अजमेर: अजमेर शहर के बीचों-बीच कायस्थ मोहल्ले में 16वीं शताब्दी में स्थापित बिजासन माता का थान आस्था का बड़ा केंद्र है. बिजासन माता को मानने वालों के लिए माई साती का दिन विशेष धार्मिक महत्व रखता है. मंगलवार को माई साती के दिन बिजासन माता का मेला आयोजित हुआ जो देर रात तक जारी रहा. हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने बिजासन माता की पारंपरिक तरीके से पूजा-अर्चना की और माता को घर पर बने लापसी चावल और पतासे का भोग लगाया.
मंगलवार को माई साती के विशेष पर्व पर आयोजित मेले में मंदिर समिति से जुड़े 50 कार्यकर्ताओं ने व्यवस्था का जिम्मा संभाला. मंदिर समिति के पदाधिकारी सुनील माथुर ने बताया कि अजमेर में एकमात्र बिजासन माता का मंदिर कायस्थ मोहल्ले में है. बिजासन माता का मंदिर 16वीं शताब्दी का है. शुरुआती दौर में कायस्थ और ब्राह्मण समाज के लोग ही मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आया करते थे. लेकिन धीरे-धीरे अन्य जाति और समाज के लोग भी बिजासन माता के थान पर आने लगे. 16वीं शताब्दी से ही बिजासन माता का मेला यहां लगता आया है.
उन्होंने बताया कि इस मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर में कोई पुजारी नहीं है और ना ही कोई मूर्ति है. यहां बिजासन माता को सात बहनों के रूप में माना जाता है. इन साथ बहनों के प्रतीक के रूप यहां सात खम्बे हैं. जिस पर श्रद्धालु जल अर्पित करते हैं और सातों खम्बों को भोग अर्पित करते हैं.
चमत्कारी है माता पर चढ़ा जल और लच्छा: स्थानीय आतिश माथुर ने बताया कि मंदिर की मान्यता है कि यहां बीमार बच्चों को मंदिर पर चढ़े हुए जल को पिलाने और लच्छा बांधने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है. इसके अलावा लकवा ग्रस्त रोगियों को भी यहां शाम के वक्त आरती में लाने और यहां का जल पिलाने से काफी राहत मिलती है. माता सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. माई साती के दिन माता की विशेष कृपा अपने भक्तों पर रहती है. लोग घरों से एक लोटा जल और घर पर बने लापसी चावल बनाकर लाते हैं और माता को अर्पित करते हैं. उन्होंने बताया कि माता की थान से उतरा हुआ लच्छा बहुत ही चमत्कारी है. माता के थान पर लगाकर धारण करने से शारीरिक, मानसिक व्याधियां दूर होती है.
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माता के थान की महिमा: माता पर गहरी आस्था रखने वाले कई लोग बाहर चले गए, लेकिन मेले के दिन यहां जरूर आते हैं. श्रद्धालु रेणु माथुर बताती हैं कि बचपन से ही वह माता के मेले को देखते आ रही हैं. कई लोग मोहल्ला छोड़कर अन्य क्षेत्रों में रहने लगे हैं, लेकिन उनकी आस्था उन्हें यहां खींच लाती है. उन्होंने बताया कि माता के थान पर लगने वाले मेले में श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. श्रद्धालु राजकुमारी शर्मा बताती हैं कि 40 बरस पहले शादी हुई थी तब से माता के थान पर आना जाना है. यहां सकल काज पूर्ण होते हैं. खासकर माता के दर पर बच्चों को धोक लगवाने और लच्छा बांधने से माता की सुरक्षा बच्चों को मिलती है.