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स्पेशल रिपोर्ट: लाइलाज बीमारी ने इनके हौसले को किया बुलंद, अबतक 300 से ज्यादा बच्चों को दी जिंदगी

पाली की एक सामाजिक कार्यकर्ता अपने ऊपर बीती पीड़ाओं के बाद अब और लोगों के दुखों को कम करने का काम कर रही है. 18 साल समाजसेवी महिला को एचआईवी हो गया था. जिसके बाद अब उन्होंने अपना पूरा जीवन ऐसी ही महिलाओं का सहयोग करने में गुजार दिया, देखिए पाली से स्पेशल रिपोर्ट...

pali news, Marwar Network for People Living with HIV
सामाजिक कार्यकर्ता ने बदली 300 जिंदगियां
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Published : Dec 18, 2019, 9:17 PM IST

पाली. 18 साल का वक्त गुजर गया महिला को अपनों से मिले हुए, पति का साथ छूटा तो अपनों ने मुंह मोड़ा और एक लाइलाज बीमारी ने उनके जीवन को तोड़ा, लेकिन हौसले नहीं हारी और आज पाली में महिला एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उभरी है. इस समाजसेवी की कहानी और कहानियों से थोड़ी अलग है, लेकिन ना ही इस महिला की हम पहचान बता सकते है और ना ही आपको इनका चेहरा.

सामाजिक कार्यकर्ता ने बदली 300 जिंदगियां

दरअसल, ये समाजेसवी 18 साल पहले एचआईवी पॉजिटिव से ग्रस्त हो गई थी. इस बीमारी का उन्हें पता चलता, उससे पहले उनके पति का निधन हो चुका था, जब पति ने दुनिया छोड़ी तो उस वक्त वो गर्भवती थी. ऐसे में उनके अपनों ने भी उनसे मुंह मोड़ लिया. अपने पेट में पल रहे बच्चे की किलकारी को वह सुनना चाहती थी. ऐसे में लंबे वक्त तक उसने चिकित्सकों पर सभी सावधानियों को बरता और जब उनका पुत्र हुआ, तो वह एचआईवी ग्रस्त नहीं था.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: अजमेर में HIV एड्स का कहर, 1 साल में 600 मरीज आए सामने

अपने पुत्र को इस लाइलाज बीमारी से दूर पाकर इस महिला के हौसले इतने बुलंद हुए कि उसने अपना पूरा जीवन ऐसी ही महिलाओं का सहयोग करने में गुजार दिया. आज उनका पुत्र 18 वर्ष का हो चुका है. और वह भी बेहतर पढ़ाई कर रहा है. ऐसे में अपने पुत्र को देख वह लाइलाज बीमारी से टूटी हुई महिलाओं का साथ देने में जुड़ चुकी है और पिछले 18 साल में ऐसे कई बच्चों की उसने जिंदगियां बचाई है. जिनकी माताओं को गर्भवती होने के बाद ही पता चला कि एचआईवी पॉजिटिव हैं.

पढ़ें- स्पेशलः एचआईवी पॉजिटिव का मतलब जीवन का अंत नहीं, इलाज के बाद मरीज जी सकता है सामान्य जिंदगी

18 साल पहले इन्होंने पाली मारवाड़ नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग विथ एचआईवी संस्थान से जुड़ गई. महिलाओं के साथ पाली रहने वाले हजारों एचआईवी पीड़ित लोगों को फिर से समाज की मझधार में लाने और उनकी सेहत को लेकर निरन्तर काउंसलिंग करने का कार्य शुरू कर दिया. इसी संस्था के साथ मिलकर इन्होंने गर्भवती होने वाली महिलाओं को उनके प्रसव होने तक उचित उपचार के लिए प्रेरित करती हैं और प्रसव के समय उसके साथ ही रहती हैं. ऐसे अबतक इस नारी शक्ति ने 300 से अधिक महिलाओं के बच्चों को बचा लिया. इसके साथ कई ऐसे बच्चों को भी अपने पास रख कर उनका पालन पोषण कर रही है. जिनके माता पिता का ऐसी बीमारी से निधन हो चुका ओर वह बच्चे भी स्वयं एचआईवी ग्रस्त हैं.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: भरतपुर की मदर मिल्क बैंक बनी 'जीवनदायिनी', दो साल में 4413 नवजात हुए लाभान्वित

अगर मारवाड़ नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग विथ एचआईवी संस्थान पाली की रिपोर्ट को माने तो लोगों में अशिक्षा के चलते एचआईवी बढ़ रहा है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में पाली में 4139 एचआईवी पॉजिटिव मरीज हैं. वहीं इस एनजीओ द्वारा 2854 लोगों से लगातार काउंसलिंग की जा रही है. एचआईवी पीड़ित गर्भवती महिलाओं के लिए नया जीवन बनकर आई इस नारीशक्ति की माने तो समाज मे काफी हद तक एचआईवी फैलने का मुख्य कारण दोबारा विवाह भी हैं. उनका कहना है कि दोबारा विवाह होने के दौरान पति पत्नी का मेडिकल नहीं करवाया जाता और इस रोग एक से दूसरे में फैल जाता हैं. यह खुद भी ऐसी ही स्थितियों में इस लाइलाज बीमारी का शिकार हुई थी.

पाली. 18 साल का वक्त गुजर गया महिला को अपनों से मिले हुए, पति का साथ छूटा तो अपनों ने मुंह मोड़ा और एक लाइलाज बीमारी ने उनके जीवन को तोड़ा, लेकिन हौसले नहीं हारी और आज पाली में महिला एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उभरी है. इस समाजसेवी की कहानी और कहानियों से थोड़ी अलग है, लेकिन ना ही इस महिला की हम पहचान बता सकते है और ना ही आपको इनका चेहरा.

सामाजिक कार्यकर्ता ने बदली 300 जिंदगियां

दरअसल, ये समाजेसवी 18 साल पहले एचआईवी पॉजिटिव से ग्रस्त हो गई थी. इस बीमारी का उन्हें पता चलता, उससे पहले उनके पति का निधन हो चुका था, जब पति ने दुनिया छोड़ी तो उस वक्त वो गर्भवती थी. ऐसे में उनके अपनों ने भी उनसे मुंह मोड़ लिया. अपने पेट में पल रहे बच्चे की किलकारी को वह सुनना चाहती थी. ऐसे में लंबे वक्त तक उसने चिकित्सकों पर सभी सावधानियों को बरता और जब उनका पुत्र हुआ, तो वह एचआईवी ग्रस्त नहीं था.

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अपने पुत्र को इस लाइलाज बीमारी से दूर पाकर इस महिला के हौसले इतने बुलंद हुए कि उसने अपना पूरा जीवन ऐसी ही महिलाओं का सहयोग करने में गुजार दिया. आज उनका पुत्र 18 वर्ष का हो चुका है. और वह भी बेहतर पढ़ाई कर रहा है. ऐसे में अपने पुत्र को देख वह लाइलाज बीमारी से टूटी हुई महिलाओं का साथ देने में जुड़ चुकी है और पिछले 18 साल में ऐसे कई बच्चों की उसने जिंदगियां बचाई है. जिनकी माताओं को गर्भवती होने के बाद ही पता चला कि एचआईवी पॉजिटिव हैं.

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18 साल पहले इन्होंने पाली मारवाड़ नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग विथ एचआईवी संस्थान से जुड़ गई. महिलाओं के साथ पाली रहने वाले हजारों एचआईवी पीड़ित लोगों को फिर से समाज की मझधार में लाने और उनकी सेहत को लेकर निरन्तर काउंसलिंग करने का कार्य शुरू कर दिया. इसी संस्था के साथ मिलकर इन्होंने गर्भवती होने वाली महिलाओं को उनके प्रसव होने तक उचित उपचार के लिए प्रेरित करती हैं और प्रसव के समय उसके साथ ही रहती हैं. ऐसे अबतक इस नारी शक्ति ने 300 से अधिक महिलाओं के बच्चों को बचा लिया. इसके साथ कई ऐसे बच्चों को भी अपने पास रख कर उनका पालन पोषण कर रही है. जिनके माता पिता का ऐसी बीमारी से निधन हो चुका ओर वह बच्चे भी स्वयं एचआईवी ग्रस्त हैं.

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अगर मारवाड़ नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग विथ एचआईवी संस्थान पाली की रिपोर्ट को माने तो लोगों में अशिक्षा के चलते एचआईवी बढ़ रहा है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में पाली में 4139 एचआईवी पॉजिटिव मरीज हैं. वहीं इस एनजीओ द्वारा 2854 लोगों से लगातार काउंसलिंग की जा रही है. एचआईवी पीड़ित गर्भवती महिलाओं के लिए नया जीवन बनकर आई इस नारीशक्ति की माने तो समाज मे काफी हद तक एचआईवी फैलने का मुख्य कारण दोबारा विवाह भी हैं. उनका कहना है कि दोबारा विवाह होने के दौरान पति पत्नी का मेडिकल नहीं करवाया जाता और इस रोग एक से दूसरे में फैल जाता हैं. यह खुद भी ऐसी ही स्थितियों में इस लाइलाज बीमारी का शिकार हुई थी.

Intro:स्पेशल स्टोरी.....


पाली. ऐसे हौसलों की कहानियां बहुत कम होती है। जहां से शुरुआत करना शायद बहुत से लोगों के लिए संभव भी नहीं होता है। जीवन उनका साथ छोड़ने की कगार पर होता है। ऐसे में परिवार और अपने भी उनसे मुंह मोड़ लेते हैं। इसके बाद भी एक हौसला अफजाई की किरण उनमें ऐसी बिखरती है कि खुद का जीवन सवार वह लोग दूसरों के जीवन को संवारने में अपना जीवन गुजार देते हैं। अब तक देश में महिला सशक्तिकरण को लेकर कहीं कहानियां सुनी थी। लेकिन पाली की एक महिला की कहानी इन सभी से अलग है। ना ही उस महिला की हम पहचान बता सकते ओर ना ही उसका कोई रूप हम बता सकते। सिर्फ बता सकते हैं तो उनके धरातल पर उतरे हुए काम। 18 साल होने आ गए उस महिला को अपनों से मिले, पति का साथ छूटा तो अपनों ने मुंह मोड़ा और एक लाइलाज बीमारी ने उनके जीवन को तोड़ा। लेकिन फिर भी हौसला नहीं हारी और उसके जैसी कई महिलाओं को हौसला नहीं हारने दिया। नतीजा आज कई किलकारियों को गूंजते देख अपने जीवन के सभी दुखों को भूल जाती है। हम बात कर रहे हैं पाली में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उभरी महिला की। 18 साल पहले एचआईवी पॉजिटिव से ग्रस्त हो गई थी। इस बीमारी का उन्हें पता चलता उससे पहले उनके पति का निधन हो चुका निधन के समय वह गर्भवती थी। ऐसे में उनके अपनों ने भी उनसे मुंह मोड़ दिया अपने पेट में पल रहे बच्चे की किलकारी को वह सुनना चाहती थी। ऐसे में लंबे पर तक उसने चिकित्सकों पर सभी सावधानियों को बरता और जब उनका पुत्र हुआ तो वह एचआईवी ग्रस्त नहीं था। अपने पुत्र को इस लाइलाज बीमारी से दूर पाकर इस महिला के हौसले इतने बुलंद हुए कि उसने अपना पूरा जीवन ऐसी ही महिलाओं का सहयोग करने में गुजार दिया। आज उनका पुत्र 18 वर्ष का हो चुका है। और वह भी बेहतर पढ़ाई कर रहा है। ऐसे में अपने पुत्र को देख वह लाइलाज बीमारी से टूटी हुई महिलाओं का साथ देने में जुड़ चुकी है। और पिछले 18 साल में ऐसे कई बच्चों की उसने जिंदगियां बचाई है। जिनकी माताओं को गर्भवती होने के बाद ही पता चला कि एचआईवी पॉजिटिव हैं।


Body:इस महिला से जाने तो एचआईवी की पॉजिटिव रिपोर्ट ने शायद इनका पूरा जीवन ही खत्म कर दिया। इस बीमारी की जानकारी मिलने के बाद ससुराल ओर पीहर दोनों की दरवाजे इसके लिए बंद हो चुके थे। पेट मे पल रहे बच्चे को बचाने और खुद को जिंदा रखने के लिए हर संभव कार्य किया। लगातार डॉक्टरों की सलाह मानी। उसने यह कभी सुना भी नही था कि एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती के शिशु को इस लाइलाज बीमारी से बचाया जा सकता है। लेकिन, जब इनके पुत्र की रिपोर्ट नेगेटिव आई तो इन्हें जीने का सहारा मिल गया। इसके बाद अपने पे बीती परिस्थितियों को इस बीमारी से झूझ रही महिला के साथ भी होता देख उसने इनका साथ देने की ठान ली। 18 साल पहले इन्होंने पाली मारवाड़ नेटवर्क फ़ॉर पीपल लिविंग विथ एचआईवी संस्थान से जुड़ गई। महिलाओं के साथ पाली रहने वाले हजारों एचआईवी पीड़ित लोगों को फिर से समाज की मझधार में लाने और उनकी सेहत को लेकर निरन्तर काउंसलिंग करने का कार्य शुरू कर दिया। इसी संस्था के साथ मिलकर इन्होंने गर्भवती होने वाली महिलाओं को उनके प्रसव होने तक उचित उपचार के लिए प्रेरित करती हैं। और प्रसव के समय उसके साथ ही रहती हैं। ऐसे पे अबतक इस नारीशक्ति ने 300 से अधिक महिलाओं के बच्चों को बचा लिया। इसके साथ कई ऐसे बच्चों को भी अपने पास रख कर उनका पालन पोषण कर रही है। जिनके माता पिता का ऐसी बीमारी से निधन हो चुका ओर वह बच्चे भी स्वयं एचआईवी ग्रस्त हैं।


Conclusion:अगर मारवाड़ नेटवर्क फ़ॉर पीपल लिविंग विथ एचआईवी संस्थान पाली री रिपोर्ट पर जाए तो लोगो मे अशिक्षा के चलते एचआईवी बढ़ रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में पाली में 4139 एचआईवी पॉजिटिव मरीज हैं। वही इस एनजीओ द्वारा 2854 लोगो से लगातार काउंसलिंग की जा रही है। एचआईवी पीड़ित गर्भवती महिलाओं के लिए नया जीवन बनकर आई इस नारीशक्ति की माने तो समाज मे काफी हद तक एचआईवी फैलने का मुख्य कारण दुबारा विवाह भी हैं। उनका कहना है कि दुबारा विवाह होने के दौरान पति पत्नी का मेडिकल नही करवाया जाता और इस रोग एक से दूसरे में फैल जाता हैं। यह खुद भी ऐसी ही स्थितियों में इस लाइलाज बीमारी का शिकार हुई थी। इसके अलावा प्रवास भी उन्होंने बड़ा कारण बताया।

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