जोधपुर. राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत ने कई मौकों पर खुद को साबित किया है. बड़े-बड़े संकटों से पार्टी को उबारा है. शायद यही वजह है कि गहलोत आज भी आलाकमान के काफी करीब हैं. सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी और पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा तक उनका सम्मान करती हैं. यह सम्मान और सियासी ऊंचाई गहलोत ने एक दिन में हासिल नहीं की है, इसके लिए सालों की मेहनत और रणनीति लगी है.
अब आपको राजस्थान के मौजूदा सीएम के सियासी सफरनामे के के बारे में बताते हैं. अशोक गहलोत का जन्म 3 मई 1951 को जोधपुर में स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह गहलोत के घर हुआ था. गहलोत ने विज्ञान और कानून में स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद एमए इकोनॉमिक्स से किया. शुरू से ही उन्हें जादू और घूमने-फिरने का शौक रहा और उनकी इसी आदत ने उन्हें सर्वोच्च सियासी मुकाम तक पहुंचने का काम किया.
50 साल का सियासी सफरनामा - गहलोत जोधपुर से 5 बार सांसद चुने गए तो सरदारपुरा से पांच बार विधायक रहते हुए तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. खास बात यह है कि गहलोत ने अपने सियासी सफर का आगाज छात्र सियासत से की थी. उन्होंने जेएनवीयू से वरिष्ठ उपाध्यक्ष का चुनाव लड़ा था, लेकिन वे सफल नहीं हो सके. उसके बाद वे एनएसयूआई से जुड़े और कांग्रेस में महत्वपूर्ण पदों रहते हुए प्रदेश के सर्वोच्च पद पर पहुंचे. आज गहलोत का राजनीतिक सफर करीब पचास साल का हो चुका है. इस सफर में उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनके ज्यादातर राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी उनके सामने नतमस्तक ही रहे.
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5 बार बने सांसद - अशोक गहलोत को आपातकाल के बाद सबसे पहले 1977 में विधायक का चुनाव लड़ने का मौका मिला. हालांकि, तब वो चुनाव हार गए थे. उसके बाद कांग्रेस ने 1980 में उन्हें 7वीं लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी बनाया. ऐसे में वो पहली बार चुनाव जीत कर दिल्ली पहुंचे. इसके बाद 1984 में 8वीं, 1991 में 10वीं, 1996 में 11वीं और 1998 में 12वीं लोकसभा का उन्होंने जोधपुर से प्रतिनिधित्व किया था.
5 बार बने विधायक - 1998 में राज्य विधानसभा चुनाव के समय गहलोत प्रदेशाध्यक्ष थे. कांग्रेस को बहुमत मिला तो वे सीएम बने. लोकसभा से इस्तीफा देकर गहलोत फरवरी 1999 में सरदारपुरा से 11वीं विधानसभा के सदस्य बने. इसके बाद से 2003, 2008, 2013 व 2018 में लगातार सरदारपुरा से विधायक निर्वाचित हो रहे हैं.
बतौर केंद्रीय मंत्री - 1980 में सांसद बनने के बाद अशोक गहलोत को 1982 से 1984 तक इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में पर्यटन व नागरिक उड्डयन के साथ ही खेल राज्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद आठवीं लोकसभा में राजीव गांधी मंत्रिमंडल में 1984 से 1985 तक केंद्रीय पर्यटन व नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री के रूप में कार्य किए. उसके बाद वे कपड़ा मंत्री बने. वहीं, 1991 से 1993 तक केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार संभाला. इसके अलावा वो संसद की कई समितियों में सदस्य भी रहे.
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प्रदेश की सियासत में पदार्पण - अशोक गहलोत 1974 में एनएसयूआई के प्रदेशाध्यक्ष बने थे. उसके बाद 1979 में जोधपुर शहर कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए. वहीं, 1982 में उन्हें प्रदेश कांग्रेस का सचिव और फिर 3 बार राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में काम किया. पहली बार 1985 से 1989 तक गहलोत 34 वर्ष की उम्र में अध्यक्ष बने थे. दिसंबर 1994 में वे दूसरी बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने और उनका यह कार्यकाल जून 1997 तक चला. तीसरी बार वे जून 1997 से 14 अप्रैल, 1999 तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के फिर से अध्यक्ष बनाए गए. इस दौरान वे प्रदेश के मुख्यमंत्री भी चुने गए. मुख्यमंत्री बनने से पहले 1989 में कुछ समय तक वे सांसद होते हुए भी प्रदेश में जलदाय विभाग के मंत्री रहे थे.
केंद्रीय संगठन में भूमिका - अशोक गहलोत की गांधी परिवार से नजदीकियां रही हैं. 1980 में पहली बार दिल्ली जाने के बाद से अब तक वे संगठन या सत्ता में हमेशा महत्वपूर्ण पद पर रहे हैं. 2004 में एआईसीसी के सदस्य बने और इस दौरान वे हिमाचल और छत्तीसगढ़ के प्रभारी भी बनाए गए थे. वहीं, जुलाई 2004 से फरवरी 2009 तक एआईसीसी के महासचिव रहे. उसके बाद 2018 में फिर महासचिव बने और इस दौरान राजस्थान की सत्ता में आने पर फिर से उन्हें राज्य का सीएम बनाया गया.
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पारिवारिक विवरण - अशोक गहलोत का विवाह 27 नवंबर, 1977 को सुनीता गहलोत से हुआ. गहलोत के एक पुत्र वैभव गहलोत और एक पुत्री सोनिया गहलोत हैं. वैभव गहलोत राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं. साथ ही 2019 में जोधपुर से कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं.