करौली. पूर्वी राजस्थान के करौली जिले की अरावली पहाड़ियों के बीच विराजी मां कैलादेवी का प्रसिद्ध धार्मिक स्थान जन-जन की आस्था का (Kaila Devi Mandir in Karauli) केंद्र बना हुआ. भक्त माता को मां राज राजेश्वरी, करौली वाली मैया, शक्ति धाम, आदिशक्ति आदि कई नामों से पुकारते हैं. ममतामयी कैला मैया श्रद्धालुओं की पुकार पर हमेशा कृपा बरसाती हैं. वैसे तो हमेशा माता के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन विशेषकर चैत्र माह और शारदीय नवरात्रों में श्रद्धालुओं की भीड़ यहां उमड़ती है. उत्तर भारत के प्रसिद्ध धार्मिक मेलों में कैलामैया का लक्खी मेला भी शामिल है. ये मेला चैत्र माह और शारदीय नवरात्रि में भरता है. इसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु कोसों की पदयात्रा करते हुए कैलादेवी धाम पहुंचते हैं. यह मेला राजस्थान में लघु कुंभ के नाम से प्रख्यात है.
कैलादेवी पीठ का इतिहास : करौली जिला मुख्यालय से 23 कि.मी. दूर दक्षिण पश्चिम में अरावली पर्वत माला (History of Kaila Devi Mandir) पर सफेद संगमरमर से निर्मित मां कैलादेवी का भव्य मंदिर स्थित है. मंदिर के बाहर विशाल प्रांगण में लोहे की रेलिंगों के बीच से श्रद्धालु निकलकर मंदिर में प्रवेश करते हैं. जहां कैलादेवी और चामुण्डा माता की आदम कद प्रतिमा के दर्शन कर श्रद्धालु दूसरे निकासी द्वार से बाहर निकलते हैं. निकलते समय सीढ़ियों पर एक-एक कर भक्तों को कैला माता की भभूती बांटी जाती है. कैला माता के मंदिर के ठीक सामने मांं के प्रिय बोहरा भगत लांंगुरिया, भैरवनाथ, गणेशजी और शंकर भगवान का मंदिर है.
कैला माता के दर्शन कर श्रद्धालु इन मंदिरों में भी पूजा-अर्चना कर चढ़ावा (Location of Kaila Devi Mandir) चढ़ाते हैं. श्रद्धालु यहां दर्शन करने के बाद कन्या भोजन कराते हैं और दान-दक्षिणा इत्यादी भेंट करते हैं. कैलादेवी मंदिर करौली रियासत के यदुवंशी शासकों की कुलदेवी थी. इसी कारण मंदिर परिसर में पूर्व महाराजाओं के सजीव चित्र देखने को मिलते हैं. मंदिर की साज-संभाल और व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से रखने के लिए कैलादेवी मंदिर ट्रस्ट पूरी तरह से प्रयासरत है. मंदिर ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी करौली राजपरिवार के महाराज कृष्ण चंद पाल के निर्देशन में ट्रस्ट संचालित है.
400 से ज्यादा धर्मशालाओं की व्यवस्था : कैलादेवी मंदिर के ठीक सामने अरावली पर्वत माला से बहती हुई कालीसिल नदी, यहां के सौन्दर्य में चार चांंद लगाती है. नदी के तट पर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए जगह-जगह पक्के घाटों का निर्माण कराया गया है. श्रद्धालु नदी में स्नान कर माता कैलादेवी के दर्शन के लिए मंदिर पहुंंचते हैं. मेले के दौरान मंदिर ट्रस्ट की ओर से गोताखोर बुलाए जाते हैं. ताकि नदी में कोई हादसा होने पर लोगों को बचाया जा सके. श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कैलादेवी में 400 से ज्यादा धर्मशालाएं बनी हुई हैं. अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त गेस्ट हाउस और रिर्सोट बने हुए हैं.
इनमें मुख्य रूप से करौली राजपरिवार की ओर से बनवाई गई लाल पत्थर से बनी विशाल धर्मशाला अपने वैभव और कलात्मक नक्काशी के कारण आकर्षण का केंद्र है. इस विशाल धर्मशाला में एक साथ हजारों यात्री विश्राम कर सकते हैं. कैलादेवी मेले के दौरान यात्री दर्शनार्थियों की सुविधा को देखते हुए राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम की ओर से विशेष बसें चलाई जाती हैं. दूर-दराज से आने वाले यात्री दर्शानार्थी इन बसों से कैलादेवी मंदिर पहुंंचते हैं. कैलादेवी से 2 कि.मी. दूर घने जंगल में बाबा केदार गिरी की तपो भूमी है.
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कहा जाता है कि घने जंगल में जब दानव यहां के लोगों को शिकार बनाते थे. तब बाबा केदारगिरि ने घोर तपस्या की थी. जिससे खुश होकर मां कैलादेवी कन्या के रूप में बाबा के समक्ष प्रकट हुईं और बाबा से वरदान मांगने को कहा. इस पर बाबा ने माता से इस वन में ही रहकर दानवों का विनाश करने की प्रार्थना की. कैलामाता ने बाबा को यह वरदान दे दिया. कन्या के रूप में मांं नित्य बाबा केदारगिरि के साथ चौपड़ खेलती और रात में निर्जन वन में दानवों का वध करती थीं.
मां के अवतरण की तीन गाथाएं : (Epic Stories of Kaila Devi)
1. श्रीकृष्ण की बहन योगमाया हैं कैलादेवी: कैलादेवी मंदिर के बारे में एक और मान्यता है कि कैला देवी भगवान श्री कृष्ण की बहन हैं. कहा जाता है कि जब देवकी के दुष्ट भाई कंस को पता लगा था कि उनकी बहन की संतान ही उनकी मौत का कारण बनेगी. तब कंस ने बहन देवकी और जीजा वासुदेव को बंदी बना लिया था. जब देवकी की कोख से आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण अवतार में जन्म लिया, उसी समय गोकुल में यशोदा और नंद बाबा के घर बेटी का जन्म हुआ. जिसके बाद विधि के विधान अनुसार वासुदेवजी गोकुल जाकर कृष्ण को छोड़ आए और नंदबाबा की बेटी को अपने साथ मथुरा ले आए. कंस जब देवकी की आठवीं संतान को मारने लगा तो वह देवी रूप में प्रकट होकर आकाश में चली गईं. जनश्रुति है कि कंस के हाथ से छूटकर योगमाया देवी राजस्थान में कैला देवी के रूप में विराजमान हो गईं. कैलादेवी की पूजा यहां के लोग कृष्ण की बहन के रूप में भी करते हैं.
2. सती के अंग गिरने पर बनी कैलादेवी शक्तिपीठ : मंदिर के राजगुरु पंडित प्रकाश चंद के मुताबिक सती के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं एक शक्तिपीठ का उद्गम हुआ. उन्हीं शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ कैलादेवी है. कहा जाता है कि बाबा केदारगिरि ने तपस्या के बाद माता के श्रीमुख की स्थापना इस शक्तिपीठ के रूप में की थी. ऐतिहासिक साक्ष्यों व मान्यताओं के अनुसार प्राचीनकाल में सघन जंगल में स्थित गिरी-कंदराओं में एक दानव रहता था. जो लोगों को परेशान करता था. बाबा ने इस दानव से क्षेत्र को मुक्त कराने के लिए हिमलाज पर्वत पर आकर घोर तपस्या की. इससे प्रसन्न होकर माता प्रकट हुईं और वरदान मांगने को कहा. तब केदारगिरि ने दैत्यों से मुक्ति पाने का वर देवी मां से मांगा. कुछ समय पश्चात देवी मां कैला ग्राम में प्रकट हुईं और उस दानव का कालीसिंध नदी के तट पर वध किया. जहां एक बड़े पाषाण पर आज भी दानव के पैरों के चिन्ह देखने को मिलते हैं. इस स्थान का नाम आज भी दानव दह के नाम से जाना जाता है.
3. बोहरा भगत ने खुदाई से प्रतिमा निकाली : अन्य मान्यताओं के अनुसार त्रिकूट पर्वत पर बोहरा नामक चरवाहा अपने पशुओं को चराने ले जाता था. धार्मिक प्रवृति के बोहरा का मन भक्ति में खूब रमता था. एक दिन उसने देखा कि उसकी बकरियां एक स्थान विशेष पर दुग्ध सृजित कर रही हैं. इस चमत्कार ने उसे आश्चर्य में डाल दिया. उसने इस स्थल की खुदाई शुरू कर दी. कुछ दिन बाद वहां से कैला देवी मां की प्रतिमा निकली. चरवाहे ने भक्तिपूर्वक पूजन कर ज्योति जलाई. धीरे-धीरे प्रतिमा की ख्याति क्षेत्र में फैल गई. लोगों की मन की मुरादें पूरी होने से मां के दरबार में भक्तों का सैलाब उमड़ने लगा. आज भी बोहरा भगत का मंदिर कैलादेवी मुख्य मंदिर के प्रांगण में स्थित है.
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डकैत चढ़ाते थे विजयी घंटा और ध्वज : जानकारों की मानें तो डकैतों के लिए कैलादेवी आस्थाधाम किसी तीर्थ से कम नहीं था. मां कैलादेवी के इस मंदिर में डकैत वेश बदलकर आते और मां कैला देवी की साधना करते थे और लक्ष्य की साधना के लिए मां से मन्नत मांगते. मन्नत पूरी होने पर फिर आते और मां की पूजा के बाद विजय घंटा और ध्वज चढ़ाते थे. मंदिर के बाहर और अंदर पुलिस का कड़ा पहरा हर समय रहता है. कई बार पुलिस को मुखबिर डकैतों के आने की सूचना मिल भी जाती, लेकिन इसके बाद भी डकैत मंदिर में पूजा-पाठ कर निकल जाते. माना जाता है कि इक्का-दुक्का मामले छोड़ दें तो पुलिस किसी बड़े डकैत को यहां से आज तक नहीं पकड़ पाई.
कई राज्यों से पहुंचते हैं श्रद्धालु : वैसे तो कैलामाता के प्रागंण में 12 महिनों श्रद्धालुओं की (Lakkhi Mela in Kaila Devi Mandir) भीड़ लगी रहती है. लेकिन शारदीय नवरात्रि और चैत्र के नवरात्रि में यहां पर लाखों की तादाद में श्रद्धालु माता के मंदिर पहुंचते हैं. जिला प्रशासन, पुलिस विभाग, ग्राम पंचायत कैलादेवी और कैलादेवी ट्रस्ट की ओर से आयोजित मेले में एक साथ लाखों यात्रियों के ठहराव, दर्शन, आवागमन साधनों की व्यवस्थाएं की जाती हैं. जिसमें राजस्थान के अधिकांश जिलों से रोडवेज डिपो की बसें मंगवाईं जाती हैं. मेले में श्रद्दालुओं के आवागमन को लेकर कई रोडवेज बसे संचालित की जाती हैं. वहीं आगरा से हिण्डौन सिटी व गंगापुर सिटी तक मेला स्पेशल ट्रेनें भी चलाई गई हैं. उत्तर प्रदेश के आगरा, फिरोजाबाद, फतेहाबाद, एटा, कासगंज, इटावा, मैनपुरी व मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा के विभिन्न हिस्सों से पदयात्री हर वर्ष यहां दर्शन के लिए आते हैं.
खाटूश्यामजी हादसे के बाद प्रशासन हुआ सतर्क : बीते माह सीकर जिले के खाटूश्यामजी में दर्शन के दौरान मची भगदड़ में 3 महिलाओं की मौत के बाद जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन कैलादेवी मेले में श्रद्धालुओं की भारी आवक को देखते हुए सतर्क नजर आ रहा है. जहां एक ओर मंदिर ट्रस्ट की तरफ से यात्रियों के आने और जाने की अलग-अलग व्यवस्था की गई है, वहीं गर्मी को देखते हुए रेलिंग में ही श्रद्धालुओं को पानी के पाउच उपलब्ध कराए जा रहे हैं. भीड़ को एक जगह एकत्रित नहीं होने दिया जा रहा है. श्रद्धालुओं को दर्शन करने के बाद मंदिर प्रांगण में एकत्रित नहीं होने दिया जा रहा है.
दूसरी तरफ मंदिर ट्रस्ट की तरफ से व्यवस्थाओं को बनाए रखने के लिए कई वालंटियर तैनात किए गए हैं. करौली पुलिस अधीक्षक नारायण टोंगस ने बताया कि अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक और डीएसपी, थानाधिकारियों के नेतृत्व में 100 पुलिस के जवान तैनात किए गए हैं जो मेले व्यवस्था पर निगरानी बनाए हुए हैं. श्रद्धालुओं को किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़े इसके लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं. कैलादेवी स्थित बड़ी धर्मशाला में कंट्रोल रूम बनाया गया है जहां पर कोई भी यात्री अपनी समस्या का समाधान पा सकता है.