कोटा. जिले के रहने वाले लालचंद की किस्मत को मछलियों ने खोला है. तीन साल पहले तक टेलरिंग करने वाले लालचंद उर्फ लाला राम मेरोठा की बंद किस्मत को मछली पालन ने यूं खोला की आज वे लाखों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं. लालचंद ने टेलरिंग का काम छोड़कर मछली पालन का व्यवसाय शुरू किया. करीब 2 साल में ही वे करीब दो करोड़ की मछलियां बेच चुके हैं. इसमें से 75 लाख रुपये से लेकर 1 करोड़ तक कमाई भी कर चुके हैं.
यह आमदनी महज 3 साल में हुई है. अब लगातार लालचंद मछली पालन में बढ़ोतरी करने में जुटे हैं. लालचंद के पास में मानपुरा गांव में जमीन थी, जिसमें उसके भाइयों की भी हिस्सेदारी थी. हालांकि, यह जमीन ज्यादा उपजाऊ नहीं थी. कोटा से झालावाड़ फोरलेन हाइवे का निर्माण चल रहा था, इसके लिए मिट्टी की आवश्यकता थी. ऐसे में साल 2019 में लालचंद ने अपने 25 बीघा खेत की मिट्टी खुदवा कर बेच दी. इससे लालचंद को 50 लाख रुपये की आमदनी हुई. हालांकि, उसकी किस्मत ने जोर दिया. जिस खेत में उसने खुदाई करवाई थी, उसमें जमीन से पानी का रिसाव हुआ, जिससे यह तलाई जैसा बन गया. इसके बाद लालचंद ने मछली पालन की योजना बनाई. इसमें वह सफल रहा. हालांकि, शुरुआत में उसके परिजनों ने इसका विरोध किया था. परिजनों ने कहा कि यह हमारे लिए काम नहीं है, लेकिन लालचंद अडिग रहा और इस काम में लगातार जुटा रहा.
शुरू में लाया 70 हजार मछलियां, चोरी हो गईं : लालचंद का कहना है कि तालाब में पानी आ जाने के चलते उसने मछली पालन की योजना बनाई. इसके लिए उसने आत्मा परियोजना के तहत प्रशिक्षण भी लिया. बाद में साल 2020 के अगस्त में उत्तर प्रदेश के बरेली से 70 हजार छोटी मछलियां उसने मंगवाई. इनकी लागत करीब 70 से 80 हजार रुपये आई थी. लालचंद ने मछलियां तालाब में छोड़ दी. इन मछलियों को लगातार वह दाना डालते रहे, जिससे वे बड़ी हो गईं, लेकिन रात्रि के समय सुरक्षा नहीं कर पाने के चलते कई लोग मछलियां चुरा कर ले गए. लालचंद को मछलियां निकालना भी नहीं आता था, इसलिए वह निकाल भी नहीं पाए.
सुल्तानपुर के कासिमपुरा से खरीदे बीज : लालचंद का कहना है कि कोटा जिले के सुल्तानपुर के कासिमपुरा में मछलियों की सरकारी हैचरी है. जहां से साल 2021 में वह 50 लाख मछलियों के बीज (स्पॉन) खरीद कर लाए. इनकी कीमत करीब 80 हजार रुपये थी. इन बीज से महज 5 फीसदी मछलियां यानी कि करीब 2.5 लाख ही पनपी हैं, शेष मर गई थीं. बची हुई मछलियों में से वयस्क केवल 2 लाख मछली ही हुई हैं, बाकी कमजोर रह गईं. इनमें से लालचंद साल 2022 से अब तक 1 लाख को बेच चुके हैं. मछली की साइज 1 से लेकर 3 किलो हो गई थी, जिनका औसत करीब 2 किलो माना जा सकता है. बाजार में थोक भाव में मछली के दाम 100 रुपये के आसपास हैं. डेढ़ करोड़ की मछली बेच चुके हैं, अभी तालाब में इतनी मछलियां और उनके पास हैं. जिनमें राऊ, कतला व ग्लासकार्प मछली शामिल हैं. यह मछलियां शाकाहारी मछलियां ही हैं, इनको केवल दाना ही खिलाया जाता है.
अब सिवान से मंगाएंगे मुर्रेल मछली : लालचंद का कहना है कि वह अब सिवान से सावल यानी मुर्रेल मछली को मंगाने वाले हैं. यह मछलियां करीब दो लाख की तादाद में मंगाएंगे, जिसमें 1 महीने की उम्र की मछलियां उनके पास आएंगी. इनमें (स्पॉन) बीज की तरह मरने का खतरा कम रहता है. इनकी लागत भी करीब 8 लाख रुपये के आसपास रहेगी. यह बोनलेस मछली होती है. इसका बाजार मूल्य भी काफी अच्छा मिलता है. लालचंद का कहना है कि मछलियों को करीब 6 से 7 महीने तैयार करेंगे और उसके बाद में बाजार में बेचेंगे.
अन्य किसान भी आ गए आगे : कृषि विभाग की आत्मा परियोजना के संयुक्त निदेशक आरके जैन का कहना है कि लालचंद को देखकर कोटा जिले के अन्य कई किसान भी मछली पालन करने लगे हैं. जिनमें सांगोद और रामगंज मंडी इलाके के मदनपुरा के किसान शामिल हैं. हालांकि, अभी उन्हें फायदा नहीं हो रहा है, जबकि लालचंद कमर्शियल क्रॉप मछली की लेने लगे हैं और उन्हें बेचने से फायदा भी उन्हें हो रहा है. अब तक वे डेढ़ से दो करोड़ की मछली बेच चुके हैं. आत्मा परियोजना के उप निदेशक अनिल कुमार अग्रवाल का कहना है कि कोटा जिले के अलावा राजस्थान में इस तरह से मछली उत्पादन में फायदा किसी व्यक्ति को नहीं मिला.
टेलरिंग की कमाई से कई गुना ज्यादा इनकम : लालचंद का पूरा परिवार ही उनके साथ इस काम में जुटा हुआ है. उनका संयुक्त परिवार है, लेकिन अभी भी उनके भाई टेलरिंग का काम ही करते हैं, जबकि साथ में मछली पालन के व्यवसाय में भी वे जुड़े हुए हैं. लालचंद का कहना है कि टेलरिंग से उनके दुकान की आमदनी 1000 रुपये के आसपास की थी, लेकिन अब बीते 2 साल में मछली पालन से डेढ़ से दो करोड़ रुपये की मछली बेच चुके हैंं, जिसमें आधी बचत हुई है.
पहले भाई ने बताया था पाप, अब साथ में करता है मॉनिटरिंग : लालचंद पहले अपने भाई राधेश्याम के साथ ही मानपुरा के नजदीक स्थित सहरावद गांव में टेलरिंग का काम करते थे, जहां उनकी दुकान आज भी है. लालचंद के भाई आज भी टेलरिंग का काम करते हैं. साथ ही मछली पालन के व्यवसाय में भी उनकी मदद करते हैं, जबकि करीब एक से डेढ़ साल तक लालचंद को उन्होंने ही तालाब में मछली नहीं डालने दी थी. साथ ही कहा था कि यह पाप का कार्य है. इस तरह के काम हमें शोभा नहीं देते. लालचंद इसमें अडिग रहे और चोरी-छिपे ही परिजनों को बिना बताए तालाब में मछली डाल दी. हालांकि, अब उनकी तरक्की को देखकर पूरा परिवार साथ जुड़ा हुआ है. यहां तक कि उनके भतीजे और बच्चे भी इस मछली पालन में मदद कर रहे हैं.
बेचने से मिली राशि की आधी होती है लागत : लालचंद का कहना है कि मछली का बीज यानी स्पॉन को बड़ा करना काफी कठिन होता है, जबकि एक या दो महीने की मछली को लाना ज्यादा मुफीद साबित होता है. मछली को सरसों का खल, मक्के का दलिया, चने की चूरी, पैकिंग फीड और चावल भी दिए जाते हैं. सामान्य तौर पर एक मछली को 1 किलो वजन तक पहुंचाने में 8 से 9 महीने लग जाते हैं. मछली अपने वजन का 5 फीसदी भोजन दिन में लेती है, इस पर खर्चा भी काफी होता है. इसके अलावा मछली को तालाब में से निकालने के लिए शिकारियों को बुलाया जाता है. यह भी प्रति किलो 15 से 20 रुपये लेते हैं. मछली चोरी नहीं हो जाए इसके लिए रात भर चौकीदारी भी करनी पड़ती है.