बुहाना (झुंझुनू). जिले के बुहाना उपखंड का सहड़ का बास गांव में अपने पिता को कंधा देने पहुंची बिना भाई की 5 बहनों ने सामाजिक परंपराओं को चुनौती देते हुए स्वयं आगे बढ़कर अपने पिता की अंत्येष्टि मे शव यात्रा में शामिल हुई. पिता को मुखाग्नि देते हुए बेटा-बेटी एक समान अवधारणा का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया.
जानकारी के अनुसार मंगलवार को सहड़ का बास गांव में नागरमल हवलदार के निधन होने पर उनकी 5 बेटियां कृष्णा, किरण, मीना, सुलोचना और सुमन अपने गांव के लोगों के साथ अपने पिता की शव यात्रा में शामिल होकर श्मशान घाट पहुंची. साथ ही अपने पिता को मुखाग्नि देते हुए अंतिम संस्कार की सारी परंपराओं का निर्वहन किया.
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बता दें कि इन पांचों बहनों के इकलौता भाई अशोक की हत्या करीब 16 साल पहले पत्नी और ससुर ने मिलकर कर दी थी. इकलौते बेटे को खोने के बाद नागरमल हवलदार अपनी पत्नी संतरा देवी के साथ अपने पैतृक गांव में ही रह रहा था. हवलदार की शादीशुदा पांच बेटियां ससुराल में रह रही थी. नागरमल हवलदार कई दिनों से बीमार चल रहा था और उनकी देखभाल की जिम्मेदारियां भी बेटी-दामाद ही संभाल रहे थे.
वहीं, सोमवार की रात को निधन होने के बाद मृतक नागरमल की बेटी मंगलवार को उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए. गांव में पहली बार श्मशान घाट पर शव यात्रा में शामिल होती महिलाओं को देखकर और बेटियों के कंधे देने की सूचना पर कुछ लोग स्तब्ध थे, तो कुछ लोगों ने सामाजिक बदलाव की पहल बताते हुए बेटियों का हौसला अफजाई की. ग्रामीणों ने कहा कि आजकल बेटा-बेटियों में कोई फर्क नहीं रह गया है, ऐसे पहल करने से समाज में जागृति आएगी.