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बारां में यहां बरसाती लगाकर करना पड़ता है दाह संस्कार, प्रशासन पर लापरवाही का आरोप

बारां जिले के किशनगंज विधानसभा के विधायक के गांव के हाल बेहाल है. फल्दी रामपुरिया गांव में बरसते पानी में लोगों को अंतिम संस्कार करना पड़ता है. वहीं बारिश के कारण बार-बार चिता बुझ जाती है. इस गांव के श्मशान घाट पर न ही कोई टीनशेड है और न ही कोई छाया.

कोटा की खबर, विधायक निर्मला सहरिया, Paldi Rampuria Village, Kishanganj Assembly
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Published : Sep 15, 2019, 12:27 PM IST

Updated : Sep 15, 2019, 2:25 PM IST

किशनगंज (बारां). आजादी के 72 साल बीत जाने के बाद भी गांवों में अंतिम संस्कार के लिए हम माकूल बंदोबस्त नहीं कर पाए हैं. जबकि एक तरफ तकनीकि क्षेत्र में हम मिशन मंगल और चांद जैसे अभियान से दुनिया को अपना लोहा मनवा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ हमारे श्मशान घाट सुविधाओं के लिए मोहताज हैं. यहां न तो ठीक से पहुंचने के रास्ते हैं और न पर्याप्त छाया-पानी की सुविधा. ऐसे गांव यदि मौजूदा सरकार में किसी जनप्रतिनिधि के हो तो मामला चर्चा में आना स्वाभाविक ही है.

पढ़ें- कोटा: सतीश पूनिया बने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, कार्यकर्ताओं ने जमकर की आतिशबाजी

यह है पूरा मामला...

वाकया बारां जिले की किशनगंज तहसील के फल्दी रामपुरिया गांव में देखने को मिला. यहां बारिश के दौरान बमुश्किल एक वृद्ध का अंतिम संस्कार हो पाया. बार-बार वृद्ध की चिता बुझ रही थी. कभी प्लास्टिक के तिरपाल से परिजन जलती चिता को ढंकने का प्रयास करते तो कभी केरोसिन और डीजल से भरी पीपीयां उड़ेल कर चिता को प्रज्ज्वलित करते.

बरसाती लगाकर कर रहे दाह संस्कार

आखिर लम्बे इंतजार के बाद बारिश हल्की हुई तो कंडे और अतिरिक्त लकड़ियां लगाकर चिता को फिर चेताया गया. चिता के आस-पास भी पानी जमा हो गया. चिता पूरी भी नहीं जल पाई थी और समय अधिक होने पर पानी में भीग चुके लोग परेशान होकर बचाव के लिए पेड़ों के नीचे चले गए.

दोनों गांवों के बीच है श्मशान घाट

फल्दी रामपुरिया निवासी जमनालाल और केशरीलाल ने बताया कि उनके पिता श्योजीराम बैरवा 70 साल को बीमार होने पर तीन दिन पहले जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई. शव को सुबह गांव ले जाया गया. दोपहर लगभग 12 बजे उनके अंतिम संस्कार की तैयारी पूरी कर ली गई. जैसे ही शवयात्रा श्मशान घाट पहुंची.

अचानक तेज बारिश शुरू हो गई. फल्दी और रामपुरिया के बीच एनएच 27 से लगभग एक किमी दूर स्थित श्मशान घाट तक पहुंचने का रास्ता भी संकरा और कच्चा है. बारिश में बमुश्किल लोग शव लेकर पहुंच पाते हैं. टापूनुमा चट्टान पर बने श्मशान घाट पर ही अंतिम संस्कार किया जाता है. शाम चार बजे जाकर अंतिम संस्कार की क्रिया पूरी हो सकी.

पढ़ें- कोटाः दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक पर भरा पानी...50 से अधिक ट्रेनें डायवर्ट

विधायक के घर से स्पष्ट नजर आ जाता हैं श्मशानघाट

गांव के जिस रास्ते से श्मशान जाते हैं. उसी पर विधायक निर्मला सहरिया का पैतृक घर भी पड़ता है. जहां से श्मशान घाट स्पष्ट नजर आता है. वे दूसरी बार विधायक है. इससे पहले उनके पिता स्वर्गीय हीरालाल सहरिया भी दो बार विधायक रह चुके हैं. पूरे 16 साल में सत्ता में रहने के बाद भी एक मामूली श्मशान घाट की सुविधा नहीं कर पाना इन जनप्रतिनिधियों के लिए क्या साबित करता है विचारणीय प्रश्न है.

किशनगंज (बारां). आजादी के 72 साल बीत जाने के बाद भी गांवों में अंतिम संस्कार के लिए हम माकूल बंदोबस्त नहीं कर पाए हैं. जबकि एक तरफ तकनीकि क्षेत्र में हम मिशन मंगल और चांद जैसे अभियान से दुनिया को अपना लोहा मनवा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ हमारे श्मशान घाट सुविधाओं के लिए मोहताज हैं. यहां न तो ठीक से पहुंचने के रास्ते हैं और न पर्याप्त छाया-पानी की सुविधा. ऐसे गांव यदि मौजूदा सरकार में किसी जनप्रतिनिधि के हो तो मामला चर्चा में आना स्वाभाविक ही है.

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यह है पूरा मामला...

वाकया बारां जिले की किशनगंज तहसील के फल्दी रामपुरिया गांव में देखने को मिला. यहां बारिश के दौरान बमुश्किल एक वृद्ध का अंतिम संस्कार हो पाया. बार-बार वृद्ध की चिता बुझ रही थी. कभी प्लास्टिक के तिरपाल से परिजन जलती चिता को ढंकने का प्रयास करते तो कभी केरोसिन और डीजल से भरी पीपीयां उड़ेल कर चिता को प्रज्ज्वलित करते.

बरसाती लगाकर कर रहे दाह संस्कार

आखिर लम्बे इंतजार के बाद बारिश हल्की हुई तो कंडे और अतिरिक्त लकड़ियां लगाकर चिता को फिर चेताया गया. चिता के आस-पास भी पानी जमा हो गया. चिता पूरी भी नहीं जल पाई थी और समय अधिक होने पर पानी में भीग चुके लोग परेशान होकर बचाव के लिए पेड़ों के नीचे चले गए.

दोनों गांवों के बीच है श्मशान घाट

फल्दी रामपुरिया निवासी जमनालाल और केशरीलाल ने बताया कि उनके पिता श्योजीराम बैरवा 70 साल को बीमार होने पर तीन दिन पहले जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई. शव को सुबह गांव ले जाया गया. दोपहर लगभग 12 बजे उनके अंतिम संस्कार की तैयारी पूरी कर ली गई. जैसे ही शवयात्रा श्मशान घाट पहुंची.

अचानक तेज बारिश शुरू हो गई. फल्दी और रामपुरिया के बीच एनएच 27 से लगभग एक किमी दूर स्थित श्मशान घाट तक पहुंचने का रास्ता भी संकरा और कच्चा है. बारिश में बमुश्किल लोग शव लेकर पहुंच पाते हैं. टापूनुमा चट्टान पर बने श्मशान घाट पर ही अंतिम संस्कार किया जाता है. शाम चार बजे जाकर अंतिम संस्कार की क्रिया पूरी हो सकी.

पढ़ें- कोटाः दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक पर भरा पानी...50 से अधिक ट्रेनें डायवर्ट

विधायक के घर से स्पष्ट नजर आ जाता हैं श्मशानघाट

गांव के जिस रास्ते से श्मशान जाते हैं. उसी पर विधायक निर्मला सहरिया का पैतृक घर भी पड़ता है. जहां से श्मशान घाट स्पष्ट नजर आता है. वे दूसरी बार विधायक है. इससे पहले उनके पिता स्वर्गीय हीरालाल सहरिया भी दो बार विधायक रह चुके हैं. पूरे 16 साल में सत्ता में रहने के बाद भी एक मामूली श्मशान घाट की सुविधा नहीं कर पाना इन जनप्रतिनिधियों के लिए क्या साबित करता है विचारणीय प्रश्न है.

Intro:बारां जिले के किशनगंज विधानसभा के विधायक के गांव के हाल बेहाल।बरसते पानी में अंतिम संस्कार, बार-बार बुझी चिता
फल्दी रामपुरिया गांव के श्मशान घाट पर न टीनशेड न कोई छाया
विधायक निर्मला सहरिया का है पैतृक गांवBody:

बारां जिले में आजादी के 72 साल बीत जाने के बाद भी गांवों में अंतिम संस्कार के लिए हम माकूल बंदोबस्त नहीं कर पाए हैं। जबकि एक तरफ तकनीकि क्षेत्र में हम मिशन मंगल और चांद जैसे अभियान से दुनिया को अपना लोहा मनवा रहे हैं। तो दूसरी तरफ हमारे श्मशान घाट सुविधाओं के लिए मोहताज हैं। जहां न तो ठीक से पहुंचने के रास्ते हैं और न पर्याप्त छाया-पानी की सुविधा। ऐसे गांव यदि मौजूदा सरकार में किसी जनप्रतिनिधि के हो, तो मामला चर्चा में आना स्वाभाविक ही है। ऐसा ही एक वाकया बारां जिले की किशनगंज तहसील के फल्दी रामपुरिया गांव में देखने को मिला। जहां बारिश के दौरान बमुश्किल एक वृद्ध का अंतिम संस्कार हो पाया। बार-बार चिता बुझी। कभी प्लास्टिक के तिरपाल से परिजन जलती चिता को ढंकने का प्रयास करते तो कभी केरोसिन व डीजल से भरी पीपीयां उड़ेल कर चिता को प्रज्ज्वलित करते। आखिर लम्बे इंतजार के बाद बारिश हल्की हुई तो कंडे व अतिरिक्त लकड़ियां लगाकर चिता को फिर चेताया गया। चिता के आसपास भी पानी जमा हो गया। चिता पूरी भी नहीं जल पाई थी और समय अधिक होने पर पानी में भीग चुके लोग परेशान होकर बचाव के लिए पेड़ांे के नीचे चले गए।
दोनों गांवों के बीच है श्मशान घाट-
फल्दी रामपुरिया निवासी जमनालाल व केशरीलाल ने बताया कि उनके पिता श्योजीराम बैरवा 70 वर्ष को बीमार होने पर तीन दिन पहले जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। शव को सुबह गांव ले जाया गया। दोपहर लगभग 12 बजे उनके अंतिम संस्कार की तैयारी पूरी कर ली गई। जैसे ही शवयात्रा श्मशान घाट पहुंची। अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। फल्दी और रामपुरिया के बीच एनएच 27 से लगभग एक किमी दूर स्थित श्मशान घाट तक पहुंचने का रास्ता भी संकरा व कच्चा है। बारिश में बमुश्किल शव लेकर पहुंच पाते हैं। टापूनुमा चट्टान पर बने श्मशान घाट पर ही अंतिम संस्कार किया जाता है। शाम चार बजे जाकर अंतिम संस्कार की क्रिया पूरी हो सकी।
विधायक के घर से स्पष्ट नजर आ जाता हैं श्मशानघाट ।
Conclusion:गांव के जिस रास्ते से श्मशान जाते हैं। उसी पर विधायक निर्मला सहरिया का पैतृक घर भी पड़ता है। जहां से श्मशान घाट स्पष्ट नजर आता है। वे दूसरी बार विधायक है। इससे पहले उनके पिता स्वर्गीय हीरालाल सहरिया भी दो बार विधायक रह चुके हैं। पूरे 16 साल में सत्ता में रहने के बाद भी एक मामूली श्मशान घाट की सुविधा नहीं कर पाना इन जनप्रतिनिधियों के लिए क्या साबित करता है। विचारणीय प्रश्न है।

पीटीसी अनिल भार्गव etv भारत रिपोर्टर
Last Updated : Sep 15, 2019, 2:25 PM IST
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