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पाक से आए टिड्डी दल ने जैसलमेर में 400 गांवों के किसानों को किया तबाह - राजस्थान में टिड्डी दल

22 मई से टिड्डी ने राजस्थान में प्रवेश किया था. तीन माह में बॉर्डर के सात जिलों में 1.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र टिड्डी फैल गई है. इन जिलों में 100 से ज्यादा टीमें टिड्‌डी नियंत्रण में लगी हुई है. इससे पहले साल 1992 में बॉर्डर इलाके में टिड्‌डी आई थी, 27 साल बाद अब फिर से टिड्‌डी का भारत में हमला बोला है. पाकिस्तान से टिड्डी के छोटे-छोटे दल बनकर हवा के साथ भारत की सीमा में घुस रहे हैं.

Locust control work Jaisalmer, टिड्‌डी नियंत्रण कार्य जैसलमेर
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Published : Sep 28, 2019, 2:29 PM IST

जैसलमेर. पाकिस्तान से हवा का रुख भारत की ओर होने के कारण 10 हजार से 1 लाख टिड्डियों के दल प्रतिदिन भारत आ रहे हैं. टिड्डी दलों पर कंट्रोल करने के लिए अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं, वह सारे विफल रहे. नतीजा यह रहा है कि जिले भर में टिड्डियों का आतंक फैल गया है. इस बार बारिश देरी से हुई फिर भी किसानों ने 70 प्रतिशत बुवाई की है. अब उनके सामने बड़ी चिंता टिड्डी दलों की है. करोड़ों की फसलों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. साथ ही पशुओं के चारे की व्यवस्था करना भी बड़ी चुनौती बना हुआ है.

400 गांवों के किसानों पर पड़ी मार

जैसलमेर में टिड्डी नियंत्रण दल को लेकर किसानों में भारी रोष है. उनका कहना है कि कभी भी फोन नहीं उठाते इस मामले में उनके उच्च अधिकारियों यह मानते हैं कि कई बार शिकायत मिली है कि स्थानीय अधिकारी फोन नहीं उठाते. ऐसे में समय पर टीम मौके पर कैसे भी जाएंगे. हालांकि कंट्रोल रूम है, वहां पर किसानों की सूचना दर्ज की जाती है. लेकिन उसमें भी शिकायत यह मिल रही है कि समय पर टीम नहीं पहुंच रही है.

पढ़ें- गहलोत सरकार के इस फैसले से अब दफ्तरों में लेट नहीं पहुंचेंगे कर्मचारी

फसलें बड़ी हो गईं, स्प्रे में आ रही दिक्कत

कृषि विभाग के मुताबिक इन दिनों फसलें बड़ी हो गईं हैं. विभाग के पास गाड़ी से स्प्रे की सुविधा है. खड़ी फसलों में गाड़ी से स्प्रे नहीं हो पाता है. खुले खेत जहां बुवाई नहीं की हुई है. वहां टिड्‌डी के बैठने का इंतजार करते हैं और फिर छिड़काव करते हैं. किसानों ने कहा कि वे फसलों पर टिड्‌डी नहीं बैठने दें. इसी वजह से किसान खेतों में थाली, खाली टीन बजाकर टिड्‌डी को भगा रहे हैं. अक्टूबर के बाद फसलों की कटाई हो जाएगी. तब तक टिड्‌डी से फसलों को भारी नुकसान होने का अंदेशा है. वहीं इसके बाद खेतों से फसलों की कटाई होने के बाद स्प्रे के लिए भी विभाग को परेशानी नहीं आएगी.

जैसलमेर में सबसे पहले बॉर्डर इलाके में ही टिड्डी दल देखने को मिले, लेकिन मानसून के बाद नमी बढ़ी तो धीरे-धीरे इनकी संख्या इतनी बढ़ गई कि ये पूरे जिले में फैल गए. फिलहाल पोकरण, फतेहगढ़ और जैसलमेर के गांवों में टिड्डी दल मौजूद है. रेगिस्तानी बाड़मेर-जैसलमेर में इस बार अच्छी बारिश से फसलों की पैदावार भी अच्छी है. ऐसे में टिड्डी के हमले से सबसे ज्यादा नुकसान बाजरा, ग्वार, मूंग, मोठ और अन्य फसलों को पहुंच रहा है. खेतों और पेड़ों पर टिडि्डयों की चादर बिछ गई. किसानों के सामने सबसे बड़ा संकट यह है की उनकी फसलें तबाह हो जाएगी.

पढ़ें- सोने के दाम में 40 रुपये की बढ़ोतरी तो चांदी 450 रुपये हुई सस्ती

टिड्‌डी कंट्रोल नहीं होने की बड़ी वजह

1. शुरुआती टिड्डी दलों ने आते ही प्रजनन किया, शुरुआती दौर में पर्याप्त संसाधन नहीं जुटाए गए
2. फील्ड फायरिंग रेंज में हुआ प्रजनन, गोडावण की वजह से स्प्रे नहीं हुआ और टिड्डी दल बढ़ते गए
3. सीमावर्ती इलाकों में टीमें तैनात नहीं की गईं, जिससे पाकिस्तान से टिड्‌डी दलों के भारतीय क्षेत्र में आते ही उन पर कंट्रोल नहीं किया जा सका और हालात बेकाबू होते गए
4. सबसे बड़ी बात तो यह भी है कि फाका छोटी टिडि्डयां. जो उड़ नहीं सकती है और वे तारबंदी के नीचे से होकर जैसलमेर में प्रवेश कर गई, यहां आकर बड़ी टिड्डियों के दल में बदल गई. नियंत्रण विभाग के लिए इन फाका दलों पर कंट्रोल करना आसान था
5. टिड्‌डी चेतावनी संगठन को जब भी टिड्‌डी दल आने की ग्रामीणों से सूचना मिली तो समय पर टीम वहां नहीं पहुंच पाई
6. हवाई स्प्रे किया जाता तो हालात काबू में होते. इधर, सरकार कह रही है कि यदि हवाई स्प्रे करते तो दूसरी तरह का नुकसान होता
7. टिड्डी दल इतने हो गए हैं कि उन्हें बढ़ने के लिए 40 से 45 दिन का समय मिल गया और अब टिड्डिया बन चुकी है और इन पर कंट्रोल करना मुश्किल हो गया है

जैसलमेर. पाकिस्तान से हवा का रुख भारत की ओर होने के कारण 10 हजार से 1 लाख टिड्डियों के दल प्रतिदिन भारत आ रहे हैं. टिड्डी दलों पर कंट्रोल करने के लिए अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं, वह सारे विफल रहे. नतीजा यह रहा है कि जिले भर में टिड्डियों का आतंक फैल गया है. इस बार बारिश देरी से हुई फिर भी किसानों ने 70 प्रतिशत बुवाई की है. अब उनके सामने बड़ी चिंता टिड्डी दलों की है. करोड़ों की फसलों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. साथ ही पशुओं के चारे की व्यवस्था करना भी बड़ी चुनौती बना हुआ है.

400 गांवों के किसानों पर पड़ी मार

जैसलमेर में टिड्डी नियंत्रण दल को लेकर किसानों में भारी रोष है. उनका कहना है कि कभी भी फोन नहीं उठाते इस मामले में उनके उच्च अधिकारियों यह मानते हैं कि कई बार शिकायत मिली है कि स्थानीय अधिकारी फोन नहीं उठाते. ऐसे में समय पर टीम मौके पर कैसे भी जाएंगे. हालांकि कंट्रोल रूम है, वहां पर किसानों की सूचना दर्ज की जाती है. लेकिन उसमें भी शिकायत यह मिल रही है कि समय पर टीम नहीं पहुंच रही है.

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फसलें बड़ी हो गईं, स्प्रे में आ रही दिक्कत

कृषि विभाग के मुताबिक इन दिनों फसलें बड़ी हो गईं हैं. विभाग के पास गाड़ी से स्प्रे की सुविधा है. खड़ी फसलों में गाड़ी से स्प्रे नहीं हो पाता है. खुले खेत जहां बुवाई नहीं की हुई है. वहां टिड्‌डी के बैठने का इंतजार करते हैं और फिर छिड़काव करते हैं. किसानों ने कहा कि वे फसलों पर टिड्‌डी नहीं बैठने दें. इसी वजह से किसान खेतों में थाली, खाली टीन बजाकर टिड्‌डी को भगा रहे हैं. अक्टूबर के बाद फसलों की कटाई हो जाएगी. तब तक टिड्‌डी से फसलों को भारी नुकसान होने का अंदेशा है. वहीं इसके बाद खेतों से फसलों की कटाई होने के बाद स्प्रे के लिए भी विभाग को परेशानी नहीं आएगी.

जैसलमेर में सबसे पहले बॉर्डर इलाके में ही टिड्डी दल देखने को मिले, लेकिन मानसून के बाद नमी बढ़ी तो धीरे-धीरे इनकी संख्या इतनी बढ़ गई कि ये पूरे जिले में फैल गए. फिलहाल पोकरण, फतेहगढ़ और जैसलमेर के गांवों में टिड्डी दल मौजूद है. रेगिस्तानी बाड़मेर-जैसलमेर में इस बार अच्छी बारिश से फसलों की पैदावार भी अच्छी है. ऐसे में टिड्डी के हमले से सबसे ज्यादा नुकसान बाजरा, ग्वार, मूंग, मोठ और अन्य फसलों को पहुंच रहा है. खेतों और पेड़ों पर टिडि्डयों की चादर बिछ गई. किसानों के सामने सबसे बड़ा संकट यह है की उनकी फसलें तबाह हो जाएगी.

पढ़ें- सोने के दाम में 40 रुपये की बढ़ोतरी तो चांदी 450 रुपये हुई सस्ती

टिड्‌डी कंट्रोल नहीं होने की बड़ी वजह

1. शुरुआती टिड्डी दलों ने आते ही प्रजनन किया, शुरुआती दौर में पर्याप्त संसाधन नहीं जुटाए गए
2. फील्ड फायरिंग रेंज में हुआ प्रजनन, गोडावण की वजह से स्प्रे नहीं हुआ और टिड्डी दल बढ़ते गए
3. सीमावर्ती इलाकों में टीमें तैनात नहीं की गईं, जिससे पाकिस्तान से टिड्‌डी दलों के भारतीय क्षेत्र में आते ही उन पर कंट्रोल नहीं किया जा सका और हालात बेकाबू होते गए
4. सबसे बड़ी बात तो यह भी है कि फाका छोटी टिडि्डयां. जो उड़ नहीं सकती है और वे तारबंदी के नीचे से होकर जैसलमेर में प्रवेश कर गई, यहां आकर बड़ी टिड्डियों के दल में बदल गई. नियंत्रण विभाग के लिए इन फाका दलों पर कंट्रोल करना आसान था
5. टिड्‌डी चेतावनी संगठन को जब भी टिड्‌डी दल आने की ग्रामीणों से सूचना मिली तो समय पर टीम वहां नहीं पहुंच पाई
6. हवाई स्प्रे किया जाता तो हालात काबू में होते. इधर, सरकार कह रही है कि यदि हवाई स्प्रे करते तो दूसरी तरह का नुकसान होता
7. टिड्डी दल इतने हो गए हैं कि उन्हें बढ़ने के लिए 40 से 45 दिन का समय मिल गया और अब टिड्डिया बन चुकी है और इन पर कंट्रोल करना मुश्किल हो गया है

Intro:Body:बॉर्डर के 400 गाँवों के किसानों पर पड़ रही मार

दो माह में 2 लाख हेक्टेयर में फैली टिड्डिया

अब हवा के रुख के भरोसे है ग्रामीण

पहली बार मई माह में बॉर्डर से आया था टिड्डी दल

20 गाड़िया से टीमें कंट्रोल में रही नाकाम

सारे प्रयास विफल,करोडो की फसलों पर संकट के बादल

पाक का ही नहीं हमारा सिस्टम भी फेल


27 साल बाद पाकिस्तान की तरफ इस बार से आए टिड्‌डी दल का बड़ा हमला हुआ है। इससे पहले 1992 में आई टिड्डी ने फसलों को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया था। इस साल जैसलमेर-बाड़मेर के सीमावर्ती 400 गांवों में करीब 1.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में टिड्‌डी दलों ने कहर ढा रखा है। पाक से टिड्‌डी दलों के आने का सिलसिला इस साल 22 मई से शुरू हुआ था और प्रशासन की ओर से तमाम दावे किए गए, लेकिन चार माह में ही हालात बेकाबू हो गए। पुरे प्रदेश के संसाधन जैसलमेर में लगा दिए गए, 20 टीमें नियंत्रण में जुटी रहीं, लेकिन टिड्डी दलों पर कंट्रोल नहीं हुआ। अब एक ही उम्मीद कि हवा का रुख बदले तो ये टिड्डी दल वापस पाकिस्तान की तरफ लौटें।

22 मई से टिड्डी ने राजस्थान में प्रवेश किया था। तीन माह में बॉर्डर के सात जिलों में 1.50 लाख हैक्टेयर क्षेत्र टिड्डी फैल गई है। इन जिलों में 100 से ज्यादा टीमें टिड्‌डी नियंत्रण में लगी हुई है। इससे पूर्व 1992 में बॉर्डर इलाके में टिड्‌डी आई थी, 27 साल बाद अब फिर से टिड्‌डी का भारत में हमला बोला है। पाकिस्तान से टिड्डी के छोटे-छोटे दल बनकर हवा के साथ भारत की सीमा में घुस रहे हैं। पाकिस्तान से हवा का रुख भारत की ओर होने के कारण 10 हजार से 1 लाख टिड्डियों के दल प्रतिदिन भारत आ रहे हैं। टिड्डी दलों पर कंट्रोल करने के लिए अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं वह सारे विफल रहे। नतीजा यह रहा है कि जिले भर में टिड्डियों का आतंक फैल गया है। इस बार बारिश देरी से हुई फिर भी किसानों ने 70% बुवाई की है। अब उनके सामने बड़ी चिंता टिड्डी दलों की है। करोड़ों की फसलों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं साथ ही पशुओं के चारे की व्यवस्था करना भी बड़ी चुनौती बना हुआ है।

जैसलमेर में टिड्डी नियंत्रण दल को लेकर किसानों में भारी रोष है। उनका कहना है कि कभी भी फोन नहीं उठाते इस मामले में उनके उच्च अधिकारियों यह मानते हैं कि कई बार शिकायत मिली है कि स्थानीय अधिकारी फोन नहीं उठाते ऐसे में समय पर टीम मौके पर कैसे भी जाएंगे। हालांकि कंट्रोल रूम है वहां पर किसानों की सूचना दर्ज की जाती है लेकिन उसमें भी शिकायत यह मिल रही है कि समय पर टीम नहीं पहुंच रही है।

फसलें बड़ी हो गई, स्प्रे में आ रही दिक्कत
कृषि विभाग के मुताबिक इन दिनों फसलें बड़ी हो गई। विभाग के पास गाड़ी से स्प्रे की सुविधा है। खड़ी फसलों में गाड़ी से स्प्रे नहीं हो पाता है। खुले खेत जहां बुवाई नहीं की हुई है वहां टिड्‌डी के बैठने का इंतजार करते है और फिर छिड़काव करते है। किसानों से कहा कि वे फसलों पर टिड्‌डी नहीं बैठने दें। इसी वजह से किसान खेतों में थाली, खाली टीन बजाकर टिड्‌डी को भगा रहे है। अक्टूबर के बाद फसलों की कटाई हो जाएगी। जब तक टिड्‌डी से फसलों को भारी नुकसान होने का अंदेशा है। वहीं इसके बाद खेतों से फसलों की कटाई होने के बाद स्प्रे के लिए भी विभाग को परेशानी नहीं आएगी।

जैसलमेर में सबसे पहले बॉर्डर इलाके में ही टिड्डी दल देखने को मिले, लेकिन मानसून के बाद नमी बढ़ी तो धीरे-धीरे इनकी संख्या इतनी बढ़ गई कि ये पूरे जिले में फैल गए। फिलहाल पोकरण, फतेहगढ़ व जैसलमेर के गांवों में टिड्डी दल मौजूद है। रेगिस्तानी बाड़मेर-जैसलमेर में इस बार अच्छी बारिश से फसलों की पैदावार भी अच्छी है। ऐसे में टिड्डी के हमले से सबसे ज्यादा नुकसान बाजरा, ग्वार, मूंग, मोठ व अन्य फसलों को पहुंच रहा है। खेतों व पेड़ों पर टिडि्डयों की चादर बिछ गई। किसानों के सामने सबसे बड़ा संकट यह है की उनकी फसले तबाह हो जाएगी ।

टिड्‌डी कंट्रोल नहीं होने की बड़ी वजह
1. शुरुआती टिड्डी दलों ने आते ही प्रजनन किया। शुरुआती दौर में पर्याप्त संसाधन नहीं जुटाए गए।
2. फील्ड फायरिंग रेंज में हुआ प्रजनन, गोडावण की वजह से स्प्रे नहीं हुआ और टिड्डी दल बढ़ते गए।
3. सीमावर्ती इलाकों में टीमें तैनात नहीं की गईं, जिससे पाकिस्तान से टिड्‌डी दलों के भारतीय क्षेत्र में आते ही उन पर कंट्रोल नहीं किया जा सका और हालात बेकाबू होते गए।
4. सबसे बड़ी बात तो यह भी है कि फाका (छोटी टिडि्डयां) जो उड़ नहीं सकती है और वे तारबंदी के नीचे से होकर जैसलमेर में प्रवेश कर गईं और यहां आकर बड़ी टिड्डियों के दल में बदल गईं। नियंत्रण विभाग के लिए इन फाका दलों पर कंट्रोल करना आसान था।
5. टिड्‌डी चेतावनी संगठन को जब भी टिड्‌डी दल आने की ग्रामीणों से सूचना मिली तो समय पर टीम वहां नहीं पहुंच पाई।
6. हवाई स्प्रे किया जाता तो हालात काबू में होते। इधर, सरकार कह रही है कि यदि हवाई स्प्रे करते तो दूसरी तरह का नुकसान होता।
7. टिड्डी दल इतने हो गए हैं कि उन्हें बढ़ने के लिए 40 से 45 दिन का समय मिल गया और अब टिड्डिया बन चुकी है और इन पर कंट्रोल करना मुश्किल हो गया है।

बाईट-1-अमृतलाल पुरोहित - किसान
बाईट- 2-सवाईसिंह - किसान
बाईट-3- विमल गोपा - किसान
बाईट-4-डॉ. सुआलाल जाट- संयुक्त निदेशक -राजस्थान कृषि विभाग Conclusion:
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