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IIT Jodhpur Research : राजस्थान का रेगिस्तानी क्षेत्र अब ​सिर्फ थार नहीं रहा, चार जोन विकसित हो गए - क्राउडसोर्सिंग का सहारा

Desert Area in Rajasthan, थार अब सिर्फ थार क्षेत्र नहीं रहा. यहां चार पार​स्थितिक जोन बन चुके हैं. पूर्वी थार, पश्चिमी थार, परिवर्तनीय क्षेत्र और खेती विकसित क्षेत्र तैयार हो चुके हैं. आईआईटी जोधपुर की रिसर्च में क्राउडसोर्सिंग थार के अध्ययन का मुख्य जरिया के रूप में सामने आया है.

IIT Jodhpur Research
थार अब सिर्फ थार क्षेत्र नहीं रहा
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Published : Jul 25, 2023, 8:11 PM IST

जोधपुर. राजस्थान का रेगिस्तानी क्षेत्र अब ​सिर्फ थार नहीं रहा है. इसमें परिवर्तन आ रहा है, जिसके चलते यहां का इकोरीजन सिर्फ थार नहीं रह गया है. सिर्फ थार मानकर होने वाली रिसर्च व पॉलिसी में बदलाव करने की जरूरत है. यहां पर अब चार क्षेत्र विकसित हो गए हैं. जोधपुर आईआईटी में इसको लेकर विस्तृत अध्ययन हुआ है, जिस पर शोध पत्र प्रकाशित किया गया है.

आईआईटी जोधपुर के बायो साइंस और बायो इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर और हेड डॉ. मिताली मुखर्जी का कहना है कि थार के अध्ययन में क्राउडसोर्स व ईबर्ड डेकी का महत्वपूर्ण भूमिका है. इनके आधार पर हम कह सकते हैं कि पहले थार रेगिस्तानी क्षेत्र को एक ही पारिस्थितिकीय क्षेत्र माना जाता था, लेकिन हाल ही के अध्ययन ने इसके चार अलग पारिस्थितिकीय क्षेत्रों की पहचान की गई है. जिसमें पूर्वी थार, पश्चिमी थार, परागमन या परिवर्तनिय क्षेत्र और खेती विकसित क्षेत्र शामिल हैं.

IIT Jodhpur Research
थार अब सिर्फ थार क्षेत्र नहीं रहा

इस अध्ययन में क्राउडसोर्सिंग का सहारा लिया गया, जिसने नया दृष्टिकोण दिया है. अध्ययन में के दौरान इन चारों क्षेत्रों में राजस्थान के सभी जिलों को शामिल किया गया है. क्योंकि कई थार की प्रजातियां वहां तक पहुंच गई हैं. ईबर्ड से एकत्र किए गए आंकड़ों से 33 जिलों में राजस्थान के थार रेगिस्तान से पक्षियों की 492 प्रजातियों की उपस्थिति देखी गई. इनमें भरतपुर, सवाई माधोपुर, जोधपुर और जैसलमेर में अधिक विविधता दर्ज की गई, जबकि श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में सबसे कम विविधता मिली.

पढ़ें : फल कितने पके हैं ? यह जानने के लिए IIT Jodhpur के शोधकर्ताओं ने विकसित की तकनीक

प्रजातियां अपने आपको नहीं बदल रही हैं : जोधपुर सिटी नॉलेज एंड इनोवेशन क्लस्टर के साथ आईआईटी के विभागों के अध्ययन में यह समझने का प्रयास किया गया है कि थार की कोई भी प्रजाति का अगर स्थान बदलता है तो उसका जीवन खतरे में हैं. क्योंकि यहां की जैविक संपदा इस बदलाव के लिए खुद को नहीं बदल रही है, जो उनके असितत्व के लिए खतरा बन रहा है. यही कारण है कि जलावायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण कई मूल प्रजातियां समाप्त हो गई हैं.

क्राउडसोर्सिंग का लिया सहारा : विस्तृत अध्ययन करने और उनके इकोजोन की जानकारी समझने के लिए आईआईटी के वैज्ञानिको ने क्राउडसोर्सिंग का सहारा लिया. इससे लोगों की प्रतिक्रियाओं से बहुत जानकारियां मिली हैं. जैसे पक्षियों की प्रजातियां कुछ पौधों पर भोजन करती हैं और वनस्पति में कोई भी परिवर्तन उनकी विविधता में परिलक्षित होगा. इससे यह देखकर भी पता चल सकता है कि पक्षी किस प्रकार एकत्र होते हैं और उनके आवास किस प्रकार के होंगे. प्रो. मुखर्जी बताती हैं कि हमने ईबर्ड से क्राउडसोर्स की गई जानकारी का उपयोग करके इसका परीक्षण किया, जिससे थार को अलग-अलग इकोरीजन में क्लस्टर किया गया.

जोधपुर. राजस्थान का रेगिस्तानी क्षेत्र अब ​सिर्फ थार नहीं रहा है. इसमें परिवर्तन आ रहा है, जिसके चलते यहां का इकोरीजन सिर्फ थार नहीं रह गया है. सिर्फ थार मानकर होने वाली रिसर्च व पॉलिसी में बदलाव करने की जरूरत है. यहां पर अब चार क्षेत्र विकसित हो गए हैं. जोधपुर आईआईटी में इसको लेकर विस्तृत अध्ययन हुआ है, जिस पर शोध पत्र प्रकाशित किया गया है.

आईआईटी जोधपुर के बायो साइंस और बायो इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर और हेड डॉ. मिताली मुखर्जी का कहना है कि थार के अध्ययन में क्राउडसोर्स व ईबर्ड डेकी का महत्वपूर्ण भूमिका है. इनके आधार पर हम कह सकते हैं कि पहले थार रेगिस्तानी क्षेत्र को एक ही पारिस्थितिकीय क्षेत्र माना जाता था, लेकिन हाल ही के अध्ययन ने इसके चार अलग पारिस्थितिकीय क्षेत्रों की पहचान की गई है. जिसमें पूर्वी थार, पश्चिमी थार, परागमन या परिवर्तनिय क्षेत्र और खेती विकसित क्षेत्र शामिल हैं.

IIT Jodhpur Research
थार अब सिर्फ थार क्षेत्र नहीं रहा

इस अध्ययन में क्राउडसोर्सिंग का सहारा लिया गया, जिसने नया दृष्टिकोण दिया है. अध्ययन में के दौरान इन चारों क्षेत्रों में राजस्थान के सभी जिलों को शामिल किया गया है. क्योंकि कई थार की प्रजातियां वहां तक पहुंच गई हैं. ईबर्ड से एकत्र किए गए आंकड़ों से 33 जिलों में राजस्थान के थार रेगिस्तान से पक्षियों की 492 प्रजातियों की उपस्थिति देखी गई. इनमें भरतपुर, सवाई माधोपुर, जोधपुर और जैसलमेर में अधिक विविधता दर्ज की गई, जबकि श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में सबसे कम विविधता मिली.

पढ़ें : फल कितने पके हैं ? यह जानने के लिए IIT Jodhpur के शोधकर्ताओं ने विकसित की तकनीक

प्रजातियां अपने आपको नहीं बदल रही हैं : जोधपुर सिटी नॉलेज एंड इनोवेशन क्लस्टर के साथ आईआईटी के विभागों के अध्ययन में यह समझने का प्रयास किया गया है कि थार की कोई भी प्रजाति का अगर स्थान बदलता है तो उसका जीवन खतरे में हैं. क्योंकि यहां की जैविक संपदा इस बदलाव के लिए खुद को नहीं बदल रही है, जो उनके असितत्व के लिए खतरा बन रहा है. यही कारण है कि जलावायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण कई मूल प्रजातियां समाप्त हो गई हैं.

क्राउडसोर्सिंग का लिया सहारा : विस्तृत अध्ययन करने और उनके इकोजोन की जानकारी समझने के लिए आईआईटी के वैज्ञानिको ने क्राउडसोर्सिंग का सहारा लिया. इससे लोगों की प्रतिक्रियाओं से बहुत जानकारियां मिली हैं. जैसे पक्षियों की प्रजातियां कुछ पौधों पर भोजन करती हैं और वनस्पति में कोई भी परिवर्तन उनकी विविधता में परिलक्षित होगा. इससे यह देखकर भी पता चल सकता है कि पक्षी किस प्रकार एकत्र होते हैं और उनके आवास किस प्रकार के होंगे. प्रो. मुखर्जी बताती हैं कि हमने ईबर्ड से क्राउडसोर्स की गई जानकारी का उपयोग करके इसका परीक्षण किया, जिससे थार को अलग-अलग इकोरीजन में क्लस्टर किया गया.

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