जयपुर: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पांच दिन के आयोजन का समापन हो चुका है. इस बीच साहित्य के महाकुंभ में पांचों दिन देसी-विदेशी मेहमानों के सेशन को साइन लैंग्वेज में ट्रांसलेट कर अब तक इस आयोजन से दूर रहे लोगों की पहुंच तक जेएलएफ को लेकर जाया गया. इस पहल में जयपुर के नुपूर संस्थान ने अपनी टीम को लगाया. इस संस्था के फाउंडर मनोज भारद्वाज कहते हैं कि काफी समय से उनके जेहन में इस बात को लेकर विचार था कि बधिर समुदाय तक ऐसे कार्यक्रमों की पहुंच को बढ़ाया जाए और इन्हें बाधा मुक्त बनाए. उनका कहना था कि समाज में हम समावेशी विचार रखते हैं, तो इस पीड़ा को समझा जाना चाहिए. मनोज भारद्वाज ने कहा कि RPWD एक्ट में इसका प्रावधान बना हुआ है जिसमें कठोर गाइडलाइन बनी हुई है. इसके बावजूद समाज में हर मोड पर बधिर समुदाय के लिए इस तरह की चुनौतियां बरकरार हैं. मनोज भारद्वाज ने बताया कि जेएलएफ के इस आयोजन में देश-दुनिया से आए मेहमानों ने भी उनकी पहल को सराहा था. इस बार डेफ कम्युनिटी को जेएलएफ में सेशन के दौरान अपनी कमजोर का एहसास नहीं हुआ.
क्या है RPWD एक्ट: साल 2016 में विकलांग व्यक्तियों के अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) अधिनियम, 2016, को बनाया गया था. जिसका मकसद विकलांग लोगों के अधिकारों और सम्मान को बढ़ावा देना था. यह अधिनियम दिसंबर 2016 में लागू हुआ था. इस अधिनियम के तहत, विकलांग लोगों के लिए शिक्षा, रोजगार और सामाजिक भागीदारी के मौके बढ़ाए जाने पर जोर दिया गया था.
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हर सेशन के पीछे पुख्ता तैयारी: मनोज भारद्वाज से जब पूछा गया कि अलग-अलग भाषाओं वाले मेहमानों को उनकी टीम कैसे साइन लैंग्वेज में तब्दील करती है, तो उन्होंने इसके पीछे की मेहनत का जिक्र किया. मनोज ने बताया कि उनकी टीम सेशन के एक दिन पहले उस कार्यक्रम में शामिल होने वाले अतिथियों के बारे में जानकारी जुटाती है. इसके साथ ही चर्चा में टॉपिक के बारे में गहनता से जानकारी ली जाती है. व्यक्तित्व को लेकर वे लोग पड़ताल करते हैं और इस तरह तफ्सील के साथ जुटाई गई जानकारी के आधार पर वे लोग सेशन में शामिल होकर आने वाले मेहमानों की जुबान को अपने हाथ के इशारों पर उस वर्ग तक पहुंचाते हैं, जो सुन नहीं सकते हैं.
CODA और SODA भी JLF में: मनोज भारद्वाज कहते हैं कि बीते साल जेएलएफ के साथ यह पहल जुड़ी, जिसे इस बार और विस्तृत किया गया है. इस बारे के सेशन के बीच साइन लैंग्वेज के प्रोफेसर और इंटरप्रिटेटर्स को भी यहां आने का न्योता दिया. इन तमान लोगों को इस क्षेत्र में 15 से 20 साल का तजुर्बा रहा है. साथ ही इस बार के सेशन में शामिल इंटरप्रिटेटर्स डिप्लोमाधारी हैं, ताकी उनकी बातों की प्रामाणिकता और जिम्मेदारी बनी रहे. उन्होंने बताया कि इसमें CODA कैटेगरी (चिल्ड्रन ऑफ डेफ एडल्ट्स) को भी शामिल किया है. ये वे बच्चे होते हैं, जो बधिर माता-पिता की संतान होने के बावजूद सुनने और बोलने में सक्षम होते हैं. ये लोग सांकेतिक भाषा में निपुण भी होते हैं. इसी तरह से SODA कैटेगिरी भी होती है, जिसमें सिबलिंग्स यानि (सिबलिंग्स ऑफ डेफ एडल्ट्स) शामिल होते हैं.
जेएलएफ की पहुंच डिसेबिलिटी के आगे: जेएलएफ के प्रोड्यूसर संजॉय रॉय ने कहा कि उन्होंने नुपूर संस्थान के साथ मिलकर यह पहल की है. जिसमें उनकी सोच रही कि वे लिटरेचर फेस्टिवल को ज्यादा से ज्यादा लोगों की पहुंच तक लेकर जाएं. इसी के साथ उन्होंने बताया कि कई लोग व्हीलचेयर पर होने के बावजूद हर सेशन वाली जगह तक पहुंच बना रहे हैं. इसी तरह से हियरिंग डिसेबिलिटी वालों की पहुंच जेएलएफ तक पहुंचाने की रही है, ताकि जो लोग सांकेतिक भाषा समझते हैं, उन तक नुपूर संस्थान जैसे मंच के जरिए इन कार्यक्रमों की रीच बनाई जा रही है. संजॉय ने कहा कि हमें यह याद रखना चाहिए कि जिंदगी के एक पड़ाव पर हम सभी को किसी ना किसी प्रकार की डिसेबिलिटी का सामना करना पड़ेगा. लिहाजा हमें इसी दिशा में अपनी समझ बढ़ानी होगी.
बधिर समुदाय को शिक्षा की दरकार: मनोज भारद्वाज बताते हैं कि उनकी संस्था साइन लैंग्वेज एक्सपर्ट के नाते बीते 21 साल से पुलिस की मदद कर रही है. भारद्वाज कहते हैं कि वे डेफ कम्युनिटी के लिए समाज की हर एजेन्सी से यह ही अपील करते हैं कि वे बधिर समुदाय को शिक्षित बनाने में अपना योगदान दें. ताकि ये लोग लिख-पढ़कर अपने लिए समाज में जगह बना लेंगे. आज के हालात में डिग्रीधारी बधिर भी इस आम जीवन में लिखने-पढ़ने को लेकर कड़ी चुनौती का सामना करते हैं. उन्होंने अपनी एक रिसर्च का हवाला भी दिया, जिसमें उनकी टीम ने प्रदेश के 195 आईटीआई कॉलेज में दो साल से तालीम ले रहे डेफ बच्चों से बात की, तो उन्होंने बताया कि ये बच्चे लिखकर अपनी बात बताने में सक्षम नहीं है.
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बधिर समुदाय की आवाज बना नुपूर: बधिर समुदाय की सुनने की ताकत बनकर जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान सामाजिक संस्था नुपुर संस्थान की टीम आगे आई. इनका दावा है कि वे बधिर समुदाय के अधिकारों और समावेशी समाज की स्थापना के लिए काम करते हैं. बीते दो दशकों से इन्होंने शिक्षा, आपातकालीन सेवाओं, न्यायिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को बधिर जनों के लिए सुलभ बनाने में अहम भूमिका निभाई है. नुपूर संस्था के साथ जुड़े इंस्ट्रक्टर राकेश कुशवाह बताते हैं कि वे जेएलएफ में आने वाले लोगों से फीडबैक भी ले रहे हैं. जहां लोगों को यह पहल काफी पसंद आ रही है. लोग आयोजकों की तारीफ कर रहे हैं. लोगों की मांग है कि ऐसे इंटरप्रिएटर्स को बड़े आयोजनों के दौरान मंच पर होना चाहिए. कोडा इंस्ट्रक्टर दीक्षिका सैनी मंच पर अपने तजुर्बे को लेकर कहती हैं कि उनका प्रयास रहता है कि वे ज्यादा से ज्यादा डेफ कम्युनिटी को एक्सेस करा सकें. ताकी लोग समाज में समभाव को महसूस कर सकें.