जयपुर. जयपुर में लाख के चूड़ों का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना ये शहर. सवाई जयसिंह द्वितीय ने जब जयपुर की स्थापना की तब कई दस्तकारों को भी यहां बसाया गया था. उन्हीं में शामिल थे मनिहारे. इनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय से आते थे और लाख के चूड़े बनाने का काम करते थे. हालांकि, अब मिलावट के इस दौर में जयपुर की विरासत से जुड़े पारंपरिक लाख के चूड़े में बड़ी मात्रा में केमिकल मिलाया जा रहा है, लेकिन एक संस्था ऐसी भी है जो हजारों मनिहारों को साथ लेकर गाय का गोबर मिलाकर लाख के चूड़े तैयार कर रहे हैं. इससे न सिर्फ पहनने वाले बल्कि बनाने वालों के स्वास्थ्य और आय पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है.
केमिकल रहित लाख के चूड़े : जयपुर की विरासत और परंपरा से जुड़ा लाख का चूड़ा आज मिलावट की भेंट चढ़ता जा रहा है, लेकिन एक संस्था मिलावट की दुनिया से दूर इसे संजोने की कोशिश कर रही है. हैनीमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी की सचिव मोनिका गुप्ता ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया, ''आज के समय में परंपरा से जुड़ा लाख का चूड़ा गुमनाम होता जा रहा है. इन चूड़ों को केमिकल और आधुनिक तरीकों से बनाया जा रहा है. जयपुर की शान में शुमार लाख में आज लोग केमिकल का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे बनाने वालों का दम घुट रहा है और पहनने वालों के लिए भी ये हानिकारक साबित हो रही है. ऐसे में विरासत को जीवित रखने के लिए जयपुर लाख क्लस्टर परियोजना की शुरुआत की गई. जयपुर जिला उद्योग के सहयोग से ये काम किया जा रहा है, जिसमें 5000 से ज्यादा मनिहार जुड़े हुए हैं. यहां इनीशिएटिव लेकर केमिकल की मात्रा कम की गई और 40 फीसदी गाय के गोबर का इस्तेमाल किया गया, जो रेडिएशन को भी दूर रखता है और महिलाओं पर इसका पॉजिटिव प्रभाव पड़ता है.''
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मनिहारों को बीमारियों से मिल रही निजात : उन्होंने स्पष्ट किया कि वैसे तो लाख के चूड़े बिना किसी मिलावट के ही बनने चाहिए, जिसमें 80% लाख और 20% ऐसा पाउडर हो जो चूड़े की पकड़ बनाए रखे. बावजूद इसके इन दिनों केमिकल 80% और लाख 20% इस्तेमाल किया जा रहा है, जो पूरी तरह से गलत है. ऐसे में वो इसमें बदलाव करते हुए 80% तक लाख और गाय का गोबर और लाख पर पकड़ बनाए रखने के लिए 20% पाउडर का प्रयोग कर रहे हैं. इससे मनिहारों को होने वाली दम घुटने, हार्ट अटैक आने जैसी समस्याओं से भी निजात मिलेगी.
गाय के गोबर को कम्युनिटी से न जोड़े : हालांकि, मनिहारों का एक बहुत बड़ा तबका अल्पसंख्यक समुदाय से आता है. ऐसे में उन्हें गाय के गोबर को इस्तेमाल करने से पहले समझाइश भी करनी पड़ी. उन्हें बताया गया कि गाय का गोबर किसी कम्युनिटी को बिलॉन्ग नहीं करता है. गाय माता भी उसी तरह सभी की माता है, जिस तरह से भारत माता हैं. जिस तरह अयोध्या में श्रीराम आ रहे हैं, वो किसी एक कम्युनिटी के लिए नहीं हैं. वो पूरे हिंदुस्तान के लिए आ रहे हैं. ऐसे में उन्हें समझाया गया कि गाय के गोबर को कम्युनिटी से जोड़ने की बजाय स्वास्थ्य से जोड़कर देखें.
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मोनिका गुप्ता और उनके साथी आर्टिजन ने बताया कि लाख के चूड़ों में नियमित रूप से एक्सपेरिमेंट करते हुए नए कलर्स और डिजाइंस तैयार किए जा रहे हैं. इसके पीछे उन्होंने बताया कि पारंपरिक लाख के चूड़े हमेशा से चलते आए हैं, लेकिन आज की जनरेशन को जोड़ने के लिए इन्हें नया रूप भी दिया जा रहा है. उन्हें नया टेस्ट और नया डिजाइन चाहिए. लाल-हरा लाख का चूड़ा हर कोई पहनता है, लेकिन उसके साथ क्या नया उपभोक्ताओं को दिया जा सकता है इस पर फोकस करते हुए वो नया क्रिएट करने में जुटे हुए हैं. इससे आर्टिजन की आय भी बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि अब लाख वही है. लेकिन उसमें लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखा गया है. मणिहारों के आय-आजीविका का ध्यान रखा गया है. साथ ही बनाने और पहनने वाले के चेहरे पर मुस्कान लाना ही उनका उद्देश्य है.