जयपुर. राजधानी में बना बीआरटीएस कॉरिडोर प्रशासन के लिए गले की फांस बना हुआ है. इसे हटाने की मांग जरूर समय-समय पर उठती रही है, लेकिन इस पर भी अब तक अंतिम फैसला नहीं लिया जा सका है. दो चरणों में बना ये कॉरिडोर अभी भी अधूरा है. नतीजन इसका उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा. ऐसे में कॉरिडोर को हटाने से पहले सरकार इसकी उपयोगिता और फायदे को लेकर एक स्टडी करवा रही (Study of usability of BRTS Corridor) है. वहीं विशेषज्ञों ने बीआरटीएस कॉरिडोर को ग्रीन कॉरिडोर बनाने की भी राय दी है.
करीब 10 साल पहले बनाए गए बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम यानि बीआरटीएस कॉरिडोर को पब्लिक ट्रांसपोर्ट को स्मूथ करने के लिए तैयार किया गया था, लेकिन ये आम ट्रैफिक के लिए ये रोड़ा बन रहा है. ऐसे में इसकी उपयोगिता पर कई सवाल खड़े हो चुके हैं, लेकिन इसे हटाने को लेकर कोई ठोस फैसला नहीं हो सका है. सरकार ने साल 2007 में इसका काम शुरू करवाया था. इसे सीकर रोड और अजमेर रोड से न्यू सांगानेर रोड पर विकसित किया गया. लेकिन जब मानसरोवर की सड़क को चौड़ा करने की कवायद शुरू हुई तो इस सड़क के किनारे बसे व्यापारियों ने जेडीए की कार्रवाई का विरोध कर दिया.
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- जयपुर में 4 पैकेज में इस प्रोजेक्ट के तहत विकसित करने थे कॉरिडोर
- सरकार ने साल 2007 में इसका काम शुरू करवाया
- केवल 2 ही कॉरिडोर बन कर हुए तैयार
- प्रोजेक्ट पर करीब 150 करोड़ रुपए सरकार ने खर्च किए थे
- 50 फीसदी राशि केन्द्र सरकार, 20 फीसदी राज्य सरकार और 30 फीसदी जेडीए ने लगाई
- सीकर रोड पर बने कॉरिडोर का उद्घाटन साल 2010 में यूपीए सरकार के समय अशोक गहलोत ने किया था
- जबकि न्यू सांगानेर रोड कॉरिडोर को साल 2015 में बीजेपी सरकार के समय वसुंधरा राजे ने किया था
हालांकि राज्य सरकार ने बीआरटीएस कॉरिडोर को लेकर स्टडी करा रही है. जेडीसी रवि जैन ने बताया कि बीआरटीएस कॉरिडोर बनने के बाद कहां एक्सीडेंटल पॉइंट बने, कितना ट्रैफिक बीआरटीएस कॉरिडोर से फ्लो हो रहा है, शुरुआत में इसका जो उद्देश्य था क्या वो पूरा हो पाया या नहीं, इसे एक्सटेंशन करना चाहिए या इसे पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए या मॉडिफिकेशन करना चाहिए, इन बिंदुओं पर एनालाइज किया जा रहा है. इसके बाद ही आगे कोई कार्रवाई की जा सकेगी.
वहीं विशेषज्ञों की मानें तो बीआरटीएस कॉरिडोर का उद्देश्य बसों के संचालन के लिए एक डेडीकेटेड रूट बनाए जाने का था. जिसका सीधा सा मतलब मास ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम विकसित करना था. ताकि बसों के रास्ते में कोई ट्रैफिक जाम की समस्या ना रहे. लेकिन जयपुर में इसे पूरी तरह धरातल पर उतारा नहीं जा सका. पूर्व चीफ टाउन प्लानर एचएस संचेती ने बताया कि कई जगह जमीन अधिग्रहण की समस्या आई, कई जगह सड़कें कम चौड़ी होने से वहां जमीन अधिग्रहण नहीं की जा सकी और ना ही उन सड़कों को चौड़ा किया जा सका. ऐसी स्थिति में जहां सड़क चौड़ी थी, वहां तो बीआरटीएस कॉरिडोर का निर्माण कर दिया गया और जहां समस्या थी, वहां आज भी ये पेंडिंग ही है. उन्होंने बताया कि यदि किसी प्रोजेक्ट को अधूरा छोड़ दिया जाता है, तो उसका मूल उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता. यदि ये प्रोजेक्ट पूरा होता तो आम व्यक्ति को अच्छा ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम मिल पाता.
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चूंकि ये केंद्र सरकार की योजना थी, केंद्र सरकार की किसी थीम की वजह से इस प्रोजेक्ट को लेकर पैसा मिला था. उस पैसे का इस्तेमाल बीआरटीएस कॉरिडोर में ही होना था. लेकिन अब इसमें बहुत विलंब हो चुका है. ऐसी स्थिति में ये आधा अधूरा प्रोजेक्ट किसी काम नहीं आ रहा और सड़क की चौड़ाई भी पूरी नहीं मिल रही है. ऐसी स्थिति में यहां मेट्रो चलाने का एक विकल्प है. यदि इसे इंप्लीमेंट नहीं किया जाता तो जिस तरह से शहर में प्रदूषण बढ़ रहा है, तो इसे एक ग्रीन कॉरिडोर के रूप में विकसित किया जा सकता है. जहां हरियाली फाउंटेन लगाकर ग्रीन कॉरिडोर बनाया जा सकता है.
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बहरहाल, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने और निजी वाहनों की तुलना में गंतव्य स्थल पर तेजी से पहुंचने के लिए बीआरटीएस कॉरिडोर का निर्माण किया गया था. लेकिन कॉरिडोर में उम्मीदों के अनुरूप बसें नहीं चलने और प्रोजेक्ट भी अधूरा होने के कारण इसकी उपयोगिता खत्म होती गई. जिससे यहां दुर्घटना की स्थिति बनती गई. इन सब के बीच चिंता ये है कि प्रोजेक्ट का निर्माण केन्द्र सरकार की फंडिंग से हुआ है. ऐसे में इसे हटाने से पहले शहरी विकास मंत्रालय से अनुमति लेनी होगी. राज्य सरकार को हटाने की मुख्य वजह बतानी होगी. राज्य सरकार के दावे और तर्क से संतुष्ट नहीं होने पर मंत्रालय रिकवरी निकाल सकती है.