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झुंझनू से अकेले बृजेंद्र ओला खुलकर पायलट के साथ खड़े, बाकियों ने किया किनारा - Sachin Pilot latest news

झुंझनू की सात विधानसभाओं में से 6 पर वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी का कब्जा है. लेकिन इसके बावजूद यहां से ना तो कोई मंत्री है और ना ही कोई राजनीतिक नियुक्ति हुई. वहीं, 6 में से सिर्फ बृजेंद्र ओला एकमात्र जिले के विधायक हैं, जो सचिन पायलट के साथ खुलकर खडे़ हैं.

Brijendra Ola with Pilot, Rajasthan political crisis
पायलट के साथ अकेले खड़े बृजेंद्र ओला
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Published : Jul 21, 2020, 10:35 PM IST

झुंझनू. लंबे समय से कांग्रेस के गढ़ सैनिक और उद्योगपतियों की नगरी झुंझनू ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की झोली भर दी. लेकिन इसके बावजूद जिले का दामन खाली ही रहा. दरअसल, जिले की 7 विधानसभाओं में से 6 पर कांग्रेस का कब्जा है. लेकिन गहलोत सरकार में मंत्री एक भी नहीं है और ना ही अब तक कोई राजनीतिक नियुक्ति हुई. वहीं, अब राजनीतिक उठापटक के बीच एक विधायक को छोड़कर सभी विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे में दिखाई दे रहे हैं.

मंडावा विधानसभा से कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रामनारायण चौधरी की पुत्री रीटा चौधरी विधायक हैं. साल 2013 के चुनाव में सिटिंग एमएलए होने के बाद भी उनका टिकट काट दिया गया था और इसलिए वे गहलोत से खासी नाराज थीं. बाद में सचिन पायटल के अध्यक्ष कार्यकाल में उनकी वापसी हुई, इसमें पायलट का खासा योगदान था.

पायलट के साथ अकेले खड़े बृजेंद्र ओला

विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने पोस्टरों में मुख्यमंत्री गहलोत का फोटो तक नहीं लगाया था. लेकिन यहां के विधायक नरेंद्र खीचड़ के सांसद बन जाने के बाद हुए उपचुनाव में वे वापस गहलोत के नजदीक आ गई. सीएम गहलोत को भी लगा कि यहां की सीट केवल रीटा चौधरी ही कांग्रेस की झोली में डाल सकती हैं, इसलिए मुख्यमंत्री के चलते रीटा चौधरी के इशारों पर जमकर काम हुए और अब वे गहलोत खेमे में हैं.

पढ़ें- पायलट का भीलवाड़ा कनेक्शन, आखिर क्यों चुप हैं यहां के नेता

उदयपुरवाटी विधानसभा के विधायक राजेंद्र गुढ़ा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नजदीकी माने जाते हैं और बताया जाता है कि दोनों बार बसपा के सभी विधायकों को कांग्रेस में लाने में उनकी विशेष भूमिका रही थी. ऐसे में लगभग तय है कि वे मुख्यमंत्री के साथ ही रहेंगे और सरकार रहने की स्थिति में इसकी एवज में गत गहलोत सरकार की तरफ से उन्हें मंत्री पद का तोहफा मिल सकता है.

अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट पिलानी से विधायक पूर्व आईएएस अधिकारी जेपी चंदेलिया गहलोत खेमे में हैं. कोरोना पॉजिटिव से नेगेटिव होते ही बिना क्वॉरेंटाइन समय पूरा किए वे होटल में हुई बाड़ेबंदी में चले गए. एससी कोटा और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी होने पर उनका भी मंत्री पद में नंबर आ सकता है.

खेतड़ी विधायक और गहलोत सरकार में मंत्री रहे डॉ. जितेन्द्र सिंह गुर्जर के लिए यह कहा जाता है कि उन्होंने इस बात का जमकर उपयोग किया कि उनको जिताओगे तो अपने समाज का मुख्यमंत्री राजस्थान में बनेगा. हालांकि इसके बाद भी वे अभी गहलोत खेमे की बाड़ेबंदी में हैं.

पढ़ें- गहलोत-पायलट के बीच सियासी जंग में ओला परिवार...एक बार फिर अदावत और बगावत 'बुलंद'

नवलगढ़ विधानसभा में भी गहलोत के गत कार्यकाल के बाद हुए उपचुनाव में मंत्री होने के बाद भी राजकुमार शर्मा का टिकट काट दिया गया था. निर्दलीय विधायक के रूप में उनकी वापसी कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने ही करवाई थी. उनको भी पायलट खेमे का माना जाता है, लेकिन राजनीतिक हलकों में उनको बैलेंसिंग मैन माना जाता है और वे अभी गहलोत के साथ खडे़ हैं.

झुंझुनू विधानसभा सीट के विधायक और पूर्व मंत्री बृजेंद्र ओला एकमात्र जिले के विधायक हैं, जो सचिन पायलट के साथ खुलकर खडे़ हैं. इसके लिए उन्होंने काफी रिस्क उठाया है. क्योंकि उनके विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं और ऐसे में कांग्रेस से बाहर जाने पर उनके लिए विधायक बनने का सफर भी पथरीला होगा. लेकिन ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि आगे उनके लिए समय कितना फायदेमंद होता है.

झुंझनू. लंबे समय से कांग्रेस के गढ़ सैनिक और उद्योगपतियों की नगरी झुंझनू ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की झोली भर दी. लेकिन इसके बावजूद जिले का दामन खाली ही रहा. दरअसल, जिले की 7 विधानसभाओं में से 6 पर कांग्रेस का कब्जा है. लेकिन गहलोत सरकार में मंत्री एक भी नहीं है और ना ही अब तक कोई राजनीतिक नियुक्ति हुई. वहीं, अब राजनीतिक उठापटक के बीच एक विधायक को छोड़कर सभी विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे में दिखाई दे रहे हैं.

मंडावा विधानसभा से कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रामनारायण चौधरी की पुत्री रीटा चौधरी विधायक हैं. साल 2013 के चुनाव में सिटिंग एमएलए होने के बाद भी उनका टिकट काट दिया गया था और इसलिए वे गहलोत से खासी नाराज थीं. बाद में सचिन पायटल के अध्यक्ष कार्यकाल में उनकी वापसी हुई, इसमें पायलट का खासा योगदान था.

पायलट के साथ अकेले खड़े बृजेंद्र ओला

विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने पोस्टरों में मुख्यमंत्री गहलोत का फोटो तक नहीं लगाया था. लेकिन यहां के विधायक नरेंद्र खीचड़ के सांसद बन जाने के बाद हुए उपचुनाव में वे वापस गहलोत के नजदीक आ गई. सीएम गहलोत को भी लगा कि यहां की सीट केवल रीटा चौधरी ही कांग्रेस की झोली में डाल सकती हैं, इसलिए मुख्यमंत्री के चलते रीटा चौधरी के इशारों पर जमकर काम हुए और अब वे गहलोत खेमे में हैं.

पढ़ें- पायलट का भीलवाड़ा कनेक्शन, आखिर क्यों चुप हैं यहां के नेता

उदयपुरवाटी विधानसभा के विधायक राजेंद्र गुढ़ा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नजदीकी माने जाते हैं और बताया जाता है कि दोनों बार बसपा के सभी विधायकों को कांग्रेस में लाने में उनकी विशेष भूमिका रही थी. ऐसे में लगभग तय है कि वे मुख्यमंत्री के साथ ही रहेंगे और सरकार रहने की स्थिति में इसकी एवज में गत गहलोत सरकार की तरफ से उन्हें मंत्री पद का तोहफा मिल सकता है.

अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट पिलानी से विधायक पूर्व आईएएस अधिकारी जेपी चंदेलिया गहलोत खेमे में हैं. कोरोना पॉजिटिव से नेगेटिव होते ही बिना क्वॉरेंटाइन समय पूरा किए वे होटल में हुई बाड़ेबंदी में चले गए. एससी कोटा और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी होने पर उनका भी मंत्री पद में नंबर आ सकता है.

खेतड़ी विधायक और गहलोत सरकार में मंत्री रहे डॉ. जितेन्द्र सिंह गुर्जर के लिए यह कहा जाता है कि उन्होंने इस बात का जमकर उपयोग किया कि उनको जिताओगे तो अपने समाज का मुख्यमंत्री राजस्थान में बनेगा. हालांकि इसके बाद भी वे अभी गहलोत खेमे की बाड़ेबंदी में हैं.

पढ़ें- गहलोत-पायलट के बीच सियासी जंग में ओला परिवार...एक बार फिर अदावत और बगावत 'बुलंद'

नवलगढ़ विधानसभा में भी गहलोत के गत कार्यकाल के बाद हुए उपचुनाव में मंत्री होने के बाद भी राजकुमार शर्मा का टिकट काट दिया गया था. निर्दलीय विधायक के रूप में उनकी वापसी कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने ही करवाई थी. उनको भी पायलट खेमे का माना जाता है, लेकिन राजनीतिक हलकों में उनको बैलेंसिंग मैन माना जाता है और वे अभी गहलोत के साथ खडे़ हैं.

झुंझुनू विधानसभा सीट के विधायक और पूर्व मंत्री बृजेंद्र ओला एकमात्र जिले के विधायक हैं, जो सचिन पायलट के साथ खुलकर खडे़ हैं. इसके लिए उन्होंने काफी रिस्क उठाया है. क्योंकि उनके विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं और ऐसे में कांग्रेस से बाहर जाने पर उनके लिए विधायक बनने का सफर भी पथरीला होगा. लेकिन ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि आगे उनके लिए समय कितना फायदेमंद होता है.

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