भरतपुर : जिले के बझेरा में स्थित अपना घर आश्रम केवल एक आश्रय स्थल नहीं है, बल्कि यह मानवता की सेवा और समर्पण का जीता-जागता उदाहरण है. डॉक्टर बीएम भारद्वाज और उनकी पत्नी डॉ. माधुरी भारद्वाज ने 25 साल पहले इसकी नींव रखी थी. तब से लेकर आज तक यह आश्रम निराश्रित, लावारिस, बीमार और असहाय लोगों के जीवन को संवारने का काम कर रहा है. अब तक आश्रम देश और दुनिया 48 हजार असहाय लोगों का जीवन संवार चुका है. डॉ. दंपती ने अपनी पूरी जिंदगी इन लोगों के लिए समर्पित कर दी. आज अपना घर आश्रम न केवल भारत में बल्कि नेपाल में भी अपनी 62 शाखाओं के जरिए सेवा का संदेश फैला रहा है. यह कहानी सिर्फ एक आश्रम की नहीं, बल्कि सेवा, त्याग और अटूट विश्वास की है.
सेवा का प्रेरणास्रोत : डॉ. बीएम भारद्वाज का बचपन उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में बीता. छठी कक्षा में पढ़ाई के दौरान उन्होंने अपने गांव के एक बुजुर्ग को तिल-तिल कर मरते देखा. उस बुजुर्ग की मदद के लिए कोई आगे नहीं आया. यह दृश्य मासूम बीएम भारद्वाज के दिल को झकझोर गया. उसी समय उन्होंने ठान लिया कि जीवन में कुछ ऐसा करेंगे, जिससे किसी को ऐसी पीड़ा न सहनी पड़े. आगे चलकर उन्होंने होम्योपैथी की पढ़ाई के लिए भरतपुर का रुख किया. यहीं उनकी मुलाकात डॉ. माधुरी से हुई. दोनों ने न केवल जीवनसाथी बनने का निर्णय लिया, बल्कि मानवता की सेवा को अपना उद्देश्य बना लिया.
संघर्ष और समर्पण का सफर : साल 2000 में अपना घर आश्रम की स्थापना के समय संसाधन बेहद सीमित थे. पहली बार सालभर में केवल 1500 रुपए का दान मिला. डॉ. दंपती ने अपनी सारी जमा-पूंजी इस सेवा में लगा दी. कठिनाइयां बहुत आईं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. आज दुनियाभर के लोग इस मिशन को समर्थन दे रहे हैं. अब, सेवा भाव से जुड़े लोग और समाज की भागीदारी से यह मिशन निरंतर आगे बढ़ रहा है. आज 62 आश्रमों के संचालन के लिए सालभर में लगभग 80 करोड़ रुपए खर्च होते हैं. यह धनराशि समाज और सेवाभाव रखने वाले लोगों के सहयोग से जुटाई जाती है.
62 आश्रम और हजारों जीवन की कहानी : वर्तमान में अपना घर आश्रम की 62 शाखाएं हैं, जो भारत के 12 राज्यों में 61 और एक नेपाल में फैली हुई हैं. इन आश्रमों में लगभग 15,000 लोग निवास करते हैं. इनमें अकेले भरतपुर के बझेरा आश्रम में ही 6,400 प्रभुजन (आश्रयहीन लोग) रहते हैं. हर प्रभुजन की अपनी एक दर्द भरी कहानी है, जिसे यह आश्रम जीने की एक नई वजह देता है.
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ठाकुर जी का आसरा : भारद्वाज कहते हैं कि आश्रम में हर जरूरत को ठाकुर (भगवान) के प्रति अटूट विश्वास के जरिए पूरा किया जाता है. आश्रम में जरूरत का सामान चिट्ठी के रूप में लिखकर नोटिस बोर्ड पर लगा दिया जाता है. फिर किसी न किसी माध्यम से वह चिट्ठी पूरी हो जाती है. इस प्रक्रिया में कोई चमत्कार नहीं, बल्कि विश्वास और सेवा का भाव निहित है. आश्रम न तो सरकार से कोई अनुदान लेता है और न ही किसी से चंदे की मांग करता है.
अंतिम संस्कार और तर्पण : आश्रम में जो प्रभुजन (आश्रयहीन लोग) देह त्यागते हैं, उनका पूरे विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है. उनके धर्म के अनुसार तर्पण की व्यवस्था की जाती है, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले. यह परंपरा यह सुनिश्चित करती है कि इन लावारिस लोगों को भी सम्मानजनक विदाई मिले. डॉ. दंपती के कोई संतान नहीं है, लेकिन आश्रम में रहने वाले करीब 200 बच्चों को वे माता-पिता की तरह प्यार और देखभाल करते हैं. डॉ. माधुरी इन बच्चों के साथ मातृत्व सुख का अनुभव करती हैं. ये बच्चे न केवल उनके जीवन को रोशन करते हैं, बल्कि भविष्य में मानवता की इस ज्योत को आगे बढ़ाने की उम्मीद भी हैं.
जीव-जंतुओं की निस्वार्थ सेवा : मानव सेवा में खुद को झोंक देने वाले भारद्वाज दंपती ने जीव-जंतुओं की सेवा को भी अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लिया है. नगर निगम की गौशाला को गोद लेकर, उन्होंने बड़ी संख्या में गायों की देखभाल और सेवा का जिम्मा उठाया है. इसके अलावा, आश्रम की अपनी जीव शाला में घायल और बीमार गायों, बैलों, श्वानों, बंदरों और पक्षियों का उपचार किया जाता है.
शिक्षा के क्षेत्र में अनुकरणीय प्रयास : मानव और जीव सेवा के साथ-साथ अपना घर आश्रम शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दे रहा है. आश्रम में जन्मे, यहां रहने वाले बच्चों और सेवा साथियों के बच्चों के लिए एक अलग से इंग्लिश मीडियम स्कूल की स्थापना की है. यह स्कूल बच्चों को निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करता है. इसमें न केवल समग्र शिक्षा दी जाती है, बल्कि कंप्यूटर शिक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है. डॉ. भारद्वाज का कहना है कि शिक्षा किसी भी बच्चे के भविष्य को संवारने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है. इस स्कूल के माध्यम से वे बच्चों को आधुनिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, ताकि वे आत्मनिर्भर और समाज के लिए उपयोगी बन सकें.
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डॉ. बीएम भारद्वाज कहते हैं कि हमारा उद्देश्य है कि कोई भी असहाय, बीमार या निराश्रित व्यक्ति सेवा और सुविधा के अभाव में दम न तोड़े. हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है. इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2000 में इस मिशन की शुरुआत हुई थी. इसी निस्वार्थ मानव सेवा के चलते डॉ. भारद्वाज दंपती और अपना घर आश्रम को कौन बनेगा करोड़पति के मंच पर स्थान और सम्मान मिला था.
डॉ. दंपती का जीवन इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि समर्पण और सेवा से दुनिया बदली जा सकती है. अपना घर आश्रम उन हजारों लोगों के जीवन का सहारा बना है, जिन्हें समाज ने ठुकरा दिया था. यहां कोई लावारिस नहीं है, कोई पराया नहीं है. आश्रम में निवासरत हर प्रभुजन की अपनी एक कहानी है. कोई बीमारी से त्रस्त था, तो किसी को अपनों ने घर से निकाल दिया. किसी ने परिवार को खो दिया, तो कोई दुर्घटनाग्रस्त होकर सड़कों पर पड़ा मिला. आश्रम हर ऐसे व्यक्ति को गले लगाता है. यहां न तो जाति देखी जाती है, न धर्म, न उम्र और न ही स्थिति.