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SPECIAL : पलाश के फूलों से बने हर्बल रंगों से रंगतेरस खेलते हैं आदिवासी....प्रतापगढ़ में बरसते हैं प्राकृतिक रंग

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Published : Mar 26, 2021, 6:11 PM IST

पलाश के प्राकृतिक गुणों के कारण इसका आयुर्वेद में अलग स्थान है. अपने चटकदार रंगों के कारण इसे जंगल की आग के नाम से भी जाना जाता है. केमिकल युक्त रंगों के इस दौर में पलाश के फूलों से बने रंग की अपनी अहमियत है. प्रतापगढ़ के जंगलों में पलाश की बहुलता और इसके प्राकृतिक गुणों के कारण आदिवासी अंचल के लोगों का आज भी पलाश के फूलों से रंग तैयार कर होली खेलते हैं.

Holi in Pratapgarh,  Pratapgarh Adivasi Rangateras,  Pratapgarh herbal color from palash flowers
पलाश के फूलों से बनते हैं रंग

प्रतापगढ़. जिले के सीतामाता वन्य जीव अभ्यारण से लेकर बांसवाड़ा रोड के जंगलों तक पलाश के पेड़ों पर लगे फूल प्राकृतिक सुंदरता बिखेरते नजर आते हैं. यहां के आदिवासी इन्हीं पलाश के फूलों से रंग बनाकर होली खेलते हैं. वन विभाग भी इन रंगों को बढ़ावा दे रहा है. देखिये ये रिपोर्ट....

प्रतापगढ़ में पलाश से बन रहे हर्बल रंग

पलाश के फूलों में कई औषधीय गुण हैं. पलाश के पेड़ के पत्ते टहनी और फूल के साथ इसकी जड़ का भी आयुर्वेदिक महत्व है. फूलों को पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की चमक बढ़ती है. इसकी फलियां कृमिनाशक का काम करती हैं. कई प्रकार की त्वचा रोग के लिए भी ये लाभकारी है. चर्म रोग के लिए पलाश के फूल और नींबू लाभदायक हैं. इसके लिए फूल को सुखाकर चूर्ण बनाकर नींबू के रस में मिलाकर लगाने से हर प्रकार के चर्म रोग में लाभ मिलता है.

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पलाश के फूलों से बनते हैं रंग

ऐसे बनते हैं पलाश के फूलों से रंग

स्थानीय लोग रंगतेरस से कुछ दिनों पहले दशा माता पर्व पर ही पलाश के फूलों को इकट्ठा कर सुखा लेते हैं. सूखे फूलों को दो से 3 लीटर पानी में डालकर 2 दिन तक के लिए छोड़ देते हैं. बाद में पानी का रंग लाल या सिंधूली हो जाता है.

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पलाश के फूलों से बने रंग

इस रंगीन पानी को 20 लीटर पानी में मिलाने पर अच्छा रंग तैयार हो जाता है. जिसका इस्तेमाल सुरक्षित होली खेलने के लिए किया जा सकता है. पलाश के फूलों से बना रंग हर लिहाज से गुणकारी है. इसके रंगों के प्रयोग से आनंद के साथ त्वचा को भी कोई नुकसान नहीं होता.

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वन विभाग बन रहा आदिवासियों का संबल

पढ़ें- अजमेर : महिला बंदी कारागृह में खेली होली, फूल और गुलाल के साथ झूमी महिला बंदी

वन विभाग भी तैयार करता है हर्बल गुलाल

हर्बल प्रोडक्ट की मांग को देखते हुए वन विभाग भी स्वयं सहायता समूह के माध्यम से वनउपज से कई उत्पाद तैयार कर रहा है. होली पर हर्बल रंगों की मांग को देखते हुए वन विभाग ने हर्बल रंगों की गुलाल तैयार करना शुरू किया था. इस वर्ष भी स्वयं सहायता समूह के माध्यम से होली पर 5 क्विंटल गुलाल तैयार की गई है. इसमें से 2 क्विंटल गुलाल बिक्री के लिए होली पर उदयपुर भेजी गई है.

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प्रतापगढ़ में वन विभाग की पहल

इसके साथ ही 3 क्विंटल गुलाल रंग तेरस पर बिक्री के लिए रखा गया है. इसके साथ ही प्रतापगढ़ रेंज के देवगढ़ धरियावद में भी हर्बल गुलाल तैयार किया जा रहा है. डीएफओ संग्रामसिंह कटिहार ने बताया कि लोगों को प्राकृतिक रंग देकर उन्हें प्रकृति का महत्व बताया जा रहा है साथ ही हर्बल गुलाल से स्वयं सहायता समूह और आदिवासी क्षेत्र के लोगों को आर्थिक लाभ भी हो रहा है.

प्रतापगढ़. जिले के सीतामाता वन्य जीव अभ्यारण से लेकर बांसवाड़ा रोड के जंगलों तक पलाश के पेड़ों पर लगे फूल प्राकृतिक सुंदरता बिखेरते नजर आते हैं. यहां के आदिवासी इन्हीं पलाश के फूलों से रंग बनाकर होली खेलते हैं. वन विभाग भी इन रंगों को बढ़ावा दे रहा है. देखिये ये रिपोर्ट....

प्रतापगढ़ में पलाश से बन रहे हर्बल रंग

पलाश के फूलों में कई औषधीय गुण हैं. पलाश के पेड़ के पत्ते टहनी और फूल के साथ इसकी जड़ का भी आयुर्वेदिक महत्व है. फूलों को पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की चमक बढ़ती है. इसकी फलियां कृमिनाशक का काम करती हैं. कई प्रकार की त्वचा रोग के लिए भी ये लाभकारी है. चर्म रोग के लिए पलाश के फूल और नींबू लाभदायक हैं. इसके लिए फूल को सुखाकर चूर्ण बनाकर नींबू के रस में मिलाकर लगाने से हर प्रकार के चर्म रोग में लाभ मिलता है.

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पलाश के फूलों से बनते हैं रंग

ऐसे बनते हैं पलाश के फूलों से रंग

स्थानीय लोग रंगतेरस से कुछ दिनों पहले दशा माता पर्व पर ही पलाश के फूलों को इकट्ठा कर सुखा लेते हैं. सूखे फूलों को दो से 3 लीटर पानी में डालकर 2 दिन तक के लिए छोड़ देते हैं. बाद में पानी का रंग लाल या सिंधूली हो जाता है.

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पलाश के फूलों से बने रंग

इस रंगीन पानी को 20 लीटर पानी में मिलाने पर अच्छा रंग तैयार हो जाता है. जिसका इस्तेमाल सुरक्षित होली खेलने के लिए किया जा सकता है. पलाश के फूलों से बना रंग हर लिहाज से गुणकारी है. इसके रंगों के प्रयोग से आनंद के साथ त्वचा को भी कोई नुकसान नहीं होता.

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वन विभाग बन रहा आदिवासियों का संबल

पढ़ें- अजमेर : महिला बंदी कारागृह में खेली होली, फूल और गुलाल के साथ झूमी महिला बंदी

वन विभाग भी तैयार करता है हर्बल गुलाल

हर्बल प्रोडक्ट की मांग को देखते हुए वन विभाग भी स्वयं सहायता समूह के माध्यम से वनउपज से कई उत्पाद तैयार कर रहा है. होली पर हर्बल रंगों की मांग को देखते हुए वन विभाग ने हर्बल रंगों की गुलाल तैयार करना शुरू किया था. इस वर्ष भी स्वयं सहायता समूह के माध्यम से होली पर 5 क्विंटल गुलाल तैयार की गई है. इसमें से 2 क्विंटल गुलाल बिक्री के लिए होली पर उदयपुर भेजी गई है.

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प्रतापगढ़ में वन विभाग की पहल

इसके साथ ही 3 क्विंटल गुलाल रंग तेरस पर बिक्री के लिए रखा गया है. इसके साथ ही प्रतापगढ़ रेंज के देवगढ़ धरियावद में भी हर्बल गुलाल तैयार किया जा रहा है. डीएफओ संग्रामसिंह कटिहार ने बताया कि लोगों को प्राकृतिक रंग देकर उन्हें प्रकृति का महत्व बताया जा रहा है साथ ही हर्बल गुलाल से स्वयं सहायता समूह और आदिवासी क्षेत्र के लोगों को आर्थिक लाभ भी हो रहा है.

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