झुंझनू. दुनिया भर में कोरोना के कहर के चलते हो रही लाखों मौतों के कारण मन में स्याह अंधेरा है तो प्रकृति यह संदेश भी दे रही है कि अंधकार के बाद उजाला भी आएगा. जी हां, धोरों की धरती राजस्थान में कई सालों के बाद इस वर्ष राज्य पुष्प रोहिडा के फूल इस समय पूरे परवान पर आकर खिले हुए हैं और धोरों की धरती इसकी खुशूब से महक रही है. पश्चिमी राजस्थान में आने वाली आंधियों का दौर भी शुरू हो गया है और ऐसे में रोहिडा के पुष्प की खुशबू पूरे वातावरण को महका रही है. यह भी तय है कि आंधियों के साथ रोहिडा के पुष्प इस धरती के सुदूर कई स्थानों तक जाकर गिरेंगे और वहां से बीज के साथ एक नवजीवन होगा, एक नए पौधे का प्रस्फुटन होगा.
पश्चिमी राजस्थान में रोही का मतलब होता है सुनसान जगह. इस रोही से इस पेड़ का नाम रोहिडा पडा होगा. लाख सुर्ख रंग के बड़े इस फूल को राज्य पुष्प होने का गौरव ही इसलिए हासिल है, कि इसकी भीनी-भीनी खुशबू पूरे वातावरण को सुगंधित कर देती है. मरूस्थल और सम मरूस्थल पट्टी में यह बहुतायत में होता है, लेकिन कई सालों से इस बार यह पूरा अपने रंग में खिला है. फाल्गुन के बाद जब हवाएं चलती हैं तो इसकी महक से धोरों की धरती अपने आपको आनन्दित महसूस करती है. इन पुष्पों का रंग गहरा केसरिया हीरमिच पीला होता है.
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ये है मरूस्थल की शोभा...
राजस्थान का राज्य पुष्प रोहिडा को 1983 में घोषित किया गया था और इसका वैज्ञानिक नाम टिकोमेला अंडूळेटा और इसको मरुशोभा और रेगिस्तान का सागवान भी कहा जाता है. रोहिडा सर्वाधिक पश्चिमी राजस्थान में मिलता है और इसका पुष्प मार्च अप्रैल के माह में खिलता है. जोधपुर में तो इसे मारवाड़ का टीक भी कहा जाता है. रोहिडा की लकड़ी भी मुलायम होने के कारण महंगी होती है और बेहद उपयोगी मानी जाती है. इससे दरवाजे, फर्नीचर बनाया जाता है, क्योंकि इसमें दीमक नहीं लगती है. इसलिए इसका भाव प्रति क्यूब के हिसाब से होता है.
प्रकृति का अनुपम उपहार है रोहिडा...
रेगिस्तान में दूर-दूर तक पसरी रंगहीन रेत के धोरों से सटे मैदानी इलाकों में खेलने वाला यह पुष्प का पेड़ रोहिडा प्रकृति की ओर से जीव जगत को दिया गया अनुपम उपहार है. जैव विविधता को बनाए रखने में रोहिडा का राजस्थान में खास एहमियत है. इसके फूलों के आने पर मधुमक्खियां तितलियां और ऐसे रस को चूसने वाले कीट और कई तरह के पक्षी रस चूसने के लिए इसके चारों तरफ मंडराते रहते हैं. वहीं, चारे के रूप में फूलों का सेवन बकरी भी बड़े चाव से करती है.