जा सके.इस संदर्भ में अब तक के जितने भी प्रयास किए गए. लेकिन सरकारी बेचैनियों की वजह से किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं हो सका. इसके अलावा शहीद नारायण लाल गुर्जर के सहपाठी एवं उनके निकटतम रिश्तेदार ने बताया कि गांव के सरकारी विद्यालय का नाम भी अभी तक परिवर्तित नहीं किया गया.जबकि इस घटना को 1 वर्ष हो चुका है. इस संदर्भ में शिक्षा विभाग के अधिकारी से बात की तो उन्होंने बताया कि विद्यालय का नाम शहीद के नाम पर किए जाने की कार्रवाई के लिए शिक्षा विभाग के बीकानेर कार्यालय पर फाइल भेजी है.जहां से जवाब आने पर अग्रिम कार्रवाई की जाएग.


Conclusion:बिनोल गांव के सपूत ने अपने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण गवा दिए. उस गांव में शहीद के नाम से 1 साल बाद भी एक ईट भी नहीं लगी. यह वाकई चौंकाने वाली बात है.जिस विद्यालय में नारायण लाल गुर्जर ने अपनी पढ़ाई पूरी की और फौज में भर्ती हुआ.फौज में रहते इसी विद्यालय में खेल मैदान में छुट्टियों के दौरान गांव के युवाओं को देश भक्ति बातें सुनाए करता था. लेकिन सरकारी महकमे की उदासीनता के चलते 1 साल बीत जाने के बाद भी इस विद्यालय का नाम शहीद के नाम पर नहीं किया जा सका.शहीद के परिजनों ने भले ही आर्थिक सहायता मिल चुकी हो. लेकिन उनके देशभक्ति के जज्बे के प्रेरणा का संदेश देने के लिए उनके नाम पर गांव में कुछ भी नहीं करना यह वाकई सभी के लिए सोचने का विषय है. शहीद नारायण लाल गुर्जर के एक पुत्री हेमलता और पुत्र मुकेश है.हेमलता उदयपुर पड़ती है. जबकि मुकेश सीकर पड़ता है. दोनों की पढ़ाई जारी है. वही शहीद नारायण लाल गुर्जर को केंद्र सरकार द्वारा सभी सहायता राशि मिल चुकी है.वहीं राज्य सरकार की ओर से 50 लाख रुपए और अन्य सहायता राशि वहीं तेलंगाना सरकार की ओर से 25 लाख रुपए की सहायता राशि दी गई. इनके अलावा अन्य संगठनों और समाज के लोगों ने सहायता राशि दी है.
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.