प्रतापगढ़. जिले के सीता माता वन्यजीव अभ्यारण्य में लगने वाले चार दिवसीय सीता माता मेले का काफी महत्व है. लेकिन, कई साल के इतिहास में ये पहला मौका है, जब ये मेला नहीं लगा. ये मेला मुख्य रूप से हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर लगता है. इस साल शुक्रवार को ज्येष्ठ मास की अमावस्या थी. लेकिन, लॉकडाउन के चलते ये मेला नहीं लगा.
यहां लगने वाले चार दिवसीय मेले में प्रतापगढ़ जिले के अलावा बांसवाड़ा, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर से श्रद्धालु आते हैं. इसके अलावा मध्यप्रदेश के मंदसौर, रतलाम, नीमच और महाराष्ट्र के क्षेत्रों से भी श्रद्धालु आते हैं.
सीता माता का मंदिर राजस्थान के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है. इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है. सीता माता वन्यजीव अभ्यारण्य विश्व में उड़न गिलहरी के लिए अपनी अलग ही पहचान रखता है. इसकी पहचान का एक और कारण इसका रामायण काल से जुड़ा होना है.
मान्यताओं के अनुसार वनवास से लौटने के बाद जब भगवान राम ने माता सीता को वनवास के कहा था, तब उन्होंने यहीं महर्षि विश्वामित्र के आश्रम में अपने वनवास का समय व्यतीत किया था. सीता माता अभ्यारण्य में माता जानकी का एक मंदिर है. सीता माता मंदिर के साथ लव-कुश जन्मभूमि और महर्षि विश्वामित्र का आश्रम भी है. इसके अलावा यहां ठंडे और गर्म पानी के कुंड भी हैं. यहां आज भी एक कुंड में ठंडा पानी और दूसरे में गर्म पानी आता है.
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इसके अलावा मंदिर दर्शन के लिए जाते वक्त भी प्रकृति की अद्भुत सुंदरता देखने को मिलती है. हरियाली से ढकी पहाड़ियां और कई प्राकृतिक झरने यहां लोगों को देखने को मिलते हैं. इस मंदिर में साल में एक बार लगने वाले मेले के दौरान ही श्रद्धालुओं को माता सीता के दर्शन होते हैं. लेकिन, इस बार श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए नहीं आ सके.