जयपुर. 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शिरकत की. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए धनखड़ ने न्यायपालिका को लेकर कहा कि एक मुद्दा हमारे और जनता के सामने है और उसे लेकर मैं आश्चर्यचकित हूं. जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधिपतियों ने अटॉर्नी जनरल को कहा कि हाई कॉन्स्टिट्यूशन अथॉरिटी को ये मैसेज दें. हालांकि, तब मैंने अटॉर्नी जनरल को इस पॉइंट पर एंटरटेन करने से मना कर दिया. उपराष्ट्रपति ने कहा कि हम होस्टेज की तरह व्यवहार (83rd All India Presiding Officers Conference) नहीं कर सकते हैं. जुडिशरी और लेजिस्लेटर के बीच हारमोनियल रिलेशन होनी चाहिए.
धनखड़ ने कहा कि संविधान सभा में अंबेडकर ने कहा था कि आप विधानसभा में न्यायालय का फैसला नहीं लिख सकते हैं. लेकिन उसी तरह कोर्ट भी हमें लेजिसलेट नहीं कर सकता है. इस दौरान उन्होंने खुद को सोल्जर ऑफ जुडिशरी बताते हुए कहा कि वो जुडिशरी का सम्मान करते हैं. साथ ही जुडिशरी से अपील करते हैं कि हम सबका भी आत्मसम्मान है. ऐसे में पब्लिक प्लेटफॉर्म के जरिए बातचीत नहीं हो सकती है.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका संवैधानिक संस्थाएं हैं. ऐसे में एक संस्था को दूसरे में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. अगर ऐसा होता है तो यह गलत है. उन्होंने कहा कि क्या संविधान में संशोधन करने का अधिकार संसद से पृथक हो सकता है. साल 1973 केशवानंद भारती के केस में सुप्रीम कोर्ट ने जो बेसिक स्ट्रक्चर का आइडिया दिया कि पार्लियामेंट कानून संशोधित कर सकती है.
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आगे उन्होंने कहा कि 2015 में 16 अक्टूबर के दिन लोकसभा और राज्यसभा ने एक कानून पास किया, जिसे नेशनल ज्यूडिशल अकाउंटेबिलिटी कानून कहते हैं. लोकसभा में वो सर्वसम्मति से पास हुआ और फिर इसे राज्यसभा में भी पास किया गया. हालांकि, उस दौरान केवल एक ऑब्जेन्शन था. संविधान की आवश्यकता थी कि आधे से ज्यादा विधानसभा इसे पास करें. राजस्थान विधानसभा वह पहली विधानसभा थी, जिसने उसे सबसे पहले पास किया. ऐसे इस कानून को 16 अक्टूबर, 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के निर्णय से निरस्त कर दिया था.
दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ. दूसरी समस्या कार्यपालिका के लिए संसद ने कानून दिया, जिसे 16 असेंबलियों ने पास कर दिया और राष्ट्रपति ने भी उसपर हस्ताक्षर कर दिया. हालांकि, उस पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ गया. कार्यपालिका के पास दो निर्णय थे, संसद का कानून और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय तो कार्यपालिका कैसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की तरफ झुक सकती है? कैसे सांसद की सम्प्रभुता कंप्रोमाइज हो सकती है. यह मुद्दा यहां जो पीठासीन अधिकारी बैठे हैं उनके लिए है कि हम टकराव के लिए नहीं है हम कोलैबोरेशन के लिए है. इसके लिए कोई न कोई रास्ता होना चाहिए.