जोधपुर. राज्य में अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत रूप से जंगल में निवास करने वाले लोगों के लिए वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 तो बनाया गया और कईयों ने आवेदन भी किया, लेकिन अभी तक उनको वन अधिकार नहीं मिला है. अकेले प्रतापगढ़ की बात करें, तो 1000 के करीब आवेदन सम्बंधित अधिकारियों के पास लम्बित पड़े हैं, लेकिन आज तक कानून सम्मत अधिकार नहीं मिले हैं. ऐसे में अब अपने अधिकारों के लिए जनहित याचिका के जरिए राजस्थान हाईकोर्ट में अधिकार मांग रहे हैं.
जस्टिस विजय विश्नोई व जस्टिस योगेन्द्र कुमार पुरोहित की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई के बाद नोटिस जारी करते हुए 11 दिसम्बर तक जवाब तलब किया है. याचिकाकर्ता शांतिलाल डामोर की ओर से अधिवक्ता सुधींद्र कुमावत व ओमप्रकाश कुमावत ने याचिका पेश की है. याचिका में बताया गया कि परम्परागत रूप से वन क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों के साथ ही अनुसूचित जनजाति के कई लोग आज भी जंगलों में निवास करते हैं, जो कि वन विभाग का क्षेत्र है.
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ऐसे में इन लोगों को वहां रहने का अधिकार मिल सके, इसको लेकर वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 के तहत अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों को मान्यता दी गई. जो अनुसूचित जनजाति वन क्षेत्र में निवासरत हैं, कानून के अनुसार उनको मान्यता अधिकार दिए जाए. अनुसूचित जनजातियों से लगभग 1000 आवेदन सम्बंधित प्राधिकारियों के पास विचाराधीन हैं. वन क्षेत्र में उन्हें मान्यता अधिकार प्रदान करने के लिए आज तक वे आवेदन तय नहीं किए गए हैं. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार, वन विभाग एवं अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है.