जोधपुर. माचिया पार्क लाया गया दुर्लभ प्रजाति सिनेरियस के गिद्ध का नाम (Naming of Cinereous Vulture) ओखी है. यह नाम उसे 5 साल पहले दिया गया था, क्योंकि उस समय दक्षिण भारत के तटिय क्षेत्रों में आए तूफान के दौरान ही वह भटकर वहां पहुंचा था, जहां कभी गिद्ध देखे नहीं गए थे. ऐसे में तमिलनाडु सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग ने उस पर विशेष ध्यान दिया. गिद्ध का नामकरण ओखी किया गया.
विभाग की अतिरिक्त सचिव आईएएस सुप्रिया साहू ने ओखी को पुन: उसके घर तक भेजे जाने की कवायद शुरू की थी. इसके तहत उसे जोधपुर भेजा गया है. साहू ने सोशल मीडिया पर इसकी पूरी कहानी शेयर करते हुए कामना की है कि 2017 में घायल अवस्था में मिला ओखी (Cinereous Vulture Injured During Cyclone Okhi) वापस उड़ नहीं पाया था. अब इसकी संभावना बनी है. उसे पुन: जंगल की ओर भेजे जाने की शुरुआत की गई है. साहू ने ट्विटर पर ओखी के फोटो और चैन्नई से रवाना होने के वीडियो भी शेयर किए हैं.
इधर माचिया पार्क के डॉक्टर उस पर नजर रखे हुए हैं. उनका कहना है कि लंबी दूरी के सफर के बाद 24 घंटे बर्ड के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. इस दौरान उसका टेंशन रिलीज होता है. उसे खाना दिया गया है, जो उसने खाया है. प्रारंभिक रूप से वह पूरी तरह से हेल्दी है. उसकी गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है. एक-दो दिन बाद उसका एनक्लोजर बदल दिया जाएगा. इधर भारतीय वन्य जीव संस्थान से एक रिसर्च स्कॉलर हरेंद्र भी यहां पहुंचे हैं जो माइग्रेट बर्ड पर काम कर रहे हैं. वह भी माचिया प्रबंधन के साथ सिनेरियस गिद्ध पर नजर रखेंगे, साथ ही उसके वापस जाने की प्रक्रिया में साथ रहेंगे. वन विभाग के आला अधिकारी भी इस पर पूरी नजर रख रहे हैं.
एकांतरे डेढ़ किलो मीट है खुराक : माचिया पार्क के चिकित्सक डॉ. ज्ञान प्रकाश ने बताया कि वल्चर बर्ड ठीक है. आराम से केज से बाहर आने के बाद वह लगातार (Vulture Care in Jodhpur) सामान्य हो रहा है. उसे उदयागिरी में एकांतरे (Alternate Day) डेढ़ किलो मीट दिया जाता था. वह क्रम यहां भी जारी है. वह अपना भोजन कर रहा है. उस पर नजर रखी जा रही है, लेकिन उसके आस-पास उस क्षेत्र में किसी को जाने की अनुमति नहीं दी गई है. वह पूरी तरह हेल्थी है. दो-तीन दिन बाद उसके लिए दूसरे प्रोसेस शुरू किए जाएंगे, तब उसे सामान्य स्थितियों में लाया जाएगा. दूसरे बर्ड के एन्क्लोजर के पास रखा जाएगा.
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अवसर का पूरा उपयोग करेंगे : उत्तराखंड स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट में माइग्रेटेड बर्ड पर स्टडी कर रहे हरेंद्र बारिया का कहना है कि यह बर्ड किसी स्ट्रोम के चलते दक्षिण में पहुंचा होगा. काफी समय हो गया था इसे वहां. सभी तरह के अध्ययन के बाद यह तय हुआ कि जोधपुर के आस-पास वल्चर्स आते हैं. ऐसे में इसे यहां से वापस भेजने की संभावना तलाशनी है. इस वल्चर से हमारे को इन्हें जानने का अवसर मिला है.
इनका हैबिटेट क्या है, क्या यह यहां रह सकता है या नहीं ? सिनेरियस वल्चर भी लुप्त होती (Cinereous Vulture Rescue) प्रजाति में शामिल है. इसके एशिया में करीब 8 हजार ही बर्ड बचे हैं. इनकी मौजूदगी तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और मंगोलिया में होती है. सिनेरियस वल्चर भारत में नवंबर के दौरान आना शुरू होते हैं और मार्च-अप्रैल के दौरान वापस जाते हैं.