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झुंझुनू: विधानसभा उपचुनाव के बाद अब बिसाऊ नगर पालिका को लेकर दो दिग्गज राजनीतिज्ञ आमने-सामने

मंडावा विधानसभा क्षेत्र की बिसाऊ नगर पालिका में चुनाव है और इसके साथ ही करीब 20 वर्ष से लगातार राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता एक बार फिर आमने-सामने है. जी हां हम बात कर रहे हैं झुंझुनू सांसद नरेंद्र खीचड़ और मंडावा की विधायक रीटा चौधरी की. दोनों ही नेताओं ने अभी बिसाऊ नगर पालिका में बोर्ड बनाने को लेकर ताल ठोक रखी है.

बिसाऊ नगर पालिका, Bissau Municipality
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Published : Nov 18, 2019, 8:23 PM IST

झुंझुनू. मंडावा विधानसभा क्षेत्र की बिसाऊ नगर पालिका में चुनाव है और इसके साथ ही करीब 20 वर्ष से लगातार राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता एक बार फिर आमने-सामने है. यह प्रतिद्वंदी अभी करीब एक साल में ही 4 बार आमने सामने हो चुके हैं, जिसमें स्कोर लगभग बराबरी का है.

राजनीतिक प्रतिद्वंदी एक बार फिर आमने सामने

दरअसल, हम बात कर रहे हैं मंडावा के पूर्व विधायक और वर्तमान झुंझुनू सांसद नरेंद्र खीचड़ और मंडावा की विधायक रीटा चौधरी की. दोनों ही नेताओं ने अभी बिसाऊ नगर पालिका में बोर्ड बनाने को लेकर ताल ठोक रखी है.

सांसद नरेंद्र खीचड़ के पूरी ताकत लगाने के बाद भी मंडावा की सीट भाजपा बचा नहीं सकी और रीटा चौधरी ने 24 अक्टूबर को ही उपचुनाव में जीत दर्ज कर विधानसभा का बदला लिया है. फिलहाल, अभी बिसाऊ नगरपालिका पर भाजपा का कब्जा है और अगर यहां बोर्ड हाथ से निकल गया तो बीजेपी और सांसद नरेंद्र खीचड़ के लिए एक महीने में ही ये दूसरी हार हो जाएगी.

पढ़ें- कांग्रेस खरीद फरोख्त नहीं करती, यह बीजेपी का काम: मंत्री टीकाराम जूली

वर्ष 2018 से है सीधा मुकाबला

सांसद नरेंद्र खीचड़ वास्तव में विधायक रीटा चौधरी के पिता रामनारायण चौधरी के खिलाफ तो पहले से ही चुनाव लड़ते रहे हैं. लेकिन दोनों का सीधा मुकाबला पहले 2008 में हुआ. जहां रीटा चौधरी निर्दलीय नरेंद्र खीचड़ को हराकर पहली बार विधायक बनी. वहीं, दूसरी बार साल 2013 में नरेंद्र खीचड़ दूसरी बार निर्दलीय उतरे लेकिन रीटा चौधरी की कांग्रेस की टिकट कट गई और वह भी निर्दलीय ही चुनाव लड़ी.

इसमें नरेंद्र खीचड़ ने चुनाव जीता और रीटा चौधरी दूसरे नंबर पर रही. कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान की जमानत जब्त होने से यह साबित हो गया कि मंडावा विधानसभा में मुकाबला इन्हीं दोनों का रहेगा.

इसके बाद साल 2018 के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र खीचड़ भाजपा और रीटा चौधरी कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतरे और यहां हुई रीटा चौधरी की हार ने यह संकेत दे दिया कि लगातार दूसरी हार से वे राजनीतिक रसातल की ओर जा रही है.

पढ़ें: इस बार बीजेपी का सूपड़ा साफ, फिर भी कर रही विधायकों की 'बाड़ाबंदी': कांग्रेस

मिला राजनीतिक जीवन दान

मंडावा के विधायक नरेंद्र खीचड़ को साल 2019 में एमपी का टिकट मिला और वो चुनाव जीत कर सांसद हो गए. लेकिन उन्हें मंडावा विधानसभा से ही सबसे कम लीड मिली जबकि वो यहां से विधायक रह चुके थे. इस बारे में लोगों का मानना है कि रीटा चौधरी ने ही मंडावा विधानसभा में उन्हें सबसे कम लीड पर रोका था.

इसके बाद उपचुनाव में सांसद नरेंद्र खीचड़ ने रीटा की सालों से राजनीतिक दुश्मन और कांग्रेस से निष्कासित प्रधान सुशीला सीगड़ा को भाजपा का टिकट दिलवाया. इस चुनाव में रीटा चौधरी ने भाजपा की सुशीला सिगड़ा को 33 हजार से ज्यादा मतों से हराकर राजनीतिक पुनर्जीवन प्राप्त किया. वहीं, अब एक बार फिर दोनों ही प्रतिद्वंदियों ने बिसाऊ नगर पालिका में बोर्ड बनाने को लेकर तलवारें खींच रखी हैं.

झुंझुनू. मंडावा विधानसभा क्षेत्र की बिसाऊ नगर पालिका में चुनाव है और इसके साथ ही करीब 20 वर्ष से लगातार राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता एक बार फिर आमने-सामने है. यह प्रतिद्वंदी अभी करीब एक साल में ही 4 बार आमने सामने हो चुके हैं, जिसमें स्कोर लगभग बराबरी का है.

राजनीतिक प्रतिद्वंदी एक बार फिर आमने सामने

दरअसल, हम बात कर रहे हैं मंडावा के पूर्व विधायक और वर्तमान झुंझुनू सांसद नरेंद्र खीचड़ और मंडावा की विधायक रीटा चौधरी की. दोनों ही नेताओं ने अभी बिसाऊ नगर पालिका में बोर्ड बनाने को लेकर ताल ठोक रखी है.

सांसद नरेंद्र खीचड़ के पूरी ताकत लगाने के बाद भी मंडावा की सीट भाजपा बचा नहीं सकी और रीटा चौधरी ने 24 अक्टूबर को ही उपचुनाव में जीत दर्ज कर विधानसभा का बदला लिया है. फिलहाल, अभी बिसाऊ नगरपालिका पर भाजपा का कब्जा है और अगर यहां बोर्ड हाथ से निकल गया तो बीजेपी और सांसद नरेंद्र खीचड़ के लिए एक महीने में ही ये दूसरी हार हो जाएगी.

पढ़ें- कांग्रेस खरीद फरोख्त नहीं करती, यह बीजेपी का काम: मंत्री टीकाराम जूली

वर्ष 2018 से है सीधा मुकाबला

सांसद नरेंद्र खीचड़ वास्तव में विधायक रीटा चौधरी के पिता रामनारायण चौधरी के खिलाफ तो पहले से ही चुनाव लड़ते रहे हैं. लेकिन दोनों का सीधा मुकाबला पहले 2008 में हुआ. जहां रीटा चौधरी निर्दलीय नरेंद्र खीचड़ को हराकर पहली बार विधायक बनी. वहीं, दूसरी बार साल 2013 में नरेंद्र खीचड़ दूसरी बार निर्दलीय उतरे लेकिन रीटा चौधरी की कांग्रेस की टिकट कट गई और वह भी निर्दलीय ही चुनाव लड़ी.

इसमें नरेंद्र खीचड़ ने चुनाव जीता और रीटा चौधरी दूसरे नंबर पर रही. कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान की जमानत जब्त होने से यह साबित हो गया कि मंडावा विधानसभा में मुकाबला इन्हीं दोनों का रहेगा.

इसके बाद साल 2018 के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र खीचड़ भाजपा और रीटा चौधरी कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतरे और यहां हुई रीटा चौधरी की हार ने यह संकेत दे दिया कि लगातार दूसरी हार से वे राजनीतिक रसातल की ओर जा रही है.

पढ़ें: इस बार बीजेपी का सूपड़ा साफ, फिर भी कर रही विधायकों की 'बाड़ाबंदी': कांग्रेस

मिला राजनीतिक जीवन दान

मंडावा के विधायक नरेंद्र खीचड़ को साल 2019 में एमपी का टिकट मिला और वो चुनाव जीत कर सांसद हो गए. लेकिन उन्हें मंडावा विधानसभा से ही सबसे कम लीड मिली जबकि वो यहां से विधायक रह चुके थे. इस बारे में लोगों का मानना है कि रीटा चौधरी ने ही मंडावा विधानसभा में उन्हें सबसे कम लीड पर रोका था.

इसके बाद उपचुनाव में सांसद नरेंद्र खीचड़ ने रीटा की सालों से राजनीतिक दुश्मन और कांग्रेस से निष्कासित प्रधान सुशीला सीगड़ा को भाजपा का टिकट दिलवाया. इस चुनाव में रीटा चौधरी ने भाजपा की सुशीला सिगड़ा को 33 हजार से ज्यादा मतों से हराकर राजनीतिक पुनर्जीवन प्राप्त किया. वहीं, अब एक बार फिर दोनों ही प्रतिद्वंदियों ने बिसाऊ नगर पालिका में बोर्ड बनाने को लेकर तलवारें खींच रखी हैं.

Intro:झुंझुनू। मंडावा विधानसभा क्षेत्र की बिसाऊ नगर पालिका में चुनाव है और इसके साथ ही करीब 20 वर्ष से लगातार राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता एक बार वापस आमने-सामने है। यह प्रतिद्वंदी अभी करीब 1 साल में ही 4 बार आमने सामने हो चुके हैं और इसमें स्कोर लगभग बराबरी का है दरअसल हम बात कर रहे हैं मंडावा के पूर्व विधायक व वर्तमान झुंझुनू सांसद नरेंद्र खीचड़ व मंडावा की विधायक रीटा चौधरी की। दोनों ही नेताओं ने अभी बिसाऊ नगर पालिका में बोर्ड बनाने को लेकर ताल ठोक रखी है सांसद नरेंद्र खीचड़ के पूरी ताकत लगाने के बाद भी मंडावा की सीट भाजपा बचा नहीं सकी और रीटा चौधरी ने 24 अक्टूबर को ही उपचुनाव में जीत दर्ज कर विधानसभा का बदला लिया है अभी बिसाऊ नगरपालिका पर भाजपा का कब्जा है और यहां बोर्ड हाथ से निकल गया तो भाजपा व सांसद नरेंद्र खीचड़ के लिए एक माह में ही दूसरी हार हो जाएगी। वही रीटा चौधरी जीतकर यह जताने का प्रयास करेंगे कि उपचुनाव में जीत कोई तुक्का नहीं थी और अभी वे ही मंडावा विधानसभा की क्षत्रप है।


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वर्ष 2018 से है सीधा मुकाबला
सांसद नरेंद्र खीचड़ वास्तव में विधायक रीटा चौधरी के पिता रामनारायण चौधरी के खिलाफ तो पहले से ही चुनाव लड़ते रहे हैं लेकिन दोनों का सीधा मुकाबला पहले 2008 में हुआ यहां पर रीटा चौधरी ने निर्दलीय नरेंद्र खीचड़ को हराकर पहली बार विधायक बनी। दूसरी बार वर्ष 2013 में नरेंद्र खीचड़ दूसरी बार निर्दलीय उतरे लेकिन रीटा चौधरी की कांग्रेस की टिकट कट गई और वह भी निर्दलीय ही चुनाव लड़ी इसमें नरेंद्र खीचड़ ने चुनाव जीता और रीटा चौधरी दूसरे नंबर पर रही। कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ चंद्रभान की जमानत जप्त होने से यह साबित हो गया कि मंडावा विधानसभा में मुकाबला इन्हीं दोनों क्षत्रपो का रहेगा। इसके बाद वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र खीचड़ भाजपा व रीटा चौधरी कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतरे और यहां हुई रीटा चौधरी की हार ने यह संकेत दे दिया कि लगातार दूसरी हार से वे राजनीतिक रसातल की ओर जा रही है लेकिन कहा जाता है कि जिसके राजधर्म लिखा हुआ होता है तो भाग्य पलटता है।

मिला राजनीतिक जीवन दान

मंडावा के विधायक नरेंद्र खीचड़ को वर्ष 2019 में एमपी का टिकट मिल गया इसमें उठे राजनीतिक बवंडर में खीचड़ जीतकर एमपी बन गए लेकिन जिले में मंडावा के विधायक होने के बाद ही सबसे कम लीड पर रोककर रीटा चौधरी ने यह साबित कर दिया कि मंडावा की जनता की नब्ज अब भी कहीं ना कहीं उनके पास है। इसके बाद उपचुनाव हुआ सांसद नरेंद्र खीचड़ ने रीटा की सालों से राजनीतिक दुश्मन कांग्रेसी निष्कासित प्रधान सुशीला सीगड़ा को भाजपा का टिकट दिलवाया। इस चुनाव में रीटा चौधरी ने भाजपा सुशीला सिगड़ा को 33,000 से ज्यादा मतों से जीतकर ना केवल राजनीतिक पुनर्जीवन प्राप्त किया। अब वापस एक बार वापस दोनों ही परंपरागत प्रतिद्वंदीयों ने तलवारें खींच रखी है और देखने वाली बात होगी कि बिसाऊ नगर पालिका में बोर्ड बनाकर अभी कौन अपने आपको मंडावा का तीसमार खां साबित करता है।

बाइट विजेंद्र शर्मा वरिष्ठ पत्रकार




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