झुंझुनूं. प्रदेश का पहला और एकमात्र खेल विश्वविद्यालय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से अपनी और एक नजर डालने की मांग कर रहा है.खेल विश्वविद्यालय कह रहा है कि आपने ही मुझे 2011 में शुरू करने की बात कही थी, आपने ही मेरे ऊपर दो कुलपति और एक आईएएस लेवल के ओएसडी लगाए थे. आप बस 2 साल में केवल यही कर पाए कि आप की सरकार चली गई. बाद में आई सरकार ने मेरा नाम बदलकर क्रीड़ा एकेडमी कर दिया. लेकिन 5 साल में मेरे नाम पर केवल यह नाम बदलना ही उनकी उपलब्धि रही.अब आप वापस एक बार इस प्रदेश के मुखिया बने हैं , जरा हम पर नजरें इनायत करो और कम से कम सही हालात में खेल विश्वविद्यालय शुरु तो करो.
8 साल का हो गया है खेल विश्वविद्यालय
साल 2011 में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट मेंनिजी जन सहभागिता पीपीपी मोड में प्रदेश के पहले खेल विश्वविद्यालय को झुंझुनू में खोलने की घोषणा की थी. जब कोई प्राइवेट पार्टनर साथ देने के लिए तैयार नहीं हुआ,तो साल 2012 में पहले सरकारी विश्वविद्यालय घोषणा की गई. दोरासर गांव के चारागाह की 50.58 हेक्टर जमीन भी आवंटित कर द गई. डॉक्टर शैलेंद्र कुमार सिन्हा को विश्वविद्यालय का प्रथम कुलपति नियुक्त किया गया. लेकिन उन्होंने एक बार भी झुंझुनू की धरती पर कदम नहीं रखा.इसके 1 माह बाद डॉक्टर एलएस राणावत को नए कुलपति बनाया गया, वह भी केवल एक बार दर्शन देने झुंझुनू आए. बाद में अगस्त 2013 में परशुराम को पहला विशेष अधिकारी लगाया गया. इनके 10 दिन बाद ही उनकी जगह किशोर कुमार को इस का प्रभार दिया गया.अब तक 6 साल बीत चुके हैं लेकिन खेल के नाम पर यहां कुछ भी नहीं हुआ है.
नाम का हुआ बजट मंजूर
सरकार बदलने के बाद में भाजपा सरकार ने खेल विश्वविद्यालय के स्थान पर पटियाला की तर्ज पर राष्ट्रीय क्रीड़ा एकेडमी का खोला जाना तय किया.इसके लिए क्रीडा परिषद ने 33 करोड़ रुपए का बजट भी मंजूर किया. लेकिन वह बजट केवल कागजों में ही रहा और धरातल पर इसको लेकर कोई भी काम नहीं हुआ है.