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Kargil Vijay Diwas: टाइगर हिल पर भारतीय जवानों ने अदम्य साहस का परिचय देकर फहराया था तिरंगा...योगेश ने सुनाई युद्ध की कहानी - Rajasthan Hindi news

1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने शौर्य और अदम्य (Kargil Vijay Diwas) साहस का परिचय देते हुए ऑपरेशन विजय को अंजाम दिया था. कारगिल से पाकिस्तान को खदेड़ने के लिए शुरू किया गया ऑपरेशन विजय के दौरान हर दिन सैनिकों की ओर से दिखाई गई वीरता की गाथाएं आज भी हम सभी को प्रेरणा देती है. ऐसी ही कहानी कारगिल के टाइगर हिल की है. इस युद्ध में शामिल रहे हवलदार योगेश ने बताई कि कैसे वहां से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ा गया था.

Kargil Vijay Diwas
कारगिल युद्ध में शामिल रहे हवलदार योगेश की कहानी
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Published : Jul 26, 2022, 6:19 PM IST

खेतड़ी (झुंझुनू). करीब 23 वर्ष पूर्व 1999 में कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को करारी शिकस्त (Kargil Vijay Diwas) देने वाले भारतीय सेना के शौर्य और अदम्य साहस के लिए 26 जुलाई को विजय दिवस मनाया जाता है. कारगिल युद्ध लड़ने वाले शहीदों की झुंझुनू जिले में लंबी कतार है. कई जवान ऐसे हैं जो कारगिल युद्ध के साक्षी हैं और उन्होंने टाइगर हिल पर तिरंगा लहरा कर विजय गाथा लिखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.

कारगिल विजय दिवस के मौके पर हम आज बात कर रहे हैं झुंझुनू जिले के खेतड़ी तहसील की ढाणी ढाब तन बबाई के हवलदार योगेश सैनी की. जिन्होंने टाइगर हिल पर अपनी टीम के साथ तिरंगा लहराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. हवलदार योगेश ने बताया कि उनके पिता सूबेदार तेजाराम सैनी जो की भारतीय सेना में ही थे. उनकी प्रेरणा से दसवीं कक्षा की पढ़ाई करते ही देश सेवा में चले गए. पहली पोस्टिंग बिनागुड़ी असम में रही और उन्हें जाट रेजीमेंट में शामिल होने का मौका मिला.

कारगिल युद्ध में शामिल रहे हवलदार योगेश की कहानी...

हवलदार योगेश ने बताया कि युद्ध के समय उनकी पोस्टिंग ग्लेशियर कारगिल में जोगी पोस्ट पर 12 जाट रेजीमेंट की बी कंपनी में थी. उस समय वह लांस नायक के पद पर तैनात थे. उनकी टीम में 13 जवानों की टुकड़ी थी, जिसके इंचार्ज सूबेदार मंद्रूप साहब, सिपाही राजूराम जो अब 12 जाट में एस सी हैं. पोस्टिंग इंचार्ज सूबेदार सत्यवीर सिंह, सिपाही राजवीर, सिपाही बलवीर, लांस नायक गजेंद्र सहित अन्य जवानों की टुकड़ी तैनात थी, जो कि दो भागों में बंटी हुई थी. इस टुकड़ी की खास बात यह थी कि इनमें से एक भी जवान शहीद नहीं हुआ. सभी ने विजयश्री प्राप्त कर सकुशल तिरंगा फहराया था. हवलदार योगेश ने बताया कि उनकी पोस्ट से टाइगर हिल सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर थी. टाइगर हिल के पीछे ही पाकिस्तान की यशमान खान पोस्ट थी. कंपनी कमांडर जब आदेश देते थे, वैसे ही टुकड़ी कार्रवाई करती थी.

पढे़ं. कारगिल विजय दिवस: पत्नी ने शहीद से किया वादा निभाया, बेटे को सेना में भर्ती करवाया

ऐसे शुरू हुआ युद्ध: हवलदार योगेश ने बताया कि जब उनकी टुकड़ी जोगी पोस्ट पर तैनात थी, तभी रात 2:30 बजे के करीब उनकी पोस्ट के आगे आकर एक गोला गिरा. उन्होंने तुरंत नीचे कंपनी कमांडर को सूचना दी. सूचना देने के बाद कंपनी कमांडर ने सभी जवानों को अलर्ट कर दिया और सभी ने रात भर मोर्चा संभाले रखा. साथ ही नीचे बेस में भी रिपोर्ट दी. वहां से एक पार्टी चली जो जोगी पोस्ट के हाफ लिंक तक आई. हाफ लिंक पर वहां से ब्रीफिंग की गई और पूरे मामले की कंपनी कमांडर ने सूचना जुटाई.

सुबह 7:00 बजे सभी अलर्ट मोड पर थे. तभी अचानक सुबह 7:30 बजे दोबारा टाइगर हिल से एक फायर हुआ. इस पर हमारी टुकड़ी ने भी ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी और एलएमजी से लगातार गोले दागने लगे. इस तरह युद्ध की शुरुआत हुई. हमारी टुकड़ी जब नीचे से बोफोर्स तोप से गोले दागती तब कभी चार कदम कभी 10 कदम आगे जाकर बड़ी चट्टानों के पीछे ही मोर्चा संभालते हुए आगे बढ़ रहे थे.

फोन नहीं था तो सूचना करने का बनाया था अनोखा जुगाड़ः 1999 में जब कारगिल युद्ध हुआ था, उस समय कोई फोन नहीं था. कंपनी के वॉकी टॉकी भी बर्फ में कम ही काम कर पाते थे. ऐसे में एक टुकड़ी से दूसरी टुकड़ी तथा एक कंपनी से दूसरी कंपनी में तार के साथ एक डिब्बा बांधकर अपने साथ रखते थे. तार को बार-बार हिलाने पर डब्बा हिलता तो दूसरी तरफ को सूचना मिल जाती थी. इससे सभी अलर्ट मोड पर आ जाते थे. ऐसे सूचनाओं का संप्रेषण किया जाता था. ये उस समय के अधिकारियों के दिमाग का जुगाड़ ही कहा जाएगा. साथ ही टेलीफोन का वायर भी बर्फ में बिछाकर एक कंपनी से दूसरी कंपनी तक रखा जाता था. उससे भी सूचना आपस में साझा की जाती थी.

पढ़ें. Martyr Abhay Pareek: विजय दिवस पर अतीत के पन्नों में शहादत के किस्से ,जयपुर के लेफ्टिनेंट अभय ने सरहद पर दुश्मन से लिया था लोहा

बोफोर्स गन, मिसाइल व एलएमजी थे मुख्य हथियारः करगिल युद्ध के दौरान विशेष तौर पर बोफोर्स का इस्तेमाल हुआ था. जिससे भारतीय सेना ने विजयश्री प्राप्त की थी. हवलदार योगेश की जुबानी मानें तो उस समय एलएमजी के साथ उनकी टुकड़ी टाइगर हिल की तरफ गोलाबारी करती. कंपनी कमांडर तथा पोस्ट इंचार्ज के निर्देशानुसार 6 से 8 कदम ऊपर की ओर आगे बढ़ जाते, यह सिलसिला बार-बार होता. जिससे अन्य टुकड़ियों को भी कवर फायर मिलता और स्टेप बाई स्टेप आगे बढ़ते रहते. मिसाइल से हमले किए जाते. एलएमजी पर एक समय में 2 जवान बड़ी चट्टानों और पत्थर की ओट में तैनात रहते थे. एलएमजी पर जवानों की समय-समय पर ड्यूटी बदलती रहती थी.

2 महीने की लड़ाई के बाद टाइगर हिल पर फहराया तिरंगाः कारगिल हीरो हवलदार योगेश सैनी ने बताया कि युद्ध शुरू होने के बाद लगातार अन्य रेजीमेंट के साथ-साथ जाट रेजिमेंट मैदान में थी. 12 जाट यूनिट के जवानों ने टाइगर हिल के नीचे मोर्चा संभाल रखा था, कारगिल का युद्ध वैसे तो 2 माह तक चला था. लेकिन हमने करीब 10 दिन से भी अधिक लड़ाई लड़ी थी. युद्ध के दौरान खाने-पीने के कोई विशेष साधन नहीं थे. उनके पास आटे के बने हुए खूरमे होते थे. बर्फ को पिघलाकर पानी पीकर काम चलाते थे. साथ ही नीचे से कुछ मदद आती वह किसी जवान को मिलती तो किसी को नहीं मिलती. लेकिन फिर भी देश की रक्षा के लिए तत्पर मैदान में डटे रहे. उनकी टुकड़ी ने पाकिस्तान के 2 सैनिक, दो अधिकारियों को मार गिराया था. योगेश ने बताया कि हमारी यूनिट ने पाकिस्तानी फौज को करगिल की टाइगर हिल की चोटी से खदेड़ दिया और वहां पर तिरंगा फहराया और विजयश्री प्राप्त की.

खेतड़ी (झुंझुनू). करीब 23 वर्ष पूर्व 1999 में कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को करारी शिकस्त (Kargil Vijay Diwas) देने वाले भारतीय सेना के शौर्य और अदम्य साहस के लिए 26 जुलाई को विजय दिवस मनाया जाता है. कारगिल युद्ध लड़ने वाले शहीदों की झुंझुनू जिले में लंबी कतार है. कई जवान ऐसे हैं जो कारगिल युद्ध के साक्षी हैं और उन्होंने टाइगर हिल पर तिरंगा लहरा कर विजय गाथा लिखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.

कारगिल विजय दिवस के मौके पर हम आज बात कर रहे हैं झुंझुनू जिले के खेतड़ी तहसील की ढाणी ढाब तन बबाई के हवलदार योगेश सैनी की. जिन्होंने टाइगर हिल पर अपनी टीम के साथ तिरंगा लहराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. हवलदार योगेश ने बताया कि उनके पिता सूबेदार तेजाराम सैनी जो की भारतीय सेना में ही थे. उनकी प्रेरणा से दसवीं कक्षा की पढ़ाई करते ही देश सेवा में चले गए. पहली पोस्टिंग बिनागुड़ी असम में रही और उन्हें जाट रेजीमेंट में शामिल होने का मौका मिला.

कारगिल युद्ध में शामिल रहे हवलदार योगेश की कहानी...

हवलदार योगेश ने बताया कि युद्ध के समय उनकी पोस्टिंग ग्लेशियर कारगिल में जोगी पोस्ट पर 12 जाट रेजीमेंट की बी कंपनी में थी. उस समय वह लांस नायक के पद पर तैनात थे. उनकी टीम में 13 जवानों की टुकड़ी थी, जिसके इंचार्ज सूबेदार मंद्रूप साहब, सिपाही राजूराम जो अब 12 जाट में एस सी हैं. पोस्टिंग इंचार्ज सूबेदार सत्यवीर सिंह, सिपाही राजवीर, सिपाही बलवीर, लांस नायक गजेंद्र सहित अन्य जवानों की टुकड़ी तैनात थी, जो कि दो भागों में बंटी हुई थी. इस टुकड़ी की खास बात यह थी कि इनमें से एक भी जवान शहीद नहीं हुआ. सभी ने विजयश्री प्राप्त कर सकुशल तिरंगा फहराया था. हवलदार योगेश ने बताया कि उनकी पोस्ट से टाइगर हिल सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर थी. टाइगर हिल के पीछे ही पाकिस्तान की यशमान खान पोस्ट थी. कंपनी कमांडर जब आदेश देते थे, वैसे ही टुकड़ी कार्रवाई करती थी.

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ऐसे शुरू हुआ युद्ध: हवलदार योगेश ने बताया कि जब उनकी टुकड़ी जोगी पोस्ट पर तैनात थी, तभी रात 2:30 बजे के करीब उनकी पोस्ट के आगे आकर एक गोला गिरा. उन्होंने तुरंत नीचे कंपनी कमांडर को सूचना दी. सूचना देने के बाद कंपनी कमांडर ने सभी जवानों को अलर्ट कर दिया और सभी ने रात भर मोर्चा संभाले रखा. साथ ही नीचे बेस में भी रिपोर्ट दी. वहां से एक पार्टी चली जो जोगी पोस्ट के हाफ लिंक तक आई. हाफ लिंक पर वहां से ब्रीफिंग की गई और पूरे मामले की कंपनी कमांडर ने सूचना जुटाई.

सुबह 7:00 बजे सभी अलर्ट मोड पर थे. तभी अचानक सुबह 7:30 बजे दोबारा टाइगर हिल से एक फायर हुआ. इस पर हमारी टुकड़ी ने भी ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी और एलएमजी से लगातार गोले दागने लगे. इस तरह युद्ध की शुरुआत हुई. हमारी टुकड़ी जब नीचे से बोफोर्स तोप से गोले दागती तब कभी चार कदम कभी 10 कदम आगे जाकर बड़ी चट्टानों के पीछे ही मोर्चा संभालते हुए आगे बढ़ रहे थे.

फोन नहीं था तो सूचना करने का बनाया था अनोखा जुगाड़ः 1999 में जब कारगिल युद्ध हुआ था, उस समय कोई फोन नहीं था. कंपनी के वॉकी टॉकी भी बर्फ में कम ही काम कर पाते थे. ऐसे में एक टुकड़ी से दूसरी टुकड़ी तथा एक कंपनी से दूसरी कंपनी में तार के साथ एक डिब्बा बांधकर अपने साथ रखते थे. तार को बार-बार हिलाने पर डब्बा हिलता तो दूसरी तरफ को सूचना मिल जाती थी. इससे सभी अलर्ट मोड पर आ जाते थे. ऐसे सूचनाओं का संप्रेषण किया जाता था. ये उस समय के अधिकारियों के दिमाग का जुगाड़ ही कहा जाएगा. साथ ही टेलीफोन का वायर भी बर्फ में बिछाकर एक कंपनी से दूसरी कंपनी तक रखा जाता था. उससे भी सूचना आपस में साझा की जाती थी.

पढ़ें. Martyr Abhay Pareek: विजय दिवस पर अतीत के पन्नों में शहादत के किस्से ,जयपुर के लेफ्टिनेंट अभय ने सरहद पर दुश्मन से लिया था लोहा

बोफोर्स गन, मिसाइल व एलएमजी थे मुख्य हथियारः करगिल युद्ध के दौरान विशेष तौर पर बोफोर्स का इस्तेमाल हुआ था. जिससे भारतीय सेना ने विजयश्री प्राप्त की थी. हवलदार योगेश की जुबानी मानें तो उस समय एलएमजी के साथ उनकी टुकड़ी टाइगर हिल की तरफ गोलाबारी करती. कंपनी कमांडर तथा पोस्ट इंचार्ज के निर्देशानुसार 6 से 8 कदम ऊपर की ओर आगे बढ़ जाते, यह सिलसिला बार-बार होता. जिससे अन्य टुकड़ियों को भी कवर फायर मिलता और स्टेप बाई स्टेप आगे बढ़ते रहते. मिसाइल से हमले किए जाते. एलएमजी पर एक समय में 2 जवान बड़ी चट्टानों और पत्थर की ओट में तैनात रहते थे. एलएमजी पर जवानों की समय-समय पर ड्यूटी बदलती रहती थी.

2 महीने की लड़ाई के बाद टाइगर हिल पर फहराया तिरंगाः कारगिल हीरो हवलदार योगेश सैनी ने बताया कि युद्ध शुरू होने के बाद लगातार अन्य रेजीमेंट के साथ-साथ जाट रेजिमेंट मैदान में थी. 12 जाट यूनिट के जवानों ने टाइगर हिल के नीचे मोर्चा संभाल रखा था, कारगिल का युद्ध वैसे तो 2 माह तक चला था. लेकिन हमने करीब 10 दिन से भी अधिक लड़ाई लड़ी थी. युद्ध के दौरान खाने-पीने के कोई विशेष साधन नहीं थे. उनके पास आटे के बने हुए खूरमे होते थे. बर्फ को पिघलाकर पानी पीकर काम चलाते थे. साथ ही नीचे से कुछ मदद आती वह किसी जवान को मिलती तो किसी को नहीं मिलती. लेकिन फिर भी देश की रक्षा के लिए तत्पर मैदान में डटे रहे. उनकी टुकड़ी ने पाकिस्तान के 2 सैनिक, दो अधिकारियों को मार गिराया था. योगेश ने बताया कि हमारी यूनिट ने पाकिस्तानी फौज को करगिल की टाइगर हिल की चोटी से खदेड़ दिया और वहां पर तिरंगा फहराया और विजयश्री प्राप्त की.

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