कोटा. केंद्र सरकार ने चंबल नदी के पैरलल कोटा से लेकर उत्तर प्रदेश के इटावा तक चंबल एक्सप्रेस-वे की घोषणा 2 साल पहले की थी. इस चंबल एक्सप्रेस-वे को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को समर्पित करते हुए अटल प्रोग्रेसिव-वे नाम दिया गया था. इस घोषणा के बाद स्वीकृति भी जारी हुई, फिर सर्वे और एलाइनमेंट भी तय हुआ. इस एलाइनमेंट को लेकर मध्य प्रदेश में भी विवाद हो गया था, जबकि राजस्थान के हिस्से के एलाइनमेंट पर मिनिस्ट्री ऑफ रोड, ट्रांसपोर्ट एंड हाईवे के अधिकारियों ने ही आपत्ति जता दी. एलाइनमेंट को लेकर एक दो बार मीटिंग हुई और यह पूरा हाईवे ही लगभग ठंडे बस्ते में चला गया. बीते 6 महीने से किसी भी स्तर पर इस पर कोई बातचीत नहीं हो रही है.
यह था पहले का एलाइनमेंट : नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया, कोटा के डीजीएम राकेश कुमार मीणा का कहना है कि एक्सप्रेस-वे खातौली, बिजावता, रनोदिया, खेडली बोरदा, शोभागपुरा, गोरधनपुरा, खेड़लीमहाराजा, करवाड, इटावा, कोटडादीपसिंह, किशनगंज, बड़ौद, सनीजाबावडी, मोरपा, आटोन, रीछाहेडी, डाबर, उकल्दा, दरबीजी, सीमल्या और कराडिया से होकर निकलना था. इसके तहत कोटा जिले में 71.4 किलोमीटर यह हाईवे था, जिसमें दीगोद तहसील में 38.35 और इटावा तहसील में 33.05 किमी था, जबकि मिनिस्ट्री ऑफ रोड, ट्रांसपोर्ट एंड हाइवेज ने आपत्ति जताई थी. साथ ही उन्होंने सुझाव दिया था कि इसको बूंदी जिले के लबान में दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे से मिलाया जाए. इसके लिए एलाइनमेंट को कोटा जिले के खातौली से सीधा चंबल नदी को क्रॉस करते हुए, बूंदी जिले में लाखेरी के पास लबान ले जाने की बात सामने आई थी.
करोड़ों की बचत का बताया था फार्मूला : एनएचएआई के डीजीएम मीणा के मुताबिक मंत्रालय स्तर पर हुई बैठक में यह बताया गया था कि एक्सप्रेस-वे को 71.4 किलोमीटर अलग से बनाने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि पैरेलल दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे चल रहा है. ऐसे में खातौली से इसे लबान ले जाकर दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे में मिला दिया जाए, ताकि इस पर पूरा ट्रैफिक आ जाए. करीब 2500 करोड़ की बचत होगी. पहले एलाइनमेंट के अनुसार कोटा जिले से शुरू होकर केवल कोटा जिले में ही एक्सप्रेस वे होना था, जिसमें 71.4 किलोमीटर कोटा जिले में था. मिनिस्ट्री ऑफ रोड, ट्रांसपोर्ट एंड हाईवेज (मोर्थ) के अधिकारियों की आपत्ति के बाद इसे कोटा में 15 किलोमीटर ही रखा गया. इसके बाद बूंदी जिले में 5 किलोमीटर रखा गया और दिल्ली एक्सप्रेस में इसे मिलाना था. इससे करीब 50 किलोमीटर की बचत की बात मोर्थ के अधिकारी बता रहे थे, इसलिए ही यह हाईवे लगभग अटक गया है.
414 किमी लम्बा बनना है एक्सप्रेस वे : नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया की योजना के अनुसार कोटा जिले से चार लेन का एक्सप्रेस-वे को शुरू करना है. इसके बाद इसे चंबल नदी के किनारे 414 किलोमीटर बनना है. इसमें करीब 20 हजार करोड़ की लागत आनी है. इसमें कोटा के कराडिया से एक्सप्रेस-वे शुरू होकर उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के इटावा रोड पर खत्म होना है, जबकि राजस्थान का हिस्सा कोटा जिले के खातौली पर ही मध्य प्रदेश की सीमा पर खत्म होगा. बाद में मध्यप्रदेश के 3 जिले भिंड, मुरैना और श्योपुर से यह एक्सप्रेस-वे गुजरेगा. बताया जा रहा है कि ट्रैफिक कैलकुलेशन के अनुसार इससे 20000 वाहन रोज गुजरेंगे, जो उत्तर प्रदेश से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और हरियाणा जाने वाले होंगे.
भूमि अवाप्ति और फॉरेस्ट क्लीयरेंस में भी अटका : अटल एक्सप्रेस-वे के लिए 60 मीटर की जगह अधिग्रहित होनी है. जहां वन विभाग का एरिया है, वहां 50 मीटर जगह लेनी थी. वहीं इस चार लेन के हाईवे में सड़क की चौड़ाई 26.50 मीटर होगी. शेष बची हुई जगह पर पौधे लगने हैं. इसके साथ ही दोनों तरफ सर्विस लेन भी बनेगी, जिसकी चौड़ाई 7 मीटर होनी है. इसका पहले एलिमेंट फाइनल किया गया था. इसके बाद भूमि अवाप्ति कमेटी में इसकी अप्रूवल ली गई थी. इसके बाद थ्री कैपिटल ए की कार्रवाई के लिए इसे भेज दिया था. यह कार्रवाई पूरी करने के बाद दीगोद और इटावा के एसडीएम कार्यालय में ही लंबित है. ऐसे में एलाइनमेंट के बदलाव की बात सामने आने पर किसानों की भूमि अवाप्ति का काम भी अटक गया है. दूसरी तरफ यह प्रोजेक्ट चंबल घड़ियाल सेंचुरी के इको सेंसेटिव जोन और वन विभाग के इलाके से भी गुजर रहा है. इस कार्य को भी रोका गया है.
किसानों की आपत्ति के चलते अटका : मध्य प्रदेश में भी अटल प्रोग्रेस वे को लेकर विवाद हो गया था. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने चंबल के बीहड़ों में हाईवे निर्माण की स्वीकृति नहीं दी थी. दूसरी तरफ किसानों की जमीन आ रही थी, ऐसे में किसान भी अपनी जमीन देने को तैयार नहीं थे. इसके चलते मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री ने भी एक्सप्रेस-वे निर्माण का विरोध जता दिया था. यहां तक की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस एक्सप्रेस-वे निर्माण में दोबारा सर्वे कर एलाइनमेंट तय करने के निर्देश दिए थे, जिसके बाद मध्य प्रदेश में भी काम पूरी तरह से बाधित है. मार्च महीने के बाद मध्य प्रदेश में भी इस पर कोई गतिविधि नहीं हुई है.