किशनगंज (बारां). आजादी के 72 साल बीत जाने के बाद भी गांवों में अंतिम संस्कार के लिए हम माकूल बंदोबस्त नहीं कर पाए हैं. जबकि एक तरफ तकनीकि क्षेत्र में हम मिशन मंगल और चांद जैसे अभियान से दुनिया को अपना लोहा मनवा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ हमारे श्मशान घाट सुविधाओं के लिए मोहताज हैं. यहां न तो ठीक से पहुंचने के रास्ते हैं और न पर्याप्त छाया-पानी की सुविधा. ऐसे गांव यदि मौजूदा सरकार में किसी जनप्रतिनिधि के हो तो मामला चर्चा में आना स्वाभाविक ही है.
पढ़ें- कोटा: सतीश पूनिया बने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, कार्यकर्ताओं ने जमकर की आतिशबाजी
यह है पूरा मामला...
वाकया बारां जिले की किशनगंज तहसील के फल्दी रामपुरिया गांव में देखने को मिला. यहां बारिश के दौरान बमुश्किल एक वृद्ध का अंतिम संस्कार हो पाया. बार-बार वृद्ध की चिता बुझ रही थी. कभी प्लास्टिक के तिरपाल से परिजन जलती चिता को ढंकने का प्रयास करते तो कभी केरोसिन और डीजल से भरी पीपीयां उड़ेल कर चिता को प्रज्ज्वलित करते.
आखिर लम्बे इंतजार के बाद बारिश हल्की हुई तो कंडे और अतिरिक्त लकड़ियां लगाकर चिता को फिर चेताया गया. चिता के आस-पास भी पानी जमा हो गया. चिता पूरी भी नहीं जल पाई थी और समय अधिक होने पर पानी में भीग चुके लोग परेशान होकर बचाव के लिए पेड़ों के नीचे चले गए.
दोनों गांवों के बीच है श्मशान घाट
फल्दी रामपुरिया निवासी जमनालाल और केशरीलाल ने बताया कि उनके पिता श्योजीराम बैरवा 70 साल को बीमार होने पर तीन दिन पहले जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई. शव को सुबह गांव ले जाया गया. दोपहर लगभग 12 बजे उनके अंतिम संस्कार की तैयारी पूरी कर ली गई. जैसे ही शवयात्रा श्मशान घाट पहुंची.
अचानक तेज बारिश शुरू हो गई. फल्दी और रामपुरिया के बीच एनएच 27 से लगभग एक किमी दूर स्थित श्मशान घाट तक पहुंचने का रास्ता भी संकरा और कच्चा है. बारिश में बमुश्किल लोग शव लेकर पहुंच पाते हैं. टापूनुमा चट्टान पर बने श्मशान घाट पर ही अंतिम संस्कार किया जाता है. शाम चार बजे जाकर अंतिम संस्कार की क्रिया पूरी हो सकी.
पढ़ें- कोटाः दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक पर भरा पानी...50 से अधिक ट्रेनें डायवर्ट
विधायक के घर से स्पष्ट नजर आ जाता हैं श्मशानघाट
गांव के जिस रास्ते से श्मशान जाते हैं. उसी पर विधायक निर्मला सहरिया का पैतृक घर भी पड़ता है. जहां से श्मशान घाट स्पष्ट नजर आता है. वे दूसरी बार विधायक है. इससे पहले उनके पिता स्वर्गीय हीरालाल सहरिया भी दो बार विधायक रह चुके हैं. पूरे 16 साल में सत्ता में रहने के बाद भी एक मामूली श्मशान घाट की सुविधा नहीं कर पाना इन जनप्रतिनिधियों के लिए क्या साबित करता है विचारणीय प्रश्न है.