झालावाड़. किसी भी देश की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए कृषि एक अहम हिस्सा होती है. कृषि में अधिक से अधिक किया गया सुधार उस देश को बुलंदियों पर ले जाता है. अच्छी कृषि के लिए खाद, बीज और उपकरणओं के साथ-साथ बिजली एक मुख्य आवश्यकता होती है. वहीं देश के अन्नदाता तक बिजली पहुंचे, यह सत्ता में बैठे नेताओं की जिम्मेदारी होती है. लेकिन झालावाड़ जिले के नांदेड़ा में जिस तरह बिजली के अभाव में किसान खेती से वंचित हो रहे हैं, वह चिंता का विषय है.
क्षेत्र में किसानों को इस समय सुचारू रूप से 6 घंटे बिजली आपूर्ति की अति आवश्यक है. परन्तु जयपुर डिस्कॉम केवल 4 घंटे बिजली दे पा रहा है, और उसमें भी भारी कटौती देखने को मिल रही है. इस समय रबी की फसल मे गेहूं की बुवाई का अनुकूल समय चल रहा है, परन्तु बिजली के अभाव मे गेहूं की बुवाई समय पर नहीं हो पा रही है. किसानों को इस समय गेहूं की खेती के साथ-साथ आलू की बुवाई के लिए पलेवा करना है और दो सप्ताह बाद ही सरसों की फसल के लिए भी खेतों में पानी देना होगा. लेकिन बिजली विभाग का बिजली सप्लाई का यही रवैया रहा तो इस साल किसानों को रबी की फसल में काफी लम्बा नुकसान उठाना पड़ सकता है. नान्देडा, कामखेड़ा, सरेडी, आदि गांवों में बिजली सप्लाई की परेशानी बनी हुई है.
किसानों की भी एक अलग ही संघर्ष पूर्ण कहानी होती है. सूखा, बारिश, सर्दी और गर्मी जैसी तकलीफों से जूझ कर भी जब वह सरकार से अच्छी बिजली की उम्मीद नहीं रखे तो क्या करें.! पर यहां भी उसके हाथ निराशा लग रही है. बारिश की मार झेल चुके अब बिजली की मार झेल रहे है, ऐसे में किसान बिजली कटौती को लेकर धरना करें या खेती पर ध्यान दें.
वहीं किसान विनोद ने बताया कि लाइट नहीं आती है, और आती भी है तो रात में आती है. अब यदि रात में काम करे तो जहरीले जानवर सांप, बिच्छु आदि का डर बना रहता है. ऐसे में रात में काम करने पर जान का खतरा भी होता है. वहीं किसानों की मांग है कि कम से कम खेती के लिए दिन में भी बिजली उपलब्ध हो जाए तो वे खेती कर पाएंगे.
वहीं एक अन्य किसान ने बताया कि बिजली तो नहीं मिल रही है, लेकिन बिजली का बिल हर माह बिजली कंपनी किसानों को थमा जाती है. टुकड़ों में और कम बिजली मिलने से किसान को एक खेत की सिंचाई करने में ही दो से तीन दिन लग रहे हैं. जिससे वह अपने सभी खेतों को बुवाई के लिए तैयार नहीं कर पा रहा है. बार-बार बिजली जाने से किसानों के ट्यूबवेल की मोटर व स्टार्टर भी खराब हो रहे हैं. जिन्हें सुधरवाने के लिए उन्हें अधिक खर्च करना पड़ता है.
एक ओर प्रशासन का दूसरा चेहरा यह भी है कि किसान बिजली आपूर्ति न मिलने पर जब बिजली कंपनी के अफसरों और कर्मचारियों से बात करते हैं तो पहले तो वे फोन ही रिसीव नहीं करते. फोन रिसीव कर भी लेते हैं तो समस्या दूर करने की जगह उन्हें टाल देते हैं.