झुंझुनूं. राजस्थान के शेखावटी इलाके में सीकर, चूरू, झुंझुनूं और नागौर का कुछ हिस्सा आता है और किसी समय पति की मौत के बाद पत्नी की सती होने की कुप्रथा हुआ करती थी. सती प्रथा के खिलाफ कानून बने लेकिन इसके बाद भी भले ही सती होने पर रोक लग गई हो. लेकिन महिमामंडन सती का ऐसा ही होता रहा. ऐसे ही झुंझुनू में रानी सती का मंदिर था. जिसमें शेखावाटी के सेठों की खासी आस्था हुआ करती थी. यहां के सेठों ने देश के लगभग हिस्सों में व्यापार में जमकर नाम कमाया है और इसलिए पैसे की कोई कमी नहीं होती थी.
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भादवा अमावस्या को भरता था बड़ा मेला
भादवा की अमावस्या का यहां बड़ा मेला भरता था और बड़ा मजमा लगता था. इस बीच सन 1987 में शेखावाटी के सीकर जिले के दिवराला में रूप कंवर सती कांड हुआ. जिसमें रुपकंवर नाम की महिला को जबरदस्ती सती करने का प्रयास किया गया. इसके बाद भयंकर विवाद और हंगामा हुआ और सती के नाम के उपयोग तक रोक लग गई. सती को चूड़ी और चुनरी ओढ़ाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग गया. मेला भरने पर भी रोक लगा दी गई और प्रशासन को आदेश दिए गए किसी भी तरह के सती के महिमामंडन करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए.
न्यायालय से मिली छूट
इस बीच झुंझुनूं का रानी सती ट्रस्ट भी उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा और वहां से रानी सती का नाम उपयोग करने की छूट मिल गई और देश में केवल एक यही मंदिर है जहां सती शब्द का उपयोग होता है. लेकिन यहां भी मेला भरने, चूड़ी पहनाने व चुनरी ओढ़ाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहा. मेला भरने पर भी रोक लगी रही लेकिन वार्षिक पूजा की छूट मिल गई.
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केवल नाम का उपयोग नहीं कर सकते
तब से अब भी यहां भादवा की अमावस्या को बड़ी संख्या कोलकाता,मुंबई,चेन्नई,नागपुर सहित देश के सभी बड़े शहरों से यहां के मूल निवासी सेठ परिवार के साथ आते हैं. भले ही मेला शब्द उपयोग में नहीं लाया जाता लेकिन हजारों लोग आते हैं दुकानें सजती हैं सब होता है. लेकिन प्रशासन की तरफ से बैनर टांगें जाते हैं कि सती के महिमामंडन पर पूरी तरह से रोक हैं चूड़ी और चुनरी नहीं उठाई जा सकती और वहां पर कैमरे भी लगाए जाते हैं.