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Special: कोटा की मंडी पर MP-UP के किसानों का विश्वास, जानें कैसे राजस्थान को हो रहा सालाना करोड़ों का लाभ - Rajasthan hindi news

कोटा की भामाशाह कृषि उपज मंडी (Kota Bhamashah Mandi) में सालाना एक करोड़ 35 लाख क्विंटल के बीच माल आता है. इसमें करीब 70 फीसदी माल मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का होता है. जिससे राजस्थान सरकार को मंडी टैक्स के रूप में सालाना 50 से 55 करोड़ रुपए मिलते हैं.

Kota Bhamashah Mandi
कोटा की भामाशाह कृषि उपज मंडी
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Published : Nov 6, 2022, 6:28 AM IST

कोटा. कोटा की भामाशाह कृषि उपज मंडी एशिया में सबसे बड़ी (Kota Bhamashah Mandi) मंडी है, लेकिन यहां ज्यादातर माल राजस्थान की जगह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से आता है. जिसकी खेप लगातार बढ़ती जा रही है. भामाशाह कृषि उपज मंडी के ग्रेन मर्चेंट एंड सीड्स एसोसिएशन (Grain Merchant and Seeds Association) की मानें तो मंडी में सालाना एक करोड़ 15 लाख से एक करोड़ 35 लाख क्विंटल के बीच माल आता है. जिसमें करीब 70 फीसदी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का होता है. मंडी से 200 से 400 किलोमीटर दूर होने के बाद भी वहां के किसान यहां माल बेचने में रुचि दिखाते हैं. जिससे राजस्थान सरकार को मंडी टैक्स के रूप में यहां से सालाना 50 से 55 करोड़ रुपए मिलते हैं. इसके अलावा जीएसटी से हासिल होते हैं. जिसका करीब 70 फीसदी यानी 40 करोड़ के आसपास मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के किसानों की उपज से मिलते हैं. भामाशाह कृषि उपज मंडी के ग्रेन एंड सीड्स मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष अविनाश राठी ने बताया कि कोटा मंडी में उत्तम व्यवस्था होने के चलते यहां लोगों का विश्वास बना है.

रोजाना होती है लाखों बोरी की आवक: ग्रेन एंड सीड्स मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष अविनाश राठी ने बताया कि यह एरिया के अनुसार राजस्थान की सबसे बड़ी मंडी है. यहां आने वाले माल व राजस्व के आधार पर यह एशिया की सबसे बड़ी मंडी है. यहां रोजाना दो से ढाई लाख के बीच बोरियों की आवक है. जिसके खरीददारों की यहां भरमार है. इसके चलते यहां पर किसानों को अच्छे भाव मिल जाते हैं. मंडी में सबसे अधिक चावल की आवक है. यहां प्रतिदिन एक लाख बोरी से अधिक चावल आता है. बात अगर सरसों की करें तो 50-60 हजार व सोयाबीन 70 हजार बोरी तक आती है. इसके अलावा धनिया, चना, उड़द, तिल व गेहूं भी भारी मात्रा में आता है. लहसुन भी सीजन में 50 हजार बोरी तक आ जाता है. आगे उन्होंने कहा कि जल्द ही मंडी का विस्तार होगा. ऐसे में मंडी के विस्तार के साथ ही यहां 6 लाख बोरी तक मालों की खपत बढ़ने की संभावना है.

मंडी पर MP-UP के किसानों का विश्वास

इसे भी पढ़ें - kota Mandi: मंडी में माल का उठाव नहीं होने पर किसान परेशान, हड़ताल ने और बढ़ा दी परेशानी

इसलिए मंडी पर बना किसानों का विश्वास: मंडी में धान के बड़े व्यापारी प्रकाश चंद जैन 'पालीवाल' ने बताया कि कोटा की मंडी में खुली नीलामी होने के कारण यहां किसी तरह की मिलीभगत संभव नहीं है. यहां व्यापारियों की अपनी गुडविल है. इसी से किसान संतुष्ट होते हैं और मौजूदा आलम यह है कि मंडी में राजस्थान के इतर मध्य प्रदेश के अशोकनगर, गुना, शिवपुरी, ग्वालियर, श्योपुर, सुसनेर, आगर सहित कई जगहों के किसान अपनी उपज को बेचने जाते हैं. खैर, यहां केवल मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि यूपी के झांसी, नैनी, प्रयागराज, आगरा से भी किसान माल लेकर आते हैं.

एमपी की उपज से राजस्थान को रेवेन्यू: अविनाश राठी ने बताया कि व्यापारियों की कार्य कुशलता, वर्कमैनशिप और ईमानदारी के चलते यहां भारी मात्रा में मालों की आवक है. किसान भले ही मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में खेती कर रहा हो, लेकिन जब माल बचने की बात आती है तो वो कोटा मंडी की ओर रूख करता है. इससे राजस्थान सरकार को रेवेन्यू हासिल होता है. उन्होंने बताया कि मंडी में 70 फीसदी माल यूपी और एमपी से आता है. जिनमें सोयाबीन, उड़द, तिल्ली, चना, गेहूं, धान और लहसुन मुख्य रूप से शामिल है. राठी ने कहा कि यहां रोजाना एक लाख बोरी से अधिक धान आ रहा है. उसमें राजस्थान का 70 व एमपी का 30 फीसदी है. यह आंकड़ा 15 नवंबर के बाद बढ़ जाएगा.

यहां किसानों को मिलता है नकद पैसा: मंडी में किसानों के साथ ईमानदारी और ट्रांसपेरेंसी रखे जाने के कारण उन्हें भी यहां के व्यापारियों पर विश्वास है. किसानों के आंखों के सामने ही उनके माल को तौला जाता है. साथ ही उन्हें तुरंत उनके माल का भुगतान और वो भी नकद किए जाने से किसानों को भी खुशी होती है. यही नहीं अगर किसी किसानों को फसल की बुआई के लिए एडवांस की जरूरत होती है तो उन्हें आसानी से यहां एडवांस भी मिल जाता है. इससे व्यापारियों की क्रेडिबिलिटी भी बनी हुई है. मध्य प्रदेश के श्योपुर से माल बचने आए परमजीत सिंह ने बताया कि उनका यहां के व्यापारियों से बहुत अच्छे संबंध हैं. पैसे की जरूरत होती है तो उन्हें बिना किसी परेशानी के आराम से पैसे भी मिल जाते हैं. उन्होंने कहा कि यहां किसी भी प्रकार की लूटमार नहीं है.

माल बचने के लिए नहीं करना पड़ता इंतजार: एमपी के कोलारस निवासी देवेंद्र सिंह डांगी ने बताया कि यहां उन्हें मध्य प्रदेश से अधिक दाम मिलता है. उन्होंने कहा कि वहां से करीब 200 से 250 रुपये अधिक मिलता है. हमारे पूरे इलाके के 80 प्रतिशत किसान अपनी उपज यहीं लेकर आते हैं. वहीं, मध्य प्रदेश के गोलू मीणा ने कहा कि श्योपुर में मंडी में माल बेचने में काफी परेशानी होती है. जबकि कोटा की मंडी में एक साथ पूरा माल बिक जाता है. यहां उन्हें इंतजार भी नहीं करना पड़ता और माल के अच्छे दाम भी मिल जाते हैं.

कोटा के व्यापारियों का बाहर के कारोबारियों से बेहतर संपर्क होने के कारण उन्हें इसका लाभ भी मिलता है. आज देशभर से यहां माल भेजे जा रहे हैं. जिसके चलते आढ़तिए अधिक सक्षम हुए हैं. मध्य प्रदेश के किसान मलकीत सिंह ने कहा कि एमपी की मंडियों में व्यापारी कम माल खरीदते हैं. ऐसे में अपनी उपज को बेचने के लिए कई दिनों तक उन्हें मंडियों में इंतजार करना पड़ता है, लेकिन कोटा में ऐसी स्थिति नहीं है. यहां बिना इंतजार के आराम से माल बिक जाते हैं और उन्हें अच्छी कीमत भी मिलती है.

कोटा. कोटा की भामाशाह कृषि उपज मंडी एशिया में सबसे बड़ी (Kota Bhamashah Mandi) मंडी है, लेकिन यहां ज्यादातर माल राजस्थान की जगह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से आता है. जिसकी खेप लगातार बढ़ती जा रही है. भामाशाह कृषि उपज मंडी के ग्रेन मर्चेंट एंड सीड्स एसोसिएशन (Grain Merchant and Seeds Association) की मानें तो मंडी में सालाना एक करोड़ 15 लाख से एक करोड़ 35 लाख क्विंटल के बीच माल आता है. जिसमें करीब 70 फीसदी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का होता है. मंडी से 200 से 400 किलोमीटर दूर होने के बाद भी वहां के किसान यहां माल बेचने में रुचि दिखाते हैं. जिससे राजस्थान सरकार को मंडी टैक्स के रूप में यहां से सालाना 50 से 55 करोड़ रुपए मिलते हैं. इसके अलावा जीएसटी से हासिल होते हैं. जिसका करीब 70 फीसदी यानी 40 करोड़ के आसपास मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के किसानों की उपज से मिलते हैं. भामाशाह कृषि उपज मंडी के ग्रेन एंड सीड्स मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष अविनाश राठी ने बताया कि कोटा मंडी में उत्तम व्यवस्था होने के चलते यहां लोगों का विश्वास बना है.

रोजाना होती है लाखों बोरी की आवक: ग्रेन एंड सीड्स मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष अविनाश राठी ने बताया कि यह एरिया के अनुसार राजस्थान की सबसे बड़ी मंडी है. यहां आने वाले माल व राजस्व के आधार पर यह एशिया की सबसे बड़ी मंडी है. यहां रोजाना दो से ढाई लाख के बीच बोरियों की आवक है. जिसके खरीददारों की यहां भरमार है. इसके चलते यहां पर किसानों को अच्छे भाव मिल जाते हैं. मंडी में सबसे अधिक चावल की आवक है. यहां प्रतिदिन एक लाख बोरी से अधिक चावल आता है. बात अगर सरसों की करें तो 50-60 हजार व सोयाबीन 70 हजार बोरी तक आती है. इसके अलावा धनिया, चना, उड़द, तिल व गेहूं भी भारी मात्रा में आता है. लहसुन भी सीजन में 50 हजार बोरी तक आ जाता है. आगे उन्होंने कहा कि जल्द ही मंडी का विस्तार होगा. ऐसे में मंडी के विस्तार के साथ ही यहां 6 लाख बोरी तक मालों की खपत बढ़ने की संभावना है.

मंडी पर MP-UP के किसानों का विश्वास

इसे भी पढ़ें - kota Mandi: मंडी में माल का उठाव नहीं होने पर किसान परेशान, हड़ताल ने और बढ़ा दी परेशानी

इसलिए मंडी पर बना किसानों का विश्वास: मंडी में धान के बड़े व्यापारी प्रकाश चंद जैन 'पालीवाल' ने बताया कि कोटा की मंडी में खुली नीलामी होने के कारण यहां किसी तरह की मिलीभगत संभव नहीं है. यहां व्यापारियों की अपनी गुडविल है. इसी से किसान संतुष्ट होते हैं और मौजूदा आलम यह है कि मंडी में राजस्थान के इतर मध्य प्रदेश के अशोकनगर, गुना, शिवपुरी, ग्वालियर, श्योपुर, सुसनेर, आगर सहित कई जगहों के किसान अपनी उपज को बेचने जाते हैं. खैर, यहां केवल मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि यूपी के झांसी, नैनी, प्रयागराज, आगरा से भी किसान माल लेकर आते हैं.

एमपी की उपज से राजस्थान को रेवेन्यू: अविनाश राठी ने बताया कि व्यापारियों की कार्य कुशलता, वर्कमैनशिप और ईमानदारी के चलते यहां भारी मात्रा में मालों की आवक है. किसान भले ही मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में खेती कर रहा हो, लेकिन जब माल बचने की बात आती है तो वो कोटा मंडी की ओर रूख करता है. इससे राजस्थान सरकार को रेवेन्यू हासिल होता है. उन्होंने बताया कि मंडी में 70 फीसदी माल यूपी और एमपी से आता है. जिनमें सोयाबीन, उड़द, तिल्ली, चना, गेहूं, धान और लहसुन मुख्य रूप से शामिल है. राठी ने कहा कि यहां रोजाना एक लाख बोरी से अधिक धान आ रहा है. उसमें राजस्थान का 70 व एमपी का 30 फीसदी है. यह आंकड़ा 15 नवंबर के बाद बढ़ जाएगा.

यहां किसानों को मिलता है नकद पैसा: मंडी में किसानों के साथ ईमानदारी और ट्रांसपेरेंसी रखे जाने के कारण उन्हें भी यहां के व्यापारियों पर विश्वास है. किसानों के आंखों के सामने ही उनके माल को तौला जाता है. साथ ही उन्हें तुरंत उनके माल का भुगतान और वो भी नकद किए जाने से किसानों को भी खुशी होती है. यही नहीं अगर किसी किसानों को फसल की बुआई के लिए एडवांस की जरूरत होती है तो उन्हें आसानी से यहां एडवांस भी मिल जाता है. इससे व्यापारियों की क्रेडिबिलिटी भी बनी हुई है. मध्य प्रदेश के श्योपुर से माल बचने आए परमजीत सिंह ने बताया कि उनका यहां के व्यापारियों से बहुत अच्छे संबंध हैं. पैसे की जरूरत होती है तो उन्हें बिना किसी परेशानी के आराम से पैसे भी मिल जाते हैं. उन्होंने कहा कि यहां किसी भी प्रकार की लूटमार नहीं है.

माल बचने के लिए नहीं करना पड़ता इंतजार: एमपी के कोलारस निवासी देवेंद्र सिंह डांगी ने बताया कि यहां उन्हें मध्य प्रदेश से अधिक दाम मिलता है. उन्होंने कहा कि वहां से करीब 200 से 250 रुपये अधिक मिलता है. हमारे पूरे इलाके के 80 प्रतिशत किसान अपनी उपज यहीं लेकर आते हैं. वहीं, मध्य प्रदेश के गोलू मीणा ने कहा कि श्योपुर में मंडी में माल बेचने में काफी परेशानी होती है. जबकि कोटा की मंडी में एक साथ पूरा माल बिक जाता है. यहां उन्हें इंतजार भी नहीं करना पड़ता और माल के अच्छे दाम भी मिल जाते हैं.

कोटा के व्यापारियों का बाहर के कारोबारियों से बेहतर संपर्क होने के कारण उन्हें इसका लाभ भी मिलता है. आज देशभर से यहां माल भेजे जा रहे हैं. जिसके चलते आढ़तिए अधिक सक्षम हुए हैं. मध्य प्रदेश के किसान मलकीत सिंह ने कहा कि एमपी की मंडियों में व्यापारी कम माल खरीदते हैं. ऐसे में अपनी उपज को बेचने के लिए कई दिनों तक उन्हें मंडियों में इंतजार करना पड़ता है, लेकिन कोटा में ऐसी स्थिति नहीं है. यहां बिना इंतजार के आराम से माल बिक जाते हैं और उन्हें अच्छी कीमत भी मिलती है.

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