राजसमंद. शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा.. इस कविता की यह पंक्तियां देश के लिए मर मिटने वाले उन शूरवीरों की दास्तां को बयां करती है. जिन्होंने अपने मुल्क को खुशहाल देखने के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया. 14 फरवरी 2019 की ये तारीख भारत के इतिहास के लिए काला दिन होगा. इसी दिन पाकिस्तान ने एक बार फिर कायराना हरकत करते हुए जम्मू कश्मीर के पुलवामा से गुजर रहे भारतीय सुरक्षाकर्मियों को ले जाने वाले सीआरपीएफ के वाहनों के काफिले पर फिदायीन हमला कर दिया था. इस हमले में भारतीय सेना के 40 जांबाज जवान वीरगति को प्राप्त हुए. इस शहादत के 1 साल बाद ईटीवी भारत भी इस हमले में शहीद हुए राजसमंद के नारायण लाल गुर्जर के परिजनों के पास पहुंचा. जहां ईटीवी भारत की टीम ने जवान की शहादत के बाद सरकार और जनप्रतिनिधि द्वारा की गई घोषणाओं की जानकारी ली.
शहीद नारायण लाल गुर्जर के घर पहुंचा ईटीवी भारत
पुलवामा हमले में शहीद हुए राजसमंद जिल के बिनोल गांव के रहने वाले नारायण लाल गुर्जर के घर ईटीवी भारत पहुंचा. जहां देखा कि शहीद नारायण लाल गुर्जर की वीरांगना मोहनी देवी खेत से पशुओं के लिए चारा लेकर आ रही थी. वहीं उनकी पुत्री हेमलता पढ़ती हुई नजर आई. पुलवामा अटैक को 1 साल पूरा होने को है. ऐसे में उनके परिवारजनों ने बताया कि सरकार की ओर से की गई कई घोषणाएं तो पूरी हो गई. लेकिन कुछ अभी बाकी है. जैसा कि शहीद की पत्नी मोहित देवी ने बताया कि उनके पति शहीद होने के बाद जितनी भी आर्थिक सहायता राशि की घोषणा हुई थी. वह उनको मिली. इनके अलावा उनके पुत्र व पुत्री के पढ़ाई भी जारी है. लेकिन बिनोल गांव में उनके पति के नाम से किसी प्रकार का कोई स्मारक नहीं बना. जिससे कि इस गांव को शहीद नारायण लाल गुर्जर के नाम से पहचाना जा सके.
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शहीद नारायण लाल गुर्जर एक बेटा और एक बेटी
शहीद नारायण लाल गुर्जर के एक पुत्री हेमलता और पुत्र मुकेश है. हेमलता उदयपुर पढ़ती है. जबकि मुकेश सीकर में पढ़ता है. दोनों की पढ़ाई जारी है. वहीं शहीद नारायण लाल गुर्जर को केंद्र सरकार द्वारा सभी सहायता राशि मिल चुकी है. राज्य सरकार की ओर से 50 लाख रुपए और अन्य सहायता राशि, वहीं तेलंगाना सरकार की ओर से 25 लाख रुपए की सहायता राशि दी गई. इनके अलावा अन्य संगठनों और समाज के लोगों ने सहायता राशि दी है.
शहीद के नाम पर गांव में कुछ नहीं किया गया
बिनोल गांव के सपूत ने अपने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. उस गांव में शहीद के नाम से 1 साल बाद भी एक ईंट भी नहीं लगी. यह वाकई चौंकाने वाली बात है. जिस विद्यालय में नारायण लाल गुर्जर ने अपनी पढ़ाई पूरी की और फौज में भर्ती हुए. फौज में रहते इसी विद्यालय में खेल मैदान में छुट्टियों के दौरान गांव के युवाओं को देश भक्ति बातें सुनाए करते थे. लेकिन सरकारी महकमे की उदासीनता के चलते 1 साल बीत जाने के बाद भी इस विद्यालय का नाम शहीद के नाम पर नहीं किया जा सका. शहीद के परिजनों ने भले ही आर्थिक सहायता मिल चुकी हो. लेकिन उनके देशभक्ति के जज्बे के प्रेरणा का संदेश देने के लिए उनके नाम पर गांव में कुछ भी नहीं करना यह वाकई सभी के लिए सोचने का विषय है.
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पुलवामा अटैक से पहले 15 दिनों की छुट्टी पर आए थे शहीद
पुलवामा हमले से पहले ही अपने घर में करीब 15 दिन की छुट्टी बिताकर लौटे थे. और जल्दी ही वापस घर आने का वादा करके गए थे. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. शहीद नारायण लाल गुर्जर घर वापस तो लौटे, लेकिन उनका पार्थिक शरीर तिरंगे से लिपटा हुआ और हजारों लोगों का जनसैलाब उनके पार्थिक शरीर को घर लेकर पहुंचा था.