कोटा. चंबल नदी कोटा से गुजर रही है और इसमें बहुतायात में मगरमच्छ मौजूद हैं. इसके साथ ही कोटा से निकलने के बाद चंबल घड़ियाल सेंचुरी में बड़ी संख्या में घड़ियाल भी है. हालांकि कोटा में क्रोकोडाइल बड़ी तादाद में हैं. इसके चलते कोटा को क्रोकोडाइल सिटी कहलाने का गौरव प्राप्त है. हालात ऐसे हैं कि यहां की हर नदी, नाले और तालाब में बड़ी तादाद में मगरमच्छ हैं. यह तैरता हुआ खतरा आसानी से इन जगहों पर देखा भी जा सकता है. स्थिति ऐसी है कि पिछले 5 सालों में कोटा शहर की सड़कों और कॉलोनियों से 20 दर्जन के आसपास मगरमच्छ रेस्क्यू किए जा चुके हैं. यह सभी वाइल्ड क्रोकोडाइल आबादी के एरिया में प्रवेश कर गए थे.
मैन वर्सेस क्रोकोडाइल की स्थिति, विभाग का इनकार : वन विभाग कोटा टेरिटोरियल के डेप्युटी कंजरवेटर ऑफ फारेस्ट जयराम पांडे का कहना है कि यहां बड़ी तादाद में मगरमच्छ जरूर हैं, लेकिन मैन वर्सेस क्रोकोडाइल जैसी स्थिति नजर नहीं आ रही है. यहां के लोग जागरूक हैं और वह मगरमच्छ को देखते ही वन विभाग तक सूचना पहुंचा देते हैं. डीसीएफ पांडे ने यह भी बताया कि कोटा शहर की अलग-अलग वाटर बॉडीज में करीब 400 से 500 मगरमच्छ होने का अनुमान है. हालांकि उनकी कभी गणना नहीं हो पाई है. अनुमान के आधार पर ही इन्हें इतनी संख्या में होना माना जा रहा है.
चंबल से मिले नालों के जरिए पहुंचे यहां पर : जब भी चंबल नदी उफान पर होती है, तभी इससे जुड़े नालों में यह मगरमच्छ पहुंच जाते हैं. यहां से ही मगरमच्छ नहर माइनर और शहर की अलग-अलग वाटर बॉडी में भी पहुंचे हैं. लगातार इनकी संख्या में भी वृद्धि हुई है. डीसीएफ जयराम पांडे का कहना है कि हर साल 2 से 6 फीसदी तक इनकी बढ़ोतरी होती है. मादा मगरमच्छ एक बार में 20 से 30 अंडे देती है और इनमें से 5 से 10 फीसदी अंडे ही सरवाइव कर पाते हैं. यानी मगरमच्छ की दो से तीन संतान ही बच पाती है. यही वयस्क होती है और आगे बढ़ोतरी करती है.
यहां पर आसानी से दिख जाएंगे मगरमच्छ : कोटा शहर की वाटर बॉडी ज्यादातर पुरानी है. इनमें चंबल नदी के अलावा दाई और बाई मुख्य नहर, छोटी माइनर, चंद्रसेल नदी, डीसीएम व रायपुरा नाले में भी मगरमच्छ आसानी से नजर आते है. वही किशोर सागर, नांता कोटडी, काला तालाब, रंगतालाब, रायपुरा व अनंतपुरा तालाब में भी इन्हें देखा जाता है. कोटा से पकड़े जाने वाले मगरमच्छों को पहले सावन भादो डैम में छोड़ा जा रहा था. इसके बाद अब शहर के देवली अरब रोड पर नगर वन स्थापित किया गया है. जहां पर क्रोकोडाइल व्यू प्वाइंट बनाया हुआ है. इसमें भी आधा दर्जन के आसपास मगरमच्छ छोड़े गए हैं. वहीं कुछ मगरमच्छों को कनवास इलाके में किशोरपुरा तालाब के नजदीक छोड़ा जाएगा. नगर वन के नजदीक नाला बहता है, जिसमें करीब 40 से 50 के तादाद में मगरमच्छ हैं. लोगों को जागरूक करने के लिए ही यहां व्यू प्वाइंट बनाया गया है.
नगर निगम के रेस्क्यू करने पर रोक : कोटा शहर में साल 2017-18 के आसपास तक नगर निगम की टीम भी मगरमच्छ आने की सूचना पर रेस्क्यू करती थी. इन मगरमच्छ को वन विभाग को सौंप देती थी. हालांकि क्रोकोडाइल के वाइल्ड एनिमल होने के चलते एक दो बार उसने नगर निगम के रेस्क्यू टीम के सदस्यों को भी घायल कर दिया था. इसके बाद नगर निगम की टीम के मगरमच्छ का रेस्क्यू करने पर रोक लगा दी गई. इसके बाद वन विभाग के लाडपुरा रेंज को इसका जिम्मा सौंपा गया. कोटा ही एकमात्र जिला है, जहां पर मगरमच्छ रेस्क्यू के लिए पूरे 24 घंटे टीम तैनात की गई है.
डेडीकेटेड टीम के जरिए किए हैं सभी रेस्क्यू : वन विभाग की लाडपुरा रेंज में एक पूरी टीम इसके तहत बनाई हुई है. रेंजर कुंदन सिंह का कहना है कि इस टीम में कैटल गार्ड वीरेंद्र सिंह हाडा व वनरक्षक धर्मेंद्र चौधरी और होमगार्ड अन्य वन कार्मिक शामिल है. यह टीम जिस इलाके में रेस्क्यू करने जाती है. उस एरिया के फॉरेस्टर भी उनके साथ जुड़ जाते हैं. साथ ही 24 घंटे टीम की ड्यूटी क्रोकोडाइल रेस्क्यू के लिए रहती है. क्रोकोडाइल रेस्क्यू के लिए टीम को पुलिस कंट्रोल रूम, जिला प्रशासन कंट्रोल रूम और खुद वन विभाग के अधिकारियों के जरिए सूचना मिलती है.
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पानी में जाने के बाद नहीं होता है रेस्क्यू : डीसीएफ जयराम पांडे का कहना है कि कई बार मगरमच्छ नजर आने के बाद वाटर बॉडी में चले जाते हैं. जिसके बाद उसे रेस्क्यू करना काफी दिक्कत भरा होता है. दलदल के एरिया में मगरमच्छ का रेस्क्यू नहीं हो पाता है, क्योंकि हमारे पास अत्याधुनिक संसाधन भी नहीं हैं. दूसरी तरफ वह काफी खतरनाक भी होता है. पानी कम होने पर रेस्क्यू टीम पूरा रेस्क्यू कर लेती है. ज्यादा होने की स्थिति में पब्लिक को अवेयर करती है कि जब भी पानी कम हो जाएगा, तब सूचित कर दें जिससे रेस्क्यू हो सके. जबकि सामान्य सुखी जगह पर आसानी से रेस्क्यू हमारे टीम कर लेती है. हालांकि इसमें टाइम काफी लगता है.
एक्सीडेंट में भी मगरमच्छों की हुई है मौत : रेंजर कुंदन सिंह का कहना है कि बीते 5 सालों में 236 मगरमच्छों के रेस्क्यू किए गए हैं. इनमें छोटे बच्चों से लेकर 200 किलो वजनी बड़े मगरमच्छ भी मिले हैं. इन्हें यह कोटा शहर की कॉलोनी, सड़कों, छोटे तालाबों, प्लॉट में भरे पानी और मैरिज गार्डन, स्कूल, कोचिंग एरिया के साथ-साथ सरकारी विभाग से भी रेस्कयू किया गया है. हालांकि इनमें 18 मगरमच्छ मृत अवस्था में भी मिले थे. इनमें एक दो मगरमच्छ रेलवे ट्रैक पर भी ट्रेन से कटने के चलते मृत मिले थे. इसके अलावा एक दो मगरमच्छ सड़कों पर भी मृत अवस्था में मिले थे.
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जल प्लावन होने से भागते है सूखे एरिया की तरफ : शहर के एरिया में मगरमच्छों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. जब बारिश ज्यादा होती है, तब मगरमच्छ ज्यादा नजर आते हैं और लोगों के लिए खतरा भी बनते हैं, क्योंकि यह आबादी वाले एरिया में प्रवेश कर जाते हैं. बहाव ज्यादा होने पर मगरमच्छ पानी से निकलकर किनारो पर आ जाते हैं. दूसरी तरफ दलदल भी बहाव के चलते आगे बढ़ जाता है, इससे बचने के लिए ही मगरमच्छ बाहर निकलता है. इसके अलावा जल प्लावन की स्थिति होने पर भी मगरमच्छ सूखे एरिया में पहुंच जाते हैं.
18 फीट तक हो जाती है मगरमच्छ की लंबाई : डीसीएफ जयराम पांडे के अनुसार जब मगरमच्छ अंडे से बाहर निकलता है. उसके कुछ दिनों में ही वह करीब 1 फीट के आसपास लंबाई का हो जाता है. इसकी अधिकतम लंबाई मगरमच्छ के 18 फिट हो जाती है, वजन भी इनका 170 से 250 किलो तक होता है. इसके साथ ही एक सामान्य मगरमच्छ की उम्र 70 से 80 साल के आसपास होती है. मगरमच्छ करीब 4 साल में ही वयस्क हो जाता है. करीब 7 से 8 साल में वह 10 से 15 फीट के बीच पहुंच जाता है. उसका वजन भी 100 किलो से ज्यादा हो जाता है.
यह है तादात बढ़ने का कारण : जयराम पांडे का कहना है कि कोटा में मगरमच्छों की संख्या बढ़ने का सबसे बड़ा कारण यहां पर जिन नदी नालों में यह रहते हैं. वहां पर दलदली या कीचड़ वाले पानी में रहते हैं. साथ ही उन्हें खाने के लिए पर्याप्त मछली भी इन एरिया में मिल जाती है. इन नालों में मरे हुए जानवरों की लाश भी इनका प्रमुख भोजन होता है. इसके चलते लगातार इनकी संख्या भी बढ़ रही है.