रानीवाड़ा (जालोर). ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों ग्रीष्मकालीन सब्जी सांगरी की बहार छाई हुई है. सांगरी नामक पौधे का नाम आते ही जेहन में आता है एक झाड़ीनुमा पौधे की तस्वीर. इन दिनों ग्रामीण अंचलों में हाथों में थैलियां लिए बच्चे खेजड़ी के वृक्षों से सांगरी बीनते नजर रहे हैं. इतना ही नहीं ये काम इन्हें अच्छी खासी मजदूरी भी दिला रहे हैं.
लेकिन इन दिनों कोरोना के चलते सांगरी बिक नहीं रही है. साथ ही घरों से बाहर नहीं जाने के चलते इन दिनों ग्रामीणों के लिए मुख्य सब्जी सांगरी बन गई है, जो लोगों को राहत प्रदान कर रहा है. वहीं इस सब्जी के फायदे भी कम नहीं हैं. बुजुर्गों ने बताया कि सांगरी की सब्जी खाने से पेट का हाजमा ठीक रहता है. देश ही नहीं विदेशों में भी सांगरी की सब्जी बड़े चाव से खाते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मारवाड़ में सांगरी खेजड़ी के वृक्ष पर पैदा होती है. इस पर 43 डिग्री तापमान तेज बरसात का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.
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स्वादिष्ट बनती है सब्जी...
ग्रामीणों ने बताया कि सांगरी की सब्जी स्वादिष्ट बनती है तथा सांगरी को गर्म पानी में उबालकर रखा जाता है. बाद में इस सब्जी को काफी समय तक काम में लिया जा सकता है. पुराने जमाने में मारवाड़ में पानी की कमी होती थी, उस समय तत्कालीन ग्रामीण सांगरी को सब्जी के रूप में इस्तेमाल करते थे. वहीं इसका दूसरा फायदा यह रहता है कि इनको सुखाकर काफी समय तक काम में लिया जा सकता है.
बाजरी राज्यों और विदेशों में बढ़ रही है मांग...
रेगिस्तानी इलाके में उगने वाली सांगरी की मांग अप्रवासी राजस्थानी, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, पश्चिमी बंगाल आसाम सहित कई राज्यों विदेशों में भी मारवाड़ से मंगवा रहे हैं. वहां पर इनकी जबरदस्त मांग है.
नई पीढ़ी का रुझान कम...
सांगरी से मारवाड़ की नई पीढ़ी का रुझान कम होता जा रहा है. हालांकि ग्रामीणांचल में बुजुर्ग आज भी इस सब्जी का उपयोग करते हैं. इसका एक कारण आर्थिक भी है. आजकल रोजगार की सहज उपलब्धता के कारण अधिकतर स्थानीय लोग खुद इन सब्जियों को सहेजने में रूचि नहीं दिखाते. क्योंकि इतने समय में वे अन्य काम में अधिक कमाई कर सकते हैं. जो पेशेवर लोग हैं, वे ही यह कार्य करते है. जिससे उन्हें उचित पारिश्रमिक मिल जाता हैं. खेजड़ी राजस्थान के मरुस्थल क्षेत्रों में उगने वाली वनस्पतियों में खेजड़ी या शमी का वृक्ष एक अति महत्वपूर्ण वृक्ष है.