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पर्यावरण प्रेमी बुजुर्ग बना रहे हैं फूलों से दीपक, लौ खत्म होने के बाद दीया भी जलकर देता है खुशबू

पर्यावरण प्रेमी 70 वर्षीय बुजूर्ग ने मंदिरों में चढ़ने वाली पुष्प और मालाओं से विशेष प्रकार के दीपक बनाए हैं जिसको जलाने के बाद दीपक जलता है और साथ ही खुशबू भी बिखेरता है. अंत में दीपक स्वत: भी जल जाता है. इससे दीपक के डिसपोजल की भी चिंता नहीं होगी.

बुजुर्ग बना रहे हैं फूलों से दीपक
बुजुर्ग बना रहे हैं फूलों से दीपक
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Published : Jul 30, 2023, 7:46 AM IST

बुजुर्ग बना रहे फूलों से दीपक

जोधपुर. शहर के एक बुजुर्ग जो पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी सजग हैं. उन्होंने मंदिरों में चढ़ने वाली मालाओं और पुष्प से दीए बनाने शुरू किए हैं. इससे पहले वह इन फूलों से धूपबत्ती भी बना रहे हैं. लेकिन यह दीपक कुछ खास है. जिनकी लौ बुझने के बाद दीपक खुद जलने लगते हैं और खुशबू बिखेरते हैं. 70 वर्षीय डॉ. संतोष छाबड़ जो खुद योग और प्राकृतिक चिकित्सा के विशेषज्ञ हैं. पर्यावरण संरक्षण के कामों के लिए केंद्र की हरित कौशल विकास संस्था से प्रशिक्षण लिया है. अब वे खुद मुख्य प्रशिक्षक हैं.

बुजुर्ग बना रहे फूलों से दीपक
बुजुर्ग बना रहे हैं फूलों से दीपक

डॉ. छाबड़ बताते है मेरा ध्येय पर्यावरण संरक्षण है. इसके लिए काम कर रहा हूं. इस काम से जो लाभ आएगा उससे मैं यूनिसेफ, पीएम राहत कोष और सीएम राहत कोष में अपना अंशदान दूंगा. डॉ. छाबड़ अपने इस हुनर का प्रशिक्षण भी देते हैं आने वाले दिनों में दिल्ली स्थित हरिजन सेवक संघ में प्रशिक्षण देने के लिए जाएंगे. इस संघ की स्थापना 1932 में महात्मा गांधी ने की थी.

जोधपुर में बुजुर्ग बना रहे फूलों से अगरबत्ती
जोधपुर में बुजुर्ग बना रहे हैं फूलों से अगरबत्ती

धूप बत्ती के बाद बनाया दीपक : डॉ छाबड़ बताते हैं कि पहले उन्होंने पुष्प ग्वार गम अन्य प्राकृतिक वस्तुओं को मिलाकर धूपबत्ती बनाई थी. अब इससे आगे दीपक भी बनाया है. इस दीपक के निर्माण में फूलों के साथ साथ गोबर, कर्पूर, हवन सामग्री में नागरमोथा, गुगल सहित अन्य सामग्री काम में ली गई है. दीपक को आकार देने के लिए एक छोटी हैंड मशीन का उपयोग करते है. इसके अलावा उन्होंने मार्बल की वेस्ट स्लरी से भी छोटे दीपक बनाए है. जिससे स्लरी का उपयोग हो सके.

लौ खत्म होने पर जलकर देता है खुशबू : डॉ. छाबड़ ने जो दीपक बनाया है. इसमें घी या तेल का प्रयोग का कर सकते है. जब लौ बुझती तो दीपक खुद जलने लगता है. इसके जलने से जो धुआं निकलता है उससे वातावरण में खुशबू फैलती है. इससे अहसास होता है जैसे हवन में आहुति दी गई हो. फिलहाल इसका निर्माण वे सीमित मात्रा में कर रहे हैं. लेकिन अपने इस कार्य को लोगों को सीखा रहे है. उनका मानना है कि यह घरेलू काम की तरह किया जा सकता है. महिलाओं को इससे रोजगार मिल सकता है.

पढ़ें शादी के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश, मेहमानों को तांबे के मग में पिलाया पानी

बुजुर्ग बना रहे फूलों से दीपक

जोधपुर. शहर के एक बुजुर्ग जो पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी सजग हैं. उन्होंने मंदिरों में चढ़ने वाली मालाओं और पुष्प से दीए बनाने शुरू किए हैं. इससे पहले वह इन फूलों से धूपबत्ती भी बना रहे हैं. लेकिन यह दीपक कुछ खास है. जिनकी लौ बुझने के बाद दीपक खुद जलने लगते हैं और खुशबू बिखेरते हैं. 70 वर्षीय डॉ. संतोष छाबड़ जो खुद योग और प्राकृतिक चिकित्सा के विशेषज्ञ हैं. पर्यावरण संरक्षण के कामों के लिए केंद्र की हरित कौशल विकास संस्था से प्रशिक्षण लिया है. अब वे खुद मुख्य प्रशिक्षक हैं.

बुजुर्ग बना रहे फूलों से दीपक
बुजुर्ग बना रहे हैं फूलों से दीपक

डॉ. छाबड़ बताते है मेरा ध्येय पर्यावरण संरक्षण है. इसके लिए काम कर रहा हूं. इस काम से जो लाभ आएगा उससे मैं यूनिसेफ, पीएम राहत कोष और सीएम राहत कोष में अपना अंशदान दूंगा. डॉ. छाबड़ अपने इस हुनर का प्रशिक्षण भी देते हैं आने वाले दिनों में दिल्ली स्थित हरिजन सेवक संघ में प्रशिक्षण देने के लिए जाएंगे. इस संघ की स्थापना 1932 में महात्मा गांधी ने की थी.

जोधपुर में बुजुर्ग बना रहे फूलों से अगरबत्ती
जोधपुर में बुजुर्ग बना रहे हैं फूलों से अगरबत्ती

धूप बत्ती के बाद बनाया दीपक : डॉ छाबड़ बताते हैं कि पहले उन्होंने पुष्प ग्वार गम अन्य प्राकृतिक वस्तुओं को मिलाकर धूपबत्ती बनाई थी. अब इससे आगे दीपक भी बनाया है. इस दीपक के निर्माण में फूलों के साथ साथ गोबर, कर्पूर, हवन सामग्री में नागरमोथा, गुगल सहित अन्य सामग्री काम में ली गई है. दीपक को आकार देने के लिए एक छोटी हैंड मशीन का उपयोग करते है. इसके अलावा उन्होंने मार्बल की वेस्ट स्लरी से भी छोटे दीपक बनाए है. जिससे स्लरी का उपयोग हो सके.

लौ खत्म होने पर जलकर देता है खुशबू : डॉ. छाबड़ ने जो दीपक बनाया है. इसमें घी या तेल का प्रयोग का कर सकते है. जब लौ बुझती तो दीपक खुद जलने लगता है. इसके जलने से जो धुआं निकलता है उससे वातावरण में खुशबू फैलती है. इससे अहसास होता है जैसे हवन में आहुति दी गई हो. फिलहाल इसका निर्माण वे सीमित मात्रा में कर रहे हैं. लेकिन अपने इस कार्य को लोगों को सीखा रहे है. उनका मानना है कि यह घरेलू काम की तरह किया जा सकता है. महिलाओं को इससे रोजगार मिल सकता है.

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