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रानी सती मंदिर में मेले पर बैन...लेकिन माहौल कुछ मेले जैसा, देखिए रिपोर्ट

झुंझुनूं की रानी सती की आगाध श्रद्धा है. लेकिन सती के महिमामंडन पर रोक लगाने के बाद प्रशासन ने चुनरी ओढ़ने और चूड़ी पहनाने पर प्रतिबंध की पालना का प्रयास करता है. लेकिन यहां साल में एक वार्षिक उत्सव होता है. जिसमें प्रदेश और देशभर से श्रद्धालु यहां सती माता के दर्शन के लिए आते है. हालांकि मेले पर प्रतिबंध है. लेकिन यहां दुकानें सजती हैं और रौनक मेले जैसी ही होती है.

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Published : Aug 30, 2019, 10:28 PM IST

झुंझुनूं. राजस्थान के शेखावटी इलाके में सीकर, चूरू, झुंझुनूं और नागौर का कुछ हिस्सा आता है और किसी समय पति की मौत के बाद पत्नी की सती होने की कुप्रथा हुआ करती थी. सती प्रथा के खिलाफ कानून बने लेकिन इसके बाद भी भले ही सती होने पर रोक लग गई हो. लेकिन महिमामंडन सती का ऐसा ही होता रहा. ऐसे ही झुंझुनू में रानी सती का मंदिर था. जिसमें शेखावाटी के सेठों की खासी आस्था हुआ करती थी. यहां के सेठों ने देश के लगभग हिस्सों में व्यापार में जमकर नाम कमाया है और इसलिए पैसे की कोई कमी नहीं होती थी.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: आस्था या अंधिवश्वास ! इस तालाब में डुबकी लगाने से भागते हैं भूत

भादवा अमावस्या को भरता था बड़ा मेला
भादवा की अमावस्या का यहां बड़ा मेला भरता था और बड़ा मजमा लगता था. इस बीच सन 1987 में शेखावाटी के सीकर जिले के दिवराला में रूप कंवर सती कांड हुआ. जिसमें रुपकंवर नाम की महिला को जबरदस्ती सती करने का प्रयास किया गया. इसके बाद भयंकर विवाद और हंगामा हुआ और सती के नाम के उपयोग तक रोक लग गई. सती को चूड़ी और चुनरी ओढ़ाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग गया. मेला भरने पर भी रोक लगा दी गई और प्रशासन को आदेश दिए गए किसी भी तरह के सती के महिमामंडन करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए.

रानी सती मंदिर में मेले पर बैन..देखिए रिपोर्ट

न्यायालय से मिली छूट
इस बीच झुंझुनूं का रानी सती ट्रस्ट भी उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा और वहां से रानी सती का नाम उपयोग करने की छूट मिल गई और देश में केवल एक यही मंदिर है जहां सती शब्द का उपयोग होता है. लेकिन यहां भी मेला भरने, चूड़ी पहनाने व चुनरी ओढ़ाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहा. मेला भरने पर भी रोक लगी रही लेकिन वार्षिक पूजा की छूट मिल गई.

पढ़ें- डूंगरपुर और राजसमंद में अंतिम संस्कार के लिए विकट हालत... गहरे पानी से होकर गुजरती है शव यात्रा

केवल नाम का उपयोग नहीं कर सकते
तब से अब भी यहां भादवा की अमावस्या को बड़ी संख्या कोलकाता,मुंबई,चेन्नई,नागपुर सहित देश के सभी बड़े शहरों से यहां के मूल निवासी सेठ परिवार के साथ आते हैं. भले ही मेला शब्द उपयोग में नहीं लाया जाता लेकिन हजारों लोग आते हैं दुकानें सजती हैं सब होता है. लेकिन प्रशासन की तरफ से बैनर टांगें जाते हैं कि सती के महिमामंडन पर पूरी तरह से रोक हैं चूड़ी और चुनरी नहीं उठाई जा सकती और वहां पर कैमरे भी लगाए जाते हैं.

झुंझुनूं. राजस्थान के शेखावटी इलाके में सीकर, चूरू, झुंझुनूं और नागौर का कुछ हिस्सा आता है और किसी समय पति की मौत के बाद पत्नी की सती होने की कुप्रथा हुआ करती थी. सती प्रथा के खिलाफ कानून बने लेकिन इसके बाद भी भले ही सती होने पर रोक लग गई हो. लेकिन महिमामंडन सती का ऐसा ही होता रहा. ऐसे ही झुंझुनू में रानी सती का मंदिर था. जिसमें शेखावाटी के सेठों की खासी आस्था हुआ करती थी. यहां के सेठों ने देश के लगभग हिस्सों में व्यापार में जमकर नाम कमाया है और इसलिए पैसे की कोई कमी नहीं होती थी.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: आस्था या अंधिवश्वास ! इस तालाब में डुबकी लगाने से भागते हैं भूत

भादवा अमावस्या को भरता था बड़ा मेला
भादवा की अमावस्या का यहां बड़ा मेला भरता था और बड़ा मजमा लगता था. इस बीच सन 1987 में शेखावाटी के सीकर जिले के दिवराला में रूप कंवर सती कांड हुआ. जिसमें रुपकंवर नाम की महिला को जबरदस्ती सती करने का प्रयास किया गया. इसके बाद भयंकर विवाद और हंगामा हुआ और सती के नाम के उपयोग तक रोक लग गई. सती को चूड़ी और चुनरी ओढ़ाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग गया. मेला भरने पर भी रोक लगा दी गई और प्रशासन को आदेश दिए गए किसी भी तरह के सती के महिमामंडन करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए.

रानी सती मंदिर में मेले पर बैन..देखिए रिपोर्ट

न्यायालय से मिली छूट
इस बीच झुंझुनूं का रानी सती ट्रस्ट भी उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा और वहां से रानी सती का नाम उपयोग करने की छूट मिल गई और देश में केवल एक यही मंदिर है जहां सती शब्द का उपयोग होता है. लेकिन यहां भी मेला भरने, चूड़ी पहनाने व चुनरी ओढ़ाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहा. मेला भरने पर भी रोक लगी रही लेकिन वार्षिक पूजा की छूट मिल गई.

पढ़ें- डूंगरपुर और राजसमंद में अंतिम संस्कार के लिए विकट हालत... गहरे पानी से होकर गुजरती है शव यात्रा

केवल नाम का उपयोग नहीं कर सकते
तब से अब भी यहां भादवा की अमावस्या को बड़ी संख्या कोलकाता,मुंबई,चेन्नई,नागपुर सहित देश के सभी बड़े शहरों से यहां के मूल निवासी सेठ परिवार के साथ आते हैं. भले ही मेला शब्द उपयोग में नहीं लाया जाता लेकिन हजारों लोग आते हैं दुकानें सजती हैं सब होता है. लेकिन प्रशासन की तरफ से बैनर टांगें जाते हैं कि सती के महिमामंडन पर पूरी तरह से रोक हैं चूड़ी और चुनरी नहीं उठाई जा सकती और वहां पर कैमरे भी लगाए जाते हैं.

Intro:राजपूताने में स्त्री के साथ कुप्रथाओं का लंबा इतिहास रहा है। कुछ के खिलाफ अंग्रेजों के समय कानून बने कुछ पर आजादी के बाद अलख जगाई गई। राजस्थान के शेखावाटी में भी जन्म के समय ही कन्या को मारने विधवा को सती करने सती नहीं होने पर कड़े नियमों का पालन करने जैसी महिलाओं के सम्मान के खिलाफ कुप्रथाएं होती थी। झुंझुनू की रानी सती की आगाध श्रद्धा हुआ करती थी। लेकिन सती के महिमामंडन पर रोक लगाने के बाद कम से कम प्रशासन चुनरी ओढान व चूड़ी पहनाने पर प्रतिबंध की पालना का प्रयास करता है।


Body:झुंझुनू। राजस्थान के शेखावटी इलाके में सीकर,चूरू,झुंझुनू और नागौर का कुछ हिस्सा आता है और किसी समय पति की मौत के बाद पत्नी की सति होने की कुप्रथा हुआ करती थी। सती प्रथा के खिलाफ कानून बने लेकिन इसके बाद भी भले ही सती होने पर रोक लग गई हो लेकिन महिमामंडन सती का ऐसा ही होता रहा। एसे ही झुंझुनू में रानी सती का मंदिर था। जिसमें शेखावाटी के सेठों की खासी आस्था हुआ करती थी। यहां के सेठों ने देश के लगभग हिस्सों में व्यापार में जमकर नाम कमाया है और इसलिए पैसे की कोई कमी नहीं होती थी।

भादवा अमावस्या को भरता था बड़ा मेला

भादवा की अमावस्या का यहां बड़ा मेला भरता था और बड़ा मजमा लगता था। इस बीच सन 1987 में शेखावाटी के सीकर जिले के दिवराला में रूप कंवर सती कांड हुआ जिसमें रूप कंवर नाम की औरत को जबरदस्ती सती करने का प्रयास किया गया। इसके बाद भयंकर विवाद और हंगामा हुआ और सती के नाम के उपयोग तक रोक लग गई, सती को चूड़ी और चुनरी ओढाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग गया। मेला भरने पर भी रोक लगा दी गई और प्रशासन को आदेश दिए गए किसी भी तरह के सती के महिमामंडन करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए।

न्यायालय से मिली छूट
इस बीच झुंझुनू का रानी सती ट्रस्ट भी उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा और वहां से रानी सती का नाम उपयोग करने की छूट मिल गई और देश में केवल एक यही मंदिर है जहां सती शब्द का उपयोग होता है। लेकिन यहां भी मेला भरने,चूड़ी पहनाने व चुनरी ओढाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहा, मेला भरने पर भी रोक लगी रही लेकिन वार्षिक पूजा की छूट मिल गई।

केवल नाम का उपयोग नहीं कर सकते
तब से अब भी यहां भादवा की अमावस्या को बड़ी संख्या कोलकाता,मुंबई,चेन्नई,नागपुर सहित देश के सभी बड़े शहरों से यहां के मूल निवासी सेठ परिवार के साथ आते हैं। भले ही मेला शब्द उपयोग में नहीं लाया जाता लेकिन हजारों लोग आते हैं दुकानें सजती हैं सब होता है। लेकिन प्रशासन की तरफ से बैनर टांगें जाते हैं कि सती के महिमामंडन पर पूरी तरह से रोक हैं चूड़ी और चुनरी नहीं उठाई जा सकती और वहां पर कैमरे भी लगाए जाते हैं।


बाइट 1 सुरेंद्र सिंह यादव एडीएम झुंझुनू
बाइट 2 नागरमल मुंबई श्रद्धालु
बैटरी 3 रुकमणी मलाड मुंबई
बाइट 4 प्रभु सर्राफ व्यवसाई
बाइट 5 विशेष सर्राफ छात्र
बाइक 6 बबीता सारस्वत
बाइक 7 कविता श्रद्धालु


Conclusion:
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