झुंझुनू. दिल्ली-बीकानेर के रास्ते झुंझुनू में फतेहपुर के बीच बसा हुआ मंडावा शहर 80 के दशक में उजड़ता हुआ शहर हुआ करता था. यहां के सेठ-साहूकार अपनी हवेलियां छोड़कर खाने-कमाने के लिए बड़े शहरों की ओर पलायन कर चुके थे. आसपास के गांव के लोग भी शहरों में बसने के लिए मंडावा की बजाय झुंझुनू जिला मुख्यालय की ओर रुख कर रहे थे. इस बीच यूके के जाने-माने ट्रैवल फोटोग्राफर, राइटर और इतिहासकार इले कूपर मंडावा आए. वे द पेंटेड टाउन ऑफ शेखावाटी के नाम से पुस्तक लिख रहे थे और उन्होंने इसके कवर पेज पर एक हवेली में बनी हुई हाथी की तस्वीर को स्थान दिया.
तस्वीर को देखने आने लगे पर्यटक
इले कूपर की इस पुस्तक का प्रथम प्रकाशन 1987 में हुआ और इसके साथ ही बड़ी संख्या में विदेशी टूरिस्ट इस हाथी की तस्वीर और पुस्तक में उल्लेखित अन्य हवेलियों को देखने लगे. पर्यटकों की खास उत्सुकता रहती थी कि हवेली में बना हुआ हाथी वास्तव में किस तरह से चित्रित है और वह हवेली को खोजते-खोजते पहुंचने लगे. मंडावा शहर में सेठ-साहूकारों की छोड़ी हुई हवेलियां पहले से थी और उन पर बनी हुई चित्रकारी भी अपने आप पर मनमोहक थी. देखते ही देखते शहर टूरिस्ट से गुलजार होने लगा और मंडावा की हवेलियां देश विदेश में टूरिस्ट नक्शे में प्रमुख स्थान पा गई.
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और फिर पड़ी बॉलीवुड की नजर
धर्मेंद्र अभिनीत गुलामी पिक्चर की शूटिंग हालांकि पहले भी मंडावा में हो चुकी थी, लेकिन उसमें मंडावा की तस्वीर एक मरुस्थल और राजस्थान के अन्य गांव जैसी ही थी. लेकिन हवेलियों के शहर मंडावा कि जैसे-जैसे ख्याति टूरिस्ट में होने लगी तो बॉलीवुड की नजर यहां की चित्रकारी पर भी पड़ी. इसके बाद तो यहां कई फिल्मों की शूटिंग का सिलसिला शुरू हो गया और उसमें पीके, बजरंगी भाईजान, कच्चे धागे, ईशा देओल की पहली फिल्म कोई मेरे दिल से पूछे, हाल ही में नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म बोले चूड़ियां सहित केवल बॉलीवुड ही नहीं बल्कि साउथ की भी कई बड़ी पिक्चरों की शूटिंग यहां हो चुकी है.